अनिल तिवारी
इन दिनों आए दिन एक खबर सुनने को मिलती है कि फलां व्यक्ति को प्रधानमंत्री जी ने ‘स्वच्छ भारत’ मिशन का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया, फलां को उसने नियुक्त किया, इसने नियुक्त किया है, वगैरह-वगैरह। बॉलीवुड के सुपर स्टार्स से लेकर कॉमेडियन, तमाम खिलाड़ी और न जाने कौन-कौन ‘स्वच्छ भारत’ मिशन के ब्रांड एंबेसडर बन चुके हैं, पर इनमें से किसी भी व्यक्ति को आपने कभी हाथ में झाड़ू लिए देखा है? वैक्यूम क्लिनर वगैरह? अच्छा छोड़िए, किसी को कभी आपने खुद के घर की सफाई करते हुए सुना है? नहीं न! भारत स्वच्छ होना चाहिए। बिल्कुल होना चाहिए पर भारत को स्वच्छ बनाने के लिए सेलेब्रिटीज को ब्रांड एंबेसडर बनाने की जरूरत नहीं है, बल्कि ‘ब्रांड’ सफाई को सेलेब्रिटी बनाने की जरूरत है और ये कैसे बनेगी? यह बनेगी देश की १३० करोड़ गरीब-मध्यमवर्गीयों की आबादी को ब्रांड एंबेसडर बनाकर। क्योंकि ये वो लोग हैं, जो हाथ में झाड़ू लेने से नहीं कतराते, इनके घरों में सफाई करने को नौकर नहीं हैं। यही देश के असली ब्रांड एंबेसडर हैं।
यह बात अलग है कि गंदगी फैलाने में भी देश की इसी १३० करोड़ की आम-खास आबादी का ही बड़ा योगदान है, इसलिए यदि देश में सफाई करानी है तो इन्हीं के हाथों में झाड़ू थमानी पड़ेगी। दिल्ली में इन्होंने झाड़ू चलाई, दिल्ली की ‘गंदगी’ साफ हो गई। ५-७ वर्ष बीत गए हैं, अभी तक दोबारा वहां गंदगी नहीं हुई है। अलबत्ता, गंदगी केवल भौतिक तौर पर कचरे की ही नहीं होती। गंदगी वैचारिक भी हो सकती है, राजनैतिक भी हो सकती है, कट्टरवाद की गंदगी भी हो सकती है। अराजकवादी गंदगी भी हो सकती है, देश में दबंगई का कचरा भी हो सकता है। इसलिए भौतिक कचरे के साथ-साथ इस कचरे को भी साफ करने की जरूरत है। जो देश की किसी सेलेब्रिटी को ब्रांड एंबेसडर बनाकर साफ नहीं की जा सकती। उसे साफ करना है तो देश की समस्त आबादी के, समस्त हाथों की जरूरत होगी। तब जाकर कहीं इस गंदगी की सफाई संभव है। हर किसी को ब्रांड एंबेसडर बनाने की जरूरत है।
वैसे भी इन दिनों, इस डिजिटल युग में हर व्यक्ति ‘सफाई’ का ब्रांड एंबेसडर है। वो रोज सुबह आंख खुलते ही साफ-सफाई में जुट जाता है। पहले के जमाने में लोग सुबह आंख खोलते ही सबसे पहले अपने ‘हाथ’ देखते थे। हथेली खोलकर उसे तीन बार चूमते थे और कहते थे, ‘कराग्रे वसते लक्षमी, करमध्ये सरस्वती, करमूले तू गोविंद: प्रभाते करदर्शनम्!’ आज क्या होता है! इंसान आंख खोलता है और सबसे पहले मोबाइल स्क्रीन देखता है। फिर बोलता है ‘कराग्रे वसते मोबाइल, करमध्ये व्हॉट्सऐप, करमूले फेसबुक-इंस्टा, संपूर्ण दिवसे मोबाइल दर्शनम्!’ और फिर जुट जाता है सफाई में। दिन भर ‘गुड मॉर्निंग’, ‘गुड डे’, ‘गुड नाइट’ वगैरह-वगैरह का ‘बेड कचरा’ मोबाइल की मेमरी में भर चुका होता है। बेचारा सफाईकर्मी एक-एक करके उसे साफ करता रहता है। दिन का एक से दो घंटा तो वो इसी गंदगी को साफ करने में बिता देता है। परंतु जो फर्जी दावों के, एक-दूसरे की मानहानि के, किसी को फरिश्ता तो किसी को शैतान बनाने के स्वार्थ की गंदगी पैâलती है, जो जनमानस के मस्तिष्क में जमा होती है वो साफ नहीं हो पाती। जिनमें दूरदृष्टिता है वो तो किसी तरह अपने दिमाग के किवाड़ बंद करके, उस गंदगी से बच जाते हैं, पर जो भावुक हैं, जो आम समझ रखते हैं, जो दुनिया से लापरवाह रहते हैं, जो तथ्यों की जानकारी में कमजोर हैं, जिनके पास सीमित ज्ञान है या जो पढ़ने-समझने में रुचि नहीं रखते, उनके दिमागों में ये वैचारिक गंदगी, ये घृणा की सड़ांध, घर कर जाती है। फिर यही गंदगी धार्मिक कट्टरवाद में भी बदलती है और राजनैतिक अंधविश्वास में भी। जिस तरह आपकी ‘डिजिटल लाइफ’ में ऑनलाइन वायरस और इंटरनेट मॉलवेयर का खतरा लगातार मंडराता रहता है, उसी तरह आपकी ‘फिजिकल लाइफ’ में इस वैचारिक वायरस और पॉलिटिकल मॉलवेयर का संकट गहराता जा रहा है। इसे पहचानिए और सुरक्षित रहिए।
दुनिया भर में कितना जीबी-टीबी डिजिटल कचरा रोज पैâलता होगा, उसका मुझे अंदाजा नहीं है, पर मुझे इस बात का अंदाजा जरूर है कि वो सारा कचरा यही आम आदमी साफ करता है लेकिन फिर यही आम आदमी वो कचरा पैâलाता भी है। इसलिए इस आम इंसान को ही सबसे पहले सफाई का ब्रांड एंबेसडर बनाना जरूरी है और जरूरी है ‘ब्रांड सफाई’ को सेलेब्रिटी बनाना। जब तक ‘ब्रांड सफाई’ सेलेब्रिटी नहीं बनती तब तक न तो देश-दुनिया का फिजिकल कचरा साफ हो सकता है, न ही डिजिटल। सच मानिए कि इस समय देश में फिजिकल कचरा साफ करने से कई गुना ज्यादा जरूरी है देश में बढ़ते डिजिटल कचरे को साफ करना। क्योंकि ये न केवल आपके परिसर को गंदा कर रहा है, आपके समाज में गंदगी पैâला रहा है, बल्कि ये आपके दिमाग और आपकी आनेवाली नस्लों की सोच को भी प्रदूषित कर रहा है। यदि ये सोच और समझ साफ हो गई तो यकीन मानिए, देश की पूरी गंदगी साफ हो जाएगी। ट्रोलरों की फौज खत्म हो जाएगी और झोलरों के फर्जी दावे भी मिट जाएंगे। तब न तो किसी को फैक्ट चेक की जरूरत होगी, न ही वायरल सच्चाई खोजने की आवश्यकता। रोज सभी की ‘घड़ी’ का समय बचेगा और नए भारत की ‘मशाल’ खुद-ब-खुद जल उठेगी।