एड. राजीव मिश्र मुंबई
जब से टेलीविजन के जमाना आवा है गाँव-जवार मा मानो क्रांति आइ गई है। अब तो इक्का-दुक्का घर मा रेडियो देखाय परत है। पहिले जब दूरदर्शन रहा तब दूरय से बड़मनई चिन्हाय जात रहें, घर के ऊपर बांस मा टंगा एंटीना से घर के माली हालत के अंदाजा लागि जात रहे। केउ-केउ बिजली के आँख-मिचौली के चलते घर मा बैटरी से टेलीविजन के मजा लेत रहे। ‘रंगोली’ से लइके ‘चित्रहार’, ‘श्रीमान श्रीमती’ से लइके ‘रामायण’ तक के दिन बहुतै नीक रहा। पर ईही बीच मा सूचना क्रांति भई और दूरदर्शन के पीछे धकेल के रिकिम-रिकिम के चैनल आई गवा है अउर धारावाहिक तो अइसन-अइसन आवा है कि पूछो मत। कउनउ-कउनउ धारावाहिक तो दस-दस बरिस तक चलत है। टेलीविजन एक ओर जहाँ सूचना क्रांति किहिस है, उहीं दूसरी ओर घर के अंदर संबंध में भी नई क्रांति आइ गई है। जवन देवरान-जेठान के बीच में प्रेम रहा, भाई-भाई के बीच में जवन भाईचारा रहा उ सब इ टेलीविजन खाई गवा। अब तो घर के मेहरारू सीरियल मा देखत हैं कि हीरोइन खान कउने रंग अउर कउने डिजाइन के सूट अउर साड़ी पहिना जाय। गहना के डिजाइन के घर के मुखिया के जान मारि दिहे हय। अब जबसे बहोरन के घर मा टेलीविजन आवा है तब से बहोरन के मेहरिया गुलाबो आये दिन भन्नाई रहत है। अब गुलाबो कल एक सीरियल मा एक हिरोइनी के नौलखा हार देखि के पगलाई गर्इं हैं। आज सुबह बहोरन जइसय खेत से घर पहुँचे, गुलाबो भन्नाई बैठी रही। बहोरन प्यार से पूछे, का भवा गुलाबो? कहाँ का भवा? अइसन लगत है जइसे तोहके कुच्छउ पता नही है। बियाह के बीस बरिस बीति गवा आज तक कउनउ दगीना गढ़वायो? जवन नइहर से लाये रहे उहौ बेचि खायो। जेहिके देखो नई-नई साड़ी अउर नया-नया गहना पहिन के मौज करत हय, पर तुम्हरे साथ हमरी पूरी जिनगी खराब हुई गई है। तुम्हरे साथ बियाह का भवा न ढंग से खाये के मिला न पहिनय के। देखो हम तुहका समझाय देत अही, हमका फलनवा सीरियल मा जवन हार है उहै चाही। बहोरन गुलाबो के बात शांति से सुने अउर संझा की बजार से इमीटेशन जूलरी के दुकान से हार लाई के देइ दीहें तब से गुलाबो के कोपभवन प्रवास बंद हुइ गवा है अउर बहोरन के जिनगी के गाड़ी पसिंजर से मेल हुइ गई है।