- अतीक अहमद सहित ३ को उम्रकैद
- उमेश पाल अपहरण मामले में अशरफ सहित ७ बरी
- १७ साल बाद मिला पीड़ित परिवार को इंसाफ
सामना संवाददाता / प्रयागराज
गुनहगार कितना भी पावरफुल और शातिर क्यों न हो, उसको गुनाहों की सजा मिलती ही है। साथ ही गुनहगार को जब पुलिस और कोर्ट का सामना करना पड़ता है तो उसकी हालत पतली हो जाती है। कुछ ऐसा ही नजारा प्रयागराज के एमपी एमएलए कोर्ट में देखने को मिला। आखिरकार १७ साल बाद पीड़ित परिवार को इंसाफ मिला। गुनाहों का शतक लगाने वाला आरोपी बाहुबली अतीक अहमद को जब पुलिस ने कोर्ट में पेश किया तो पहली सजा पाने पर ही वह रोने लगा। कल उमेश पाल अपहरण मामले में कोर्ट ने अतीक सहित तीन आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इसके अलावा अतीक के भाई अशरफ सहित ७ लोगों को बरी कर दिया।
बता दें कि अतीक अहमद को उमेश पाल अपहरण कांड में कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। अतीक के साथ दोषी करार दिए गए दिनेश पासी और सौलत हनीफ को भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। हालांकि, अतीक के भाई अशरफ समेत सात जीवित आरोपी दोष मुक्त करार दिए गए हैं। माफिया अतीक पर आज से ४४ साल पहले पहला मुकदमा दर्ज हुआ था। तब से अब तक उसके ऊपर सौ से अधिक मामले दर्ज हुए, लेकिन पहली बार किसी मुकदमे में उसे दोषी ठहराया गया है।
इस मामले में दोषी करार
दरअसल, २५ जनवरी २००५ को इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा सीट से नवनिर्वाचित विधायक राजू पाल पर जानलेवा हमला हुआ। शहर के पुराने इलाकों में शुमार सुलेमसराय में बदमाशों ने राजू पाल की गाड़ी पर गोलियों की बौछार कर दी थी। सैकड़ों राउंड फायरिंग से गाड़ी में सवार लोगों का पूरा शरीर छलनी हो गया। बदमाशों ने फायरिंग रोकी तो समर्थक राजू पाल को एक टैंपो में लेकर अस्पताल ले जाने लगे। हमलावरों ने पीछा करके फिर फायरिंग शुरू कर दी। जब तक राजू पाल अस्पताल पहुंचे, उन्हें १९ गोलियां लग चुकी थीं। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। राजू पाल के दोस्त उमेश पाल इस हत्याकांड के मुख्य गवाह थे।
उमेश पाल के ऊपर खतरा मंडराने लगा था
राजू पाल हत्याकांड में गवाह बनने के बाद उमेश पाल के ऊपर खतरा मंडराने लगा था। अतीक ने कई लोगों से कहलवाया कि वह केस से हट जाए नहीं तो उसे दुनिया से हटा दिया जाएगा। उमेश नहीं माने तो २८ फरवरी २००६ को उसका अपहरण कर लिया गया। उसे करबला स्थित कार्यालय में ले जाकर अतीक ने रात भर पीटा था। उससे हलफनामा पर दस्तखत भी करवा लिए थे। अगले दिन उमेश ने अतीक के पक्ष में अदालत में गवाही भी दे दी। हालांकि, वह समय बदलने का इंतजार कर रहे थे। जब २००७ में बसपा सरकार बनी तो उमेश ने अपने अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया। इसी मुकदमे में पैरवी कर २४ फरवरी को उमेश घर लौट रहे थे, तभी उनकी हत्या कर दी गई।
दर्ज हो चुके हैं १०१ मुकदमे
अतीक के खिलाफ कुल १०१ मुकदमे दर्ज हुए। वर्तमान में कोर्ट में ५० मामले चल रहे हैं, जिनमें एनएसए, गैंगस्टर और गुंडा एक्ट के डेढ़ दर्जन से अधिक मुकदमे हैं। उस पर पहला मुकदमा १९७९ में दर्ज हुआ था। इसके बाद जुर्म की दुनिया में अतीक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। हत्या, लूट, रंगदारी, अपहरण के न जाने कितने मुकदमे उसके खिलाफ दर्ज होते रहे। मुकदमों के साथ ही उसका राजनीतिक रुतबा भी बढ़ता गया।
एनएसए भी लग चुका है
१९८९ में वह पहली बार विधायक बना तो जुर्म की दुनिया में उसका दखल कई जिलों तक हो गया। १९९२ में पहली बार उसके गैंग को आईएस २२७ के रूप में सूचीबद्ध करते हुए पुलिस ने अतीक को इस गिरोह का सरगना घोषित कर दिया। १९९३ में लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड ने अतीक को काफी कुख्यात किया। गैंगस्टर एक्ट के साथ ही उसके खिलाफ कई बार गुंडा एक्ट की कार्रवाई भी की गई। एक बार तो उस पर एनएसए भी लगाया जा चुका है।
पुलिस की पकड़ से दूर अतीक का बेटा असद
यूपी पुलिस और एसटीएफ की टीमें अतीक अहमद के बेटे असद को तलाश रही हैं। बता दें कि असद ने ही इस शूटआउट को लीड किया था। पुलिस ने असद पर ५ लाख रुपए का इनाम घोषित किया। बताया जा रहा है कि असद घटना वाली रात से ही घर से फरार है। हालांकि, हाल ही में असद के करीबियों की घेराबंदी के लिए एसटीएफ ने तीन घंटे ऑपरेशन चलाया। तीन थानों और पांच चौकियों के २०० पुलिसकर्मी लगाए गए। टोल पर ट्रक से लेकर क्रेन तक खड़ी की गई। खेतों की तरफ बैरियर लगाए। फिल्मी अंदाज में शीशा तोड़कर कार की चाबी निकालकर संदिग्धों को पकड़ लिया लेकिन असद हाथ नहीं आया और वो अभी तक पुलिस की पकड़ से दूर है।