गजेंद्र भंडारी
इन दिनों सोशल मीडिया पर ‘हम मिलकर बनाएंगे सचिन के सपनों का राजस्थान’ खूब चल रहा है। सचिन पायलट के फोटो के साथ उनके समर्थक सोशल मीडिया पर इस लाइन को शेयर कर रहे हैं। इससे पार्टी में थोड़ी बेचैनी दिखाई दे रही है। दरअसल, इससे ऐसा लग रहा है कि कहीं सचिन पायलट फिर बगावत तो नहीं करने वाले हैं। हालांकि, अब राजस्थान में कांग्रेस की सरकार नहीं रही और न ही वह पार्टी बदल रहे हैं, लेकिन इससे यह जरूर साफ हो रहा है कि वह अगली बार के लिए अपनी जमीन तैयार कर रहे हैं। वैसे, सचिन युवाओं की पसंद हैं और हो सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव तक वह पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं को पूरी तरह अपनी तरफ कर लें और पार्टी हाईकमान को पटा लें कि अगला चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़ा जाए।
वोट काट सकते हैं बसपा के उम्मीदवार
राजस्थान में बसपा ने ७ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। हालांकि, अब तक राजस्थान में बसपा का एक भी सांसद नहीं है। इस बार उन्होंने जयपुर, सीकर, चुरू, बीकानेर, धौलपुर-करौली और नागौर से प्रत्याशी खड़े किए हैं। हालांकि, उनके उम्मीदवारों की जीत की संभावना तो इस बार भी न के बराबर है, लेकिन उनके उम्मीदवार भाजपा को फायदा करा सकते हैं। इसकी एक वजह यह है कि अब बसपा का जनाधार कम होता जा रहा है और इस पार्टी को सिर्फ वोट कटवा के रूप में ही देखा जाता है। बसपा के उम्मीदवार इंडिया गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कहा जा रहा है कि बसपा अब वोट काटने के लिए और भाजपा को जिताने के चक्कर में ही अपने उम्मीदवार खड़े करती है। कल तक भाजपा की बुराई करने वाली पार्टी की प्रमुख मायावती अब इस पार्टी के खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोलती हैं।
इस बार बहुत भागना पड़ेगा
इस बार नेताओं के चुनाव का दायरा बढ़ गया है। इसकी वजह यह है कि राजस्थान में इस लोकसभा चुनाव में ५ लाख वोटर्स बढ़ गए हैं। पिछले २० साल में इन वोटर्स की संख्या बढ़ी है। इससे एक बात और है कि युवा वोटर्स की संख्या में इजाफा हुआ है। जाहिर है, युवा वोटर्स रोजगार के मुद्दों पर ही वोट करेंगे, इसलिए सबसे ज्यादा चिंता सत्ताधारी पार्टी की बढ़ सकती है। युवाओं को लुभाना इस बार थोड़ा मुश्किल हो सकता है। खैर, वोटर्स बढ़े हैं, तो अब नेताओं की भाग-दौड़ भी बढ़ गई है। जहां पहले ५ लाख कम लोगों तक पहुंचना होता था, अब ५ लाख ज्यादा तक जाना होगा। प्रदेश में गर्मी लगातार बढ़ रही है और राजनीतिक पारा भी चढ़ रहा है, ऐसे में वोटर्स तक पहुंचने में नेतओं के पसीने छूटने वाले हैं।