मनमोहन
लोकसभा चुनाव की डुगडुगी बज गई है। १९ अप्रैल से ७ चरणों में पूरे देश में वोटिंग होगी। राजस्थान की बात करें तो राज्य की सभी २५ सीटों पर लोकसभा का चुनाव दो फेज में कराया जाएगा, वोटिंग १९ और २६ अप्रैल को होगी। पहले फेज में १२ लोकसभा सीटों पर तो वहीं दूसरे फेज में १३ सीटों पर वोटिंग होगी।
पहले फेज (१९ अप्रैल )में गंगानगर, बीकानेर, चुरू, झुंझुनूं, सीकर, जयपुर, जयपुर ग्रामीण, अलवर, भरतपुर, करौली – धौलपुर, दौसा, नागौर और दूसरे फेज (२६ अप्रैल) में अजमेर, बांसवाड़ा, बाड़मेर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, जालौर, झालावाड़-बारां, जोधपुर, कोटा, पाली, राजसमंद, टोंक-सवाई माधोपुर, उदयपुर में वोटिंग होगी। वोटों की गिनती ४ जून को की जाएगी।
खैर अब आते हैं असली मुद्दे पर। भारतीय जनता पार्टी चुनाव से पहले भले ही बड़ी-बड़ी फेंक रही है लेकिन उसे इस बात का एहसास है कि इस चुनाव में उसके सामने खुद का पिछला प्रदर्शन दोहरा पाना बड़ी चुनौती होगी। जहां एक तरफ कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल अपनी पिछली हार को भुलाकर पूरे दमखम से मोदी के रथ को रोकने की जुगत में लगे हैं, वहीं वे भाजपाई जो टिकट पाने की आस में बैठे हुए थे और उन्हें टिकट नहीं मिल पाया है, रथ के घोड़ों को बिदकाने में लगे हैं। और इन सब में सबसे बड़ी चुनौती है ‘बाप’! भले ही भारतीय जनता पार्टी खुद को आदिवासियों का उद्धार करने वाली पार्टी के तौर पर प्रचारित करने में कोई मौका नहीं चूकती लेकिन आदिवासी भाजपा की हकीकत जानते हैं इसलिए वे राष्ट्रीय स्तर पर एक राजनीतिक पार्टी के तौर पर भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर आने के लिए बेकरार हैं। भारत आदिवासी पार्टी, ‘बाप’ (ँAझ्), देशभर में ३० लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ी करेगी। यह मूलत: राजस्थान के मध्य प्रदेश और गुजरात से सटे भील आदिवासी बहुल इलाकों की पार्टी है। बीते १० सितंबर २०२३ को ही भारतीय आदिवासी पार्टी यानी ‘बाप’ की लॉन्चिंग हुई थी। मुख्यत: भील प्रदेश की मांग के साथ आदिवासियों को जमीन पर संवैधानिक हक दिलवाने के एजेंडे के साथ यह पार्टी ताल ठोंक कर खड़ी है। ‘बाप’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहनलाल रोत के मुताबिक भारत आदिवासी पार्टी राजस्थान में बांसवाड़ा, उदयपुर, टोंक, राजसमंद, दोसा जालौर, चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेगी। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि २०१४ में अनुसूचित जनजाति के वोट बटोर कर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी राह प्रशस्त की थी लेकिन पिछले १० सालों में भाजपा ने जिस तरह आदिवासियों की अनदेखी की है और उनको सुरक्षा देने वाले कानूनों में बदलाव किया जा रहा है उन्हें खत्म करने की कोशिश की जा रही है, उससे आदिवासियों में भाजपा के खिलाफ आक्रोश है। यह आक्रोश सिर्फ राजस्थान में ही नहीं पूरे हिंदुस्थान में भाजपा को भारी पड़ेगी।