मुख्यपृष्ठस्तंभराजस्थान का रण : बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की जाएगी कुर्सी?

राजस्थान का रण : बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की जाएगी कुर्सी?

गजेंद्र भंडारी

राजस्थान में लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं। बीजेपी को इस बार प्रदेश में ११ सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। बीजेपी का ऐसा प्रदर्शन पिछले १० वर्षों में सबसे कम रहा। हाल में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी २०० में से ११५ सीटें जीतकर सरकार में आई, लेकिन लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी है। अब प्रदेश में बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं भी होने लगी हैं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश में सतीश पूनिया को हटाकर चित्तौड़गढ़ से सांसद सीपी जोशी को प्रदेश की कमान सौंपी गई, उनके नेतृत्व में बीजेपी ने विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुए सरकार बनाई। वहीं अब लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नुकसान के बाद सियासी गलियारों में ऐसी चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया कि अब नए प्रदेशाध्यक्ष की तलाश की जा रही है। सीपी जोशी के इस्तीफे की चर्चाओं के बीच खबर आ रही है कि भाजपा संगठन में अभी बदलाव नहीं होगा। रिपोर्ट के अनुसार, अभी सीपी जोशी ही प्रदेश की कमान संभालेंगे। प्रदेश में आने वाले दिनों में ५ सीटों पर उपचुनाव और एक सीट पर राज्यसभा का चुनाव होगा। जोशी इन चुनावों तक प्रदेशाध्यक्ष पद पर बने रहेंगे। इसके बाद उन पर आलाकमान कोई फैसला ले सकता है। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अच्छी वापसी की है। कांग्रेस ने गठबंधन के साथ ११ सीटें जीती है। यही वजह है कि बीजेपी में न सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर, बल्कि कुछ और नेताओं व मंत्रियों तक की कुर्सी पर खतरा माना जा रहा है। देखना होगा कि आने वाले वक्त में किसका पत्ता कटता है?

कांग्रेस को फायदा हुआ
राजस्थान की बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने १० साल बाद कब्जा कर लिया है। निर्दलीय प्रत्याशी और शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी के लड़ने का फायदा कांग्रेस को मिला, क्योंकि बीजेपी प्रत्याशी कैलाश चौधरी का वोट कटने से इस सीट पर वह तीसरे नंबर पर खिसक गए, जबकि खुद भाटी भी दूसरे नंबर पर ही रहे। वहीं उम्मेदाराम बेनीवाल ने इस सीट को जीत लिया। चुनाव के नतीजे भले ही कांग्रेस के पक्ष में आए हों, लेकिन पार्टी में थोड़ी फूट पड़ी है। बायतु से कांग्रेस विधायक हरीश चौधरी ने दिल्ली में अलग-अलग कुछ कांग्रेसी नेताओं की शिकायत की। हरीश चौधरी का कहना है कि इन कांग्रेसी नेताओं ने लोकसभा चुनाव में पार्टी का साथ न देकर निर्दलीय प्रत्याशी का साथ दिया है। इस मामले में पूर्व मंत्री अमीन खान को पार्टी ने चुनाव के मतदान के दिन ही पार्टी से ६ साल के लिए निष्कासित कर दिया था, क्योंकि उन्होंने इस चुनाव में भाटी के समर्थन में वोट की अपील की थी। अमीन खान के निष्कासन से भी कांग्रेस को फायदा हुआ। हालांकि, पार्टी नेताओं के रिश्तों में सुधार हो रहा है। उधर चुनाव के दौरान भाटी अपनी जीत को लेकर बहुत ज्यादा आत्मविश्वास से भरे हुए थे। इसकी वजह भी यही मानी जा रही है कि वह कांग्रेस के नेताओं के दम पर ही जीत के सपने देख रहे थे। हालांकि, कांग्रेस के नेताओं का समर्थन भी उनके काम नहीं आ सका और आखिरकार वो हार गए।

हार और जीत का आकलन
राजस्थान में बीजेपी जीतकर भी हार गई और कांग्रेस हारकर भी बाजीगर बन गई है। अब जीत-हार, सफलता, नाकामी हर चीज का पोस्टमार्टम करने की तैयारी है। दिल्ली में मंथन चल रहा है कि आखिर बीजेपी इतनी कम सीटों पर कैसे सिमट गई, वहीं कांग्रेस वाले भी सफलता का सेहरा बांधने की तैयारी में है, किस पर गिरेजी गाज और किसके सिर सजेगा ताज। सियासत में मतभेद दो पार्टियों में होते हैं, लेकिन लोकसभा के चुनाव में जिस तरह से देखा गया कि बीजेपी में बहुत से नेताओं ने एक-दूसरे का साथ ही नहीं दिया। यहां तक कि कई बड़े नेता भी चुनाव मैदान में प्रचार करने तक नहीं आए और जो नेता आए भी उन्हें भी अपनों का सपोर्ट काफी कम मिला, जिसका नतीजा ये रहा कि बीजेपी जीती हुई बाजी भी राजस्थान में हार गई। किरोड़ी लाल मीणा अकेले ही मेहनत करते रहे। प्रचार में पूरी ताकत झोंक रखी थी, लेकिन दूसरी ओर वसुंधरा राजे काफी सुस्त दिखीं। उन्होंने प्रचार तो किया, लेकिन सिर्फ अपने बेटे दुष्यंत सिंह की सीट बारां-झालावाड़ पर। जहां से दुष्यंत सिंह चुनाव तो जीत गए, लेकिन मोदी के मंत्रिमंडल में उन्हें जगह नहीं दी गई। पांच बार के सांसद रहे दुष्यंत सिंह जब मंत्री नहीं बने तो मां वसुंधरा को भी इस बात का काफी मलाल हो गया, महारानी इन दिनों दिल्ली में ही डेरा डाली हुईं हैं और अपने पुराने साथी नेताओं से मुलाकात कर रही हैं।

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