राजन पारकर
कल भिवंडी में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने यह स्पष्ट कर दिया कि भाजपा इस बार १५२± का टारगेट लेकर लड़ेगी और सहयोगियों के साथ उसका टारगेट २२०± का होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो भाजपा ने अपने दोनों सहयोगी गुटों को इस बात के साफ संकेत दे दिए हैं कि वो आगामी विधानसभा चुनाव में कम-से-कम १८८ से १९० सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। कुछ सीटें अपने छोटे सहयोगी दलों और निर्दलीयों के लिए निकालकर बची हुई शेष सीटें वो अपने सहयोगियों मतलब शिंदे-दादा गुट के लिए छोड़ सकती है। भाजपा की इस घोषणा से अपनी-अपनी पार्टियों को तोड़कर आए ‘आयाराम’ नेताओं के ‘सुंदर’ सपने जरूर-जरूर टूटे होंगे। उनके सामने यह सवाल भी खड़ा हुआ होगा कि आखिर वे लड़ेंगे कितनी सीटों पर और जीतेंगे कितनी सीटें?
महाराष्ट्र विधानसभा में कुल २८८ सीटें हैं। भाजपा की घोषणा को माने तो वो १५२± सीटें अकेले के दम पर जीतने का लक्ष्य लेकर लड़ेगी। मतलब बिल्कुल साफ है कि इतनी सीटों को जीतने के लिए यदि वो किसी ‘लहर’ पर सवार होती है तब भी उसे कम-से-कम २०० सीटों पर चुनाव लड़ना ही होगा। यानी वो अपने सहयोगी गुटों के लिए ८८-९० से ज्यादा सीटें नहीं छोड़ पाएगी। एक बार ये भी मान लें कि भाजपा ने किसी तरह सबके लिए १०० सीटें भी छोड़ दीं, तब भी क्या सहयोगी एकनाथ शिंदे और अजीत पवार गुट अपने लोगों को इतनी सीटों से संतुष्ट कर पाएंगे? चलो, मान लो एक बार उन्होंने ऐसा कर भी लिया तो सवाल यह है कि क्या इतनी सीटें लेकर वे राज्य का मुख्यमंत्री बनने का सपना पाल सकते हैं क्या?
बता दें कि शिंदे और दादा गुट इन दिनों एक-दूसरे से आगे निकलने और मुख्यमंत्री का पद बचाने और दावा मजबूत करने के लिए एक से बढ़कर एक घोषणाएं कर रहे हैं। अभी हाल ही में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने जब खुद की ८० सीटें जीतकर लाने का दावा किया था तो उसके प्रत्युत्तर में उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने ९० सीटें जीतने का भरोसा दिला दिया था, ताकि मुख्यमंत्री पद पर उनका दावा मजबूत रहे। अब इन दोनों के सामने अड़चन यह है कि यदि भाजपा ने इन्हें खुद के लिए आरक्षित रखी कुछ सीटें घटाकर और अपने निर्दलीय और छोटी पार्टियों के नाम पर कुछ सीटें दबाने के बाद बची (बाकी
हुई सीटों में से आधी-आधी सीटें भी दी, तब भी उनके हिस्से ४०-४५ से अधिक सीटें नहीं आएंगी। ऐसे में वे ८०-९० सीटें जीतकर लाने का दावा हकीकत में वैâसे बदल पाएंगे और मुख्यमंत्री पद पर दावा वैâसे ठोक पाएंगे? इसका उन्हें विचार करना होगा।
बता दें कि २०१९ में भी भाजपा ने शिवसेना के साथ गठबंधन में रहते हुए १८ सीटें छोटे दलों व निर्दलीय उम्मीदवारों के नाम पर हथिया ली थीं। इस बार भी वो ऐसा करने से नहीं चूकेगी। कल भाजपा ने भिवंडी से अपने दोनों सहयोगियों को इस बात के भी साफ संकेत दे ही दिए कि यदि उन्हें फिर से उसके साथ सहयोगी बनकर सरकार में शामिल होना है तो मुख्यमंत्री पद का सपना देखना छोड़ दें। १५२± का नारा उन्हें यही संकेत दे रहा है। अब यह संकेत उन्हें कितना समझ आया है ये तो वही जाने पर भाजपा के २०२४ के ‘महाविजय संकल्प’ में छिपी सहयोगियों की ‘हार’ जनता को भी अब तो साफ-साफ नजर आने ही लगी है।