मुख्यपृष्ठस्तंभबब्बा बोलो ना...राजभर को समझ आई चिकित्सा व्यवस्था

बब्बा बोलो ना…राजभर को समझ आई चिकित्सा व्यवस्था

अरुण कुमार गुप्ता

उत्तर प्रदेश सरकार की चिकित्सा व्यवस्था की पोल खुद कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने ही खोल दी है। दरअसल, कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने अपनी माता को सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद लखनऊ स्थित मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया था। हालांकि उनकी मां को अस्पताल बचा नहीं पाया, उल्टे चार दिन के इलाज खर्च ४ लाख रुपए पकड़ा दिया। चार लाख रुपए बिल देखकर ओमप्रकाश राजभर का माथा ठनक गया। उन्होंने अस्पताल प्रशासन पर खुलेआम लूट का आरोप लगाते हुए कहा कि यदि मात्र चार दिन का इतना भारी भरकम बिल एक नेता से वसूला जा रहा है तो आम जनता के साथ अस्पताल क्या करते होंगे। उन्होंने मेदांता अस्पताल को लुटेरा तक करार दे दिया। इसकी शिकायत ओमप्रकाश राजभर ने डिप्टी सीएम बृजेश पाठक से की। ओपी राजभर ने मेदांता हॉस्पिटल की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए। ओमप्रकाश राजभर आगे कहते हैं हम चूकने वाले नहीं हैं। हम तो उत्तर प्रदेश के २५ करोड़ लोगों और जनप्रतिनिधियों को सलाह दे रहे हैं कि प्राइवेट अस्पतालों में मत जाइए। ओमप्रकाश राजभर के इस दर्द को देखते हुए लोग अब यही कह रहे हैं  नेताजी को समझ में आ गया कि उत्तर प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था कैसी है।
चुनाव का सामूहिक बहिष्कार
योजनाओं का लाभ न मिलने से नाराज प्रतापगढ़ के दो गांव के लोगों ने चुनाव का सामूहिक बहिष्कार कर दिया है। प्रतापगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत सदर विधानसभा के रंजीतपुर चिलबिला के भोरई का पुरवा और डडवा गांव के लोगों ने बहिष्कार की घोषणा की है। दोनों गांव न तो नगर पालिका और न ही ग्राम पंचायत में आते हैं। गांव वाले वर्षों से जनप्रतिनिधि पाने के लिए प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं। गांववालों का कहना है कि दोनों गांवों को नगरपालिका या ग्रामपंचायत में शामिल किया जाए। करीब ४,००० लोगों के इन गांवों में १४,०० मतदाता हैं और यह लोग अपनी मांग को लेकर धरना प्रदर्शन भी कर रहे हैं। इनका कहना है कि नगर पालिका का जब परिसीमन किया गया तो उनके दोनों गांव को मझधार में छोड़ दिया गया। ऐसे में इन लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। नाराज गांव वालों ने अब चुनाव का बहिष्कार किया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि गांव वालों का धरना प्रदर्शन या चुनाव बहिष्कार की घोषणा से प्रशासन जागता है या नहीं।
बसपा के चक्रव्यूह में बीजेपी
पिछले कुछ चुनावों से राजनीतिक गलियारों में मायावती के ऊपर भारतीय जनता पार्टी की बी टीम होने का टैग लग रहा था, पर इस बार जिस तरीके से बहुजन समाज पार्टी ने चुन-चुन कर प्रत्याशी उतारे हैं,उसे देखकर कह सकते हैं कि वह टैग अब हट जाएगा। इस बार बसपा के कुछ उम्मीदवार भाजपा उम्मीदवारों के सामने कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। बसपा ने अभी तक अपने जारी प्रत्याशियों की सूची में ११ सवर्ण प्रत्याशी उतारे हैं, इसमें से चार ब्राह्मणों को बहुजन समाज पार्टी ने टिकट दिया है। बहुजन समाज पार्टी ने इस बार अपनी एक बार फिर से सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति को तैयार कर विरोधी दलों के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। बहुजन समाज पार्टी ने अभी तक अपने प्रत्याशियों में बड़ी संख्या में ब्राह्मण, मुस्लिम और क्षत्रिय उम्मीदवारों को उतार कर २००७ जैसी सोशल इंजीनियरिंग पर मजबूत दांव लगाया है। बसपा के सूत्रों की मानें तो बहुजन समाज पार्टी की मुखिया को ऐसा लगता है कि बसपा के वैâडर वोट बैंक के साथ-साथ अगर ब्राह्मण व क्षत्रिय उम्मीदवारों के सहारे उनका वोट एकजुट हो जाए तो कुछ भी हो सकता है।ऐसे में अब यही कहा जा रहा है कि बसपा के इस चक्रव्यूह से भाजपा कैसे निकलेगी।

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