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बब्बा बोलो ना…वाराणसी में मोदी का विरोध

अरुण कुमार गुप्ता

पांचवें चरण के लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों द्वारा जोर-शोर से प्रचार किया जा रहा है। इसी कड़ी में वाराणसी के विधायक सौरभ श्रीवास्तव मोदी के लिए बोट मांगने के लिए वाराणसी की गलियों में घूम रहे हैं, लेकिन इस दौरान उन्हें अस्सी नगवां क्षेत्र के लोगों के विरोध का सामना भी करना पड़ा है। लोगों की नाराजगी को देखते हुए विधायक ने समस्या के समाधान का आश्वासन दिया। नाराजगी का कारण अस्सी नगवां क्षेत्र के लगभग ३०० मकानों को एसडीएम सदर द्वारा फर्जी तरीके से नाम काटकर उसे सार्वजनिक जमीन घोषित कर देना बताया जाता है। कुछ दिनों पूर्व कमिश्नर कौशल राज शर्मा, एसडीएम सदर सार्थक अग्रवाल ने क्षेत्र में पहुंचकर सर्वे भी किया था। लोगों का कहना है कि जगन्नाथ कॉरिडोर के नाम पर हम लोगों को उजाड़ने का काम किया जा रहा है। क्षेत्र के लोगों के विरोध को देखते हुए विधायक सौरभ श्रीवास्तव ने सादे पेपर पर लिखित आश्वासन दिया है। हालांकि, विधायक के आश्वासन के बावजूद लोगों की नाराजगी दूर नहीं हुई और वह चुनाव प्रचार करने आने वाले नेताओं का विरोध कर रहे हैं।

बेटे की री लॉन्चिंग!
राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य एक तीर से दो शिकार करना चाहते हैं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि स्वामी प्रसाद ने जानबूझकर कुशीनगर लोकसभा सीट से बेटे का नामांकन करवाया है, ताकि यदि किसी कारणवश उनका नामांकन रद्द होता है तो बेटा चुनाव लड़ सके। उनके बेटे उत्कृष्ट मौर्य ने कुशीनगर लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है। स्वामी प्रसाद मौर्य काफी समय से अपने बेटे की राजनीति में जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनके बेटे दो बार यूपी की ऊंचाहार सीट से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन दोनों बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। स्वामी प्रसाद ने नई पार्टी बनाने के बाद लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को समर्थन देने का एलान किया था। हालांकि, उन्हें उम्मीद थी कि वो कुशीनगर से गठबंधन के उम्मीदवार हो सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब लोग कह रहे हैं स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे का चुनावी मैदान में उतरना एक तरह से री लॉन्चिंग का प्रयास ही है।

भाजपा में भितरघात
बुंदेलखंड की महत्वपूर्ण बांदा चित्रकूट लोकसभा सीट पर इस बार विकास के मुद्दों पर जातीय समीकरण हावी रहेगा। ऐसा संकेत हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों ने दिया है। इतिहास के आईने के परिदृश्य पर नजर डालें तो यहां अधिकतर कुर्मी और ब्राह्मण प्रत्याशियों का दबदबा रहा है। इस बार सपा, कांग्रेस और भाजपा ने कुर्मी बिरादरी के प्रत्याशी पर दांव लगाया है। वहीं बसपा ने ब्राह्मण कार्ड खेला है, जिससे भाजपा की चिंता बढ़ गई है। बसपा युवा प्रत्याशी मयंक द्विवेदी के चुनाव मैदान में आ जाने से भाजपा में भितरघात का खतरा मंडरा रहा है। साल २०१९ के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने कुर्मी बिरादरी के प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा था, जबकि सपा-बसपा गठबंधन ने वैश्य प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा था। लेकिन मोदी लहर में न विकास का मुद्दा हावी रहा और न जातिवाद का रंग चढ़ा। नतीजतन जातिवाद की दीवारें टूट गई थीं। २०१९ में किसी राजनीतिक दल ने ब्राह्मण वर्ग को तरजीह नहीं दी थी। इस बार भी गठबंधन और भाजपा ने कुर्मी प्रत्याशी पर ही दांव लगाया है। इस बार भी कोई राजनीतिक दल ब्राह्मण वर्ग को तवज्जो नहीं दे रहा था। लंबी खामोशी के बाद बसपा ने मयंक द्विवेदी के रूप में ब्राह्मण युवा प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा ने इस बार भी किसी ब्राह्मण को महत्व नहीं दिया। इससे ये भी चर्चा है कि भाजपा में भितरघात का खतरा बढ़ता ही जा रहा है।

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