• अनिल तिवारी
कर्नाटक में भाजपा अपनी अकर्मठता और अक्षमता की वजह से हारी है, परंतु कुछ गैर राजनैतिक उत्साही व कांग्रेस से इतर कट्टरवादी पार्टियों के कुछ ‘स्वयंभू प्रवक्ताओं’ ने ध्रुवीकरण की चाह रखनेवालों के लिए अनुकूल माहौल बनाना शुरू कर दिया है। ये उत्साही और उन्मादी, कर्नाटक की जीत पर जितना बवाल काटेंगे, २०२४ में विपक्ष की स्थिति को उतना ही कमजोर करेंगे। इन अति उत्साहियों के कड़वे जश्न-जलसों का दौर व कट्टरवादी बयानों की झड़ी, यदि भाजपा को राजनीतिक लाभ की स्थिति में पहुंचा दे, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। बेअक्लों का यह बेजा बवाल भाजपा को रणनीतिक जीत की ओर ले जा रहा है।
‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ की तर्ज पर जारी बेवजह की बदजुबानी और चिढ़ पैदा करनेवाली हरकतों से देश के आम नागरिक की भावनाओं को ठेस पहुंचना स्वाभाविक है। कुछ कट्टरवादी मुसलमान तो खुलकर देश और सिस्टम के खिलाफ बोल रहे हैं, देश के हितों को प्रभावित करने में जुट गए हैं, ध्रुवीकरण की आग में पेट्रोल डालने का काम कर रहे हैं। वे इस जीत को मुसलमानों की जीत बता रहे हैं। इन लोगों को ऐसा करने से पहले समझ लेना चाहिए कि यह किसी धर्म विशेष की जीत नहीं है, बल्कि यह पॉलिटिकल अग्रेशन यानी आक्रामक राजनीति की हार है। इसलिए यदि कोई इस जीत को मुसलमानों की एकजुटता का नतीजा मानता होगा तो उसे दिमागी तौर पर इलाज करा लेना चाहिए। यह जीत धर्म विशेष की नहीं, बल्कि अधर्म की नीति पर धर्म की राजनैतिक जीत है। यह सहिष्णु हिंदुस्थान की जीत है। ये उन देशवासियों की जीत है, जो धर्म के नाम पर इस देश को बंटता हुआ नहीं देखना चाहते हैं। इसलिए इससे उत्साहित होकर यदि कोई वर्ग विशेष को इस्लाम के नाम पर मतदान करने के लिए आवाहित करता है तो उसे यह भी समझ लेना चाहिए कि इस देश में एमआईएम भी नकारी जाती है और मुस्लिम लीग भी। इसलिए कट्टर इस्लाम की बात करने से पहले इन कट्टरपंथियों को आंखें खोलकर ढंग से देख लेना चाहिए कि इस्लाम के नाम पर बने पाकिस्तान के क्या हालात हैं? फिर भी यदि उन्हें इस्लाम-इस्लाम ही करना है तो निश्चित तौर पर उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए। इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान पहले ही दिया जा चुका है। अब यहां जो बचा है वह सहिष्णु हिंदुस्थान है। जहां सभी धर्मों के लिए समान स्थान है। इसलिए यहां रहना है तो एक सहिष्णु हिंदुस्थानी बनकर ही रहना होगा और एक सच्चे हिंदुस्थानी के तौर पर ही व्यवहार भी करना होगा।
प्रकृति भी समय के साथ बदलती है, उसमें भी जीव-जंतुओं का क्रमिक विकास होता है। क्रमिक ‘विकास’ से विकास शब्द जुड़ा हुआ है। मतलब समय के साथ बदलना विकास कहलाता है। इंसान का चिंपैंजी से मानव बनना, क्रमिक विकास का बेहतरीन उदाहरण है पर दुर्भाग्य से कट्टरपंथियों ने अपना एक ऐसा मजहब बना लिया है, जो समय के साथ बदलना नहीं चाहता। वो २१वीं सदी में भी ७वीं सदी की दकियानूसी विचारधारा को ढोना चाहता है। उससे यदि सुधार की अपेक्षा की जाए तो उसका इस्लाम खतरे में आ जाता है। वो खुद तो धार्मिक एकजुटता की बात करता है, पर जब हिंदू एकजुट होता है तो उसे आपत्ति होने लगती है। वो न तो खुद बदलना चाहता है न ही दूसरों का बदलाव स्वीकार करता है।
जिस दौर में ब्रिटेन में कार का आविष्कार हुआ था तब ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में उससे बेहतर की कोई कल्पना ही नहीं कर सकता था, परंतु आज यातायात के क्षेत्र में दुनिया हाइपर लूप तक पहुंच गई है। रॉकेट साइंस बुलंदियों पर है। परंतु यह मान लेना कि इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता, कोई सोच ही नहीं सकता, बिल्कुल गलत है। इसी तरह धर्म के मामले में भी है। उस दौर में जो ‘धर्म’ था, आज उसकी व्याख्या और बेहतर हो सकती है। तब धर्म की व्याख्या करते वक्त, आज की परिस्थितियों का अनुमान थोड़े ही रहा होगा। सती प्रथा