मुख्यपृष्ठस्तंभबब्बा बोलो ना...`छड़ी' से बीजेपी परेशान

बब्बा बोलो ना…`छड़ी’ से बीजेपी परेशान

अरुण कुमार गुप्ता

गाजीपुर लोकसभा सीट से अफजाल अंसारी की बेटी नुसरत अंसारी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में हैं। नुसरत अंसारी को छड़ी चुनाव चिह्न आवंटित हुआ है, जो भाजपा को परेशान कर रही है। दरअसल, यह चुनाव चिह्न सुभासपा के चुनाव चिह्न के रूप में जाना जाता है, जबकि सुभासपा ने भाजपा को समर्थन दिया है। प्रतीक आवंटन के दौरान नुसरत ने ऑप्शन में छड़ी को भी चुनाव चिह्न के रूप में दिए जाने की मांग की, जो सुभासपा का चुनाव चिह्न माना जाता है, लेकिन भाजपा को समर्थन देने वाली सुभासपा ने इस चुनाव चिह्न को अधिकृत नहीं कराया। ऐसे में यह चुनाव चिह्न निर्वाचन आयोग में फ्री चिह्न के रूप में है, जबकि गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में पांच प्रतिशत से अधिक राजभर मतदाता हैं। ऐसे में भाजपा को लगता है कि छड़ी को लेकर जनता में भ्रम फैल गया है और यह छड़ी भाजपा प्रत्याशी के लिए परेशानी का सबब बन गई है।
दो यादवों की भिड़ंत
देश की हॉट सीटों में शामिल आजमगढ़ में इन दिनों सियासी पारा काफी चढ़ा हुआ है। सपा हर हाल में इस सीट पर काबिज होना चाहती है तो भाजपा भी एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। नाक की लड़ाई बन चुकी इस सीट पर दो यादवों की भिड़ंत में सबकी नजर दलित मतदाताओं के रुख पर है। ५ बार से जीत रही कांग्रेस को १९८९ में बसपा हराकर यहां के सियासी मिजाज को बदलकर रख दिया। १९९६ से २००४ तक हुए चार चुनावों में इस सीट से बसपा और सपा ही बारी-बारी जीतती रही हैं। २००९ में भाजपा ने यह क्रम तोड़ा। २०१४ में मुलायम सिंह यादव ने यह सीट फिर से सपा की झोली में डाल दी। पर, सबसे बड़ी लकीर खींची अखिलेश यादव ने। २०१९ में ६०.४ फीसदी के बड़े वोट शेयर के साथ उन्होंने जीत दर्ज की। हालांकि, उनके सीट खाली करने के बाद सपा अपना करिश्मा नहीं दोहरा पाई। दिनेश यादव निरहुआ ने सपा से उतरे धर्मेंद्र यादव को शिकस्त देकर भगवा परचम फहरा दिया। अब धर्मेंद्र यादव और निरहुआ फिर से मैदान में हैं। सैफई परिवार के लिए यह सीट साख का सवाल है। वहीं निरहुआ मोदी-योगी के सहारे नजर आ रहे हैं। बसपा ने मशहूद अहमद को मैदान में उतारकर मुकाबले को रोमांचक बना दिया है।
चुप्पी बनी चुनौती
मतदान की तारीख नजदीक आने के साथ इलाहाबाद संसदीय सीट के राजनीतिक समीकरण भी पल-पल बदलने लगे हैं। ऊंट किस करवट बैठेगा, इसे समझना राजनीति के पंडितों के लिए भी आसान नहीं रह गया है। जानकारों के अनुसार, जातीय गोलबंदी पर टिके इस चुनाव में अनुसूचित जाति के वोटर निर्णायक होते दिख रहे हैं। इस बार हालात कुछ जुदा नहीं दिख रहे और हैट्रिक लगाने की तैयारी में जुटी भाजपा को कांग्रेस के उज्ज्वल रमण सिंह की कड़ी चुनौती मिल रही है। इलाहाबाद में सवा अठारह लाख से अधिक मतदाता हैं। ब्राह्मणों और मल्लाहों का गठजोड़ पिछले दो चुनावों में भाजपा को काफी रास आया, लेकिन मेजा से सपा विधायक संदीप पटेल तथा इन तीनों बिरादरी के कई अन्य नेता कांग्रेस के उज्ज्वल के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। इसके अलावा बसपा ने भी रमेश पटेल को मैदान में उतारा है। ऐसे में भाजपा इन मतों का बिखराव कितना रोक पाती है, देखना होगा। अनुसूचित जाति के वोटर भाजपा, बसपा और कांग्रेस की तरफ किस हिस्सेदारी में जाते हैं, चुनाव का नतीजा इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। लेकिन मतदाताओं की चुप्पी से बीजेपी परेशान है।

अन्य समाचार