सामना संवाददाता / मुंबई
चुनाव आयोग ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा सुप्रीम कोर्ट को सौंपा गया चुनावी बांड का पूरा डेटा गुरुवार को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। एसबीआई ने २०१८ में शुरू हुई योजना के बाद से अब तक ३० किश्तों में १६,५१८ करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बांड की जानकारी सार्वजनिक की है। एसबीआई के हलफनामे में बताया गया है कि १ अप्रैल, २०१९ से १५ फरवरी, २०२४ के बीच २२,२१७ बांड खरीदे गए हैं, जो कि इस तीन मूल्यवर्ग यानी १ लाख रुपए, १० लाख रुपए और १ करोड़ रुपए के हैं। इस अवधि के दौरान भुनाए गए बांड्स की कुल संख्या २२,०३० है, जिसमे फ्युचर गेमिंग एंड हॉटेल सर्विसेस के १,३६८ करोड़ रुपए के चुनावी बांड खरीदने की जानकारी सामने आई है। इस कंपनी का ३१ मार्च २०२२ तक वार्षिक टर्न ओवर ५०० करोड़ रुपए था। मतलब वार्षिक उत्पन्न का ढाई गुना इलेक्टोरल बांड इस कंपनी ने खरीदी है, इससे साफ दिखाता है कि कुछ तो गड़बड़ घोटाला है।
क्या है इलेक्टोरल बांड की प्रक्रिया…
१. एक व्यक्ति भारतीय स्टेट बैंक से ५ करोड़ रुपए का चुनावी बांड खरीदता है।
२. वह व्यक्ति उस बांड को अपनी पसंद के राजनीतिक दल को गिफ्ट के तौर पर देता है।
३. उक्त राजनीतिक दल उस बांड को स्टेट बैंक में वैâस करता है। यानी उक्त राजनीतिक दल के बैंक खाते में पांच करोड़ रुपए जमा होते हैं।
इस प्रक्रिया में किस व्यक्ति ने किस पार्टी को कितनी रकम दी, इसकी जानकारी सिर्फ स्टेट बैंक और केंद्र सरकार के पास होती है। आम लोगों को वह जानकारी नहीं मिल पाती।
सुप्रीम कोर्ट के पैâसले के मुताबिक, स्टेट बैंक ने चुनाव आयोग को यह जानकारी सौंप दी है कि किस तारीख को किस कंपनी ने कितने मूल्य के बांड खरीदे और किस राजनीतिक दल को कितना पैसा मिला, लेकिन किन कंपनियों ने किस राजनीतिक दल को चंदा दिया इसकी जानकारी अभी नहीं दी गई है। इसके लिए दोबारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा, क्योंकि तभी नागरिकों और मतदाताओं का सूचना का अधिकार सही साबित होगा।
एमईआईएल ने खरीदा
१,००० करोड़ रुपए के बांड
दूसरे नंबर पर हैदराबाद स्थित मेघा इंजीनियरिंग एंड इंप्रâास्ट्रक्चर लिमिटेड ने २,०१९ और २०२४ के बीच १,००० करोड़ रुपए के बांड खरीदे हैं। अक्टूबर २०१९ में इनकम टैक्स विभाग ने इस कंपनी पर रेड डाली थी। उसी साल १२ अप्रैल को एमईआईएल ने ५० करोड़ रुपए के चुनावी बांड खरीदे थे। मेघा इंजीनियरिंग एंड इंप्रâा ने ८०० करोड़ रुपए से अधिक के इलेक्टोरल बांड खरीदे हैं। अप्रैल २०२३ में, उन्होंने १४० करोड़ डोनेट किया और ठीक एक महीने बाद, उन्हें १४,४०० करोड़ रुपए की ठाणे-बोरीवली ट्विन टनल प्रोजेक्ट मिल गया।
वेदांता ग्रुप ने ३७६ करोड़ रुपए दिया
वेदांता ग्रुप पांचवां सबसे बड़ा दानकर्ता है, जिसने कुल ३७६ करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बांड खरीदे हैं, जिसकी पहली किश्त अप्रैल २०१९ में खरीदी गई थी। ईडी द्वारा सीबीआई को भेजी गई एक रिपोर्ट के बाद ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग जांच शुरू की थी।
जिंदल स्टील एंड पावर ने
१२३ करोड़ रुपए दिए
जिंदल स्टील एंड पावर भी टॉप १५ दानदाताओं में से एक है। कंपनी ने इस अवधि में चुनावी बांड के माध्यम से १२३ करोड़ रुपए का दान दिया है। कंपनी को कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जांच का सामना करना पड़ा है।
रित्विक प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड ने दिए ४५ करोड़ रुपए
रित्विक प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड की कहानी में तो कंपनी के मालिक ने भाजपा ही ज्वाइन कर ली। इस अवधि में इस कंपनी ने ४५ करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बांड खरीदे हैं।
अरबिंदो फार्मा ने दिया
४९ करोड़ रुपए का दान
अरबिंदो फार्मा जो दिल्ली शराब घोटाले मामले में फंसी है ने भी इस दौरान ४९ करोड़ रुपए का दान दिया है। ईडी ने मामले में कंपनी के निदेशक पी सरथ रेड्डी को नवंबर २०२२ में गिरफ्तार किया था, जबकि कंपनी ने २०२१ में लगभग २.५ करोड़ रुपए का दान दिया।
चंदा दो, धंधा लो
ऐसी कई कंपनियों के मामले हैं, जिन्होंने इलेक्टोरल बांड खरीदा है और इसके तुरंत बाद सरकार से भारी लाभ प्राप्त किया है।
मेघा इंजीनियरिंग एंड इंप्रâा ने ८०० करोड़ रुपए से अधिक के इलेक्टोरल बांड खरीदे हैं। अप्रैल २०२३ में, उन्होंने १४० करोड़ डोनेट किया और ठीक एक महीने बाद उन्हें १४,४०० करोड़ रुपए की ठाणे-बोरीवली ट्विन टनल प्रोजेक्ट मिल गया।
जिंदल स्टील एंड पावर ने ७ अक्टूबर २०२२ को इलेक्टोरल बांड में २५ करोड़ रुपए दिए और सिर्फ ३ दिन बाद वह १० अक्टूबर २०२२ को गारे पाल्मा ४/६ कोयला खदान हासिल करने में कामयाब हो गई।