तब प्रचलन में थी, पर सभ्य समाज को समझ आया कि यह तो बड़ा अधर्म है, लिहाजा हिंदुओं ने बदलाव को स्वीकार किया। पशु बलि, बाल विवाह और बहु विवाह जैसी परंपराओं को बंद किया। न केवल हिंदुओं ने, बल्कि दुनिया के अन्य धर्मों, मसलन ईसाई, बौद्ध, जू, पारसी सभी ने समय के आधार पर खुद को बदला, इसीलिए वे सभ्य समाज का ससम्मान हिस्सा बन सके। यदि किसी धर्म में समय के आधार पर तर्कसंगत, नीति सम्मत बदलाव नहीं हुआ तो वो केवल इस्लाम है। बल्कि मुस्लिम कट्टरपंथियों ने तो इस्लाम को ही ‘धर्म’ बनाकर रख दिया। ‘औरों को मारो और खुद की लादो’ ये धर्म कैसे हो सकता है? धर्म परिवर्तन, लव जिहाद और धार्मिक विस्तारवाद ही जब धर्म की मूल नीति बन जाए, तब उनसे न्याय संगत धर्म की व्याख्या अपेक्षित भी नहीं रहती। ऐसे में पीड़ित पक्ष केवल ‘द केरला स्टोरी’ जैसी फिल्में बनाकर सुधार की अपेक्षा ही कर सकता है। तीन तलाक की प्रथा जब जान से प्यारी लगती है, जब हलाला का मोह नहीं छूटता और कट्टरवादियों को इस अन्याय का इल्म तक नहीं होता, तब किताबी धर्म से बाहर निकलकर, उनसे इंसानियत की पाठशाला में कुछ सीखने की केवल उम्मीद ही की जा सकती है।
कोई मूरत, कोई आभास, चाहे वो साकार हो या निराकार, ब्रह्म नहीं हो सकता। भगवान वही है, खुदा वही है जो हमें जीवन देता है। हमारा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष पालन-पोषण करता है। तभी तो माता-पिता को पहला भगवान माना गया है। गुरु को देव तुल्य कहा गया है। नदी, पहाड़, पर्वत, पशु-पक्षी, सूर्य-चांद यही सच्चे फरिश्ते हैं, खुदा हैं, क्योंकि इन्हीं से हमें जीवन मिला है। यही जीवनचक्र का संचालन करते हैं, इसीलिए यही हमारी दृष्टि में भगवान हैं। यही सत्य है, परम सत्य। हिंदू धर्म सनातन काल से यह सच्चाई मानता है। उसका महत्व जानता है, तभी तो हिंदू नदियों को माता, पर्वतों में पिता, जीव-जंतुओं में ईश्वर, पत्थर में भगवान, सूर्य-चंद्र में देव, ग्रहों में देवता देखता है। वो जो जैसा है, उसे उसी स्वरूप में स्वीकार करता है। किसी को न तो बदलने की कोशिश करता है, न ही किसी को काफिर (नास्तिक) दिखाने का प्रयास। यही उसकी नजर में धर्म है। फिर इस्लाम ही सबको क्यों बदलना चाहता है? गजवा-ए-हिंद क्यों करना चाहता है? यह कर भी लोगे, सारी दुनिया को मुसलमान बना भी लोगे, तब भी मार-काट नहीं करोगे क्या? इसकी क्या गारंटी है? तब तुम फिरकों के नाम पर लड़ोगे? तब तुम आपस में ही कट मरोगे, बल्कि आज भी यही हो रहा है। ईरान, इराक, सीरिया क्या है? वही तो है। सुन्नी की सिया से, बरेलवी की वहाबियों से, वहाबियों की अहमदिया से, सभी फिरकों की, एक-दूसरे से नफरत क्या दर्शाती है? एक ही अल्लाह की खुद को औलादें बतानेवाले फिर क्यों हैं गुमराह? क्योंकि वे समय से सीखना नहीं चाहते। अपने अंदर के धर्म में व्याप्त बुराइयों को खत्म नहीं करना चाहते, बल्कि अपनी बुराइयों को ही धर्म मान चुके हैं।
इस्लामी कट्टरवाद सिर्फ हिंदुस्थान के लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए आज खतरा है, इसे हर कोई समझता है। यहां तक कि समय-समय पर ग्लोबल टेरेरिस्टों की सूची से पाकिस्तानी आतंकवादियों को बचाने वाला चाइना भी इसे बखूबी जानता है। इसीलिए शायद वो अपने देश में इस्लाम को पनपते देखना नहीं चाहता। उइगरों का दमन करता है। जिस तरह चीन की वो नीति सही नहीं है, उसी तरह इस देश में भी ध्रुवीकरण की रीति ठीक नहीं कही जा सकती। नफरत की सीख सही नहीं कहला सकती। आज हर राज्य में मुस्लिम एकजुटता के नाम पर, इस्लाम के नाम पर राजनीति शुरू हो गई है। ओवैसी जैसों को हवा दी जा रही है। ओवैसी का वोट बैंक बढ़ने से किसका लाभ हो रहा है? उसे भी गंभीरता से समझने की जरूरत है। आज राजनीति में ध्रुवीकरण के चलते ही धर्म के नाम पर कट्टरवाद पनप रहा है। ऐसे कट्टरवादी नेताओं की अनर्गल बयानबाजी से ही देश का माहौल खराब हो रहा है और नतीजे में देश पर कट्टरवादी इस्लामी राजनीति का खतरा मंडराने लगा है।