मुख्यपृष्ठनए समाचारबेबाक : हमने हीरो बदले और हाहाकार मच गया!

बेबाक : हमने हीरो बदले और हाहाकार मच गया!

अनिल तिवारी

हिंदुस्थान में अक्सर आम चुनाव से पहले विवादों का दौर चलता है, कई मुद्दों पर बहस होती है। इस बार भी हो रही है। इनमें से कुछ मुद्दों पर चर्चा भले ही गैरजरूरी लगे, पर कुछ पर चर्चा तो जरूरी मानी जा सकती है। क्योंकि ये वो मुद्दे हैं जो हमारी संस्कृति, सभ्यता और पहचान से सरोकार रखते हैं, हमारी अस्मिता और अस्तित्व से जुड़ाव रखते हैं। इसलिए राजनीति से परे हटकर इन पर चर्चा जरूरी भी है और उनकी जड़ तक जाकर समस्याओं का निदान आवश्यक भी। अन्यथा, भविष्य में भी राजनीति के लिए धर्म को भुनाने और धरातल पर धर्म को हथियाने के प्रयास जारी रहेंगे और हर हाल में हमारे हिस्से आएगी तो निराशा।
‘द केरला स्टोरी’ ने इन दिनों ‘लव जिहाद’ को सुर्खियां दे रखी हैं। नगर-नगर, डगर-डगर ‘लव जिहाद’ के मामले उजागर हो रहे हैं। पहले की तुलना में कहीं अधिक, वीभत्स और इंसानियत के लिए शर्मनाक। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर देश में ‘लव जिहाद’ के नासूर ने इतना विकराल रूप वैâसे धारण कर लिया, इसके कारण क्या हैं और इसके लिए जिम्मेदार कौन? बात केवल राजनैतिक दोषारोपण की ही होती तो शायद चर्चा कमजोर हो जाती, पर चूंकि बात हमारी सामाजिक कमजोरी की भी है, इसलिए इस पर चर्चा भी पुख्ता है। बात ५००० वर्षों से अधिक पुराने सनातन धर्म और उसके करोड़ों अनुयाइयों की है, जो आज के युग में भी कोई सार्थक धर्माचार्य नहीं खोज पा रहे, वहां कट्टरपंथियों ने तमाम शुक्राचार्य खोज लिए हैं, तो क्यों? वो इसलिए कि, वहां धर्म सर्वोपरि है यहां ‘धंधा’।
आजादी के कुछ दशक बाद से ही ‘लव जिहाद’ की समस्या ने सिर उठाना शुरू कर दिया था। आज भले ही कुछ लोग इसके पीछे सोची-समझी रणनीति का आरोप लगाते हों, मस्जिदों की कथित तकरीरों को जिम्मेदार ठहराते हों, पर दरअसल इसके मात्र यही गिने-चुने कारण नहीं हैं। असल में ‘लव जिहाद’ के लिए कट्टरपंथी मुसलमानों जितने ही हम खुद भी जिम्मेदार हैं। हमीं ने कट्टरपंथियों की ‘जिहादी’ सोच को, सोची-समझी साजिश में तब्दील करने को प्रेरित किया है। हम अपने ही धर्म का उपहास करने, उसे अपमानित करने या उस पर प्रश्न उठाने से कभी ऊपर नहीं उठ पाए। हम लगातार अपने धर्म और धार्मिक परंपराओं को नजरअंदाज करते रहे और अनजाने में ही उससे कब इतना दूर चले गए कि हमारे बच्चों को दूसरे धर्म करीब नजर आने लगे। नतीजा, एक ओर हमारे घर और समाज में हमारे धर्म की गंभीरता कम हुई, तो दूसरी ओर हमारे धार्मिक विरोधियों को हमारे बच्चों के रूप में आसान शिकार नजर आने लगे। हिंदुओं के धार्मिक ह्रास और लव जिहाद के जुनूनी पागलपन के ग्राफ को बढ़ाने के ऐसे कई महत्वपूर्ण कारक हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जिनमें एक हमारे लगातार बदलते ‘हीरोज’ भी हैं।
आजादी के संघर्ष और स्वतंत्रता के बाद के कुछ दशकों तक तो हमारे असल हीरो हमारे स्वतंत्रता सेनानी थे, पर देखते ही देखते उनकी जगह सिनेमाई सितारों ने ले ली। फिल्में जीवन पर गहरा प्रभाव डालती हैं, अगर आप यह बात मानते हैं तो आप इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि फिल्मी हीरो हमारे बच्चों के जीवन पर भी उतना ही गहरा प्रभाव डाल रहे हैं। फिर वो कोई खान हों या शेख। कहीं-न-कहीं उनकी फिल्में हमारी नस्लों को प्रभावित कर रही हैं। हमारे दिलो-दिमाग द्वारा असल हीरोज को भुलाते ही हमारी पहचान पर संकट छाने लगा। जैसे ही घर-घर में फिल्मी हीरोज ने कब्जा जमाया, वैसे ही हमारी नस्लों के रोल मॉडल बदल गए। उनकी सोच प्रभावित होने लगी। हमने हीरो बदले तो बच्चों के संस्कार बदले और हमारा संसार। जब तक हमारे हीरो भगत सिंह थे, हम मर मिटने को तैयार थे, जैसे ही कोई और हुए, वे मारने को तैयार हो गए। जब तक हीरो भारत कुमार यानी मनोज कुमार थे, हम देशप्रेमी थे, कोई और हुए तो हम धर्मद्रोही हो गए। फिल्मी महिमामंडन ने हमारी नस्लों में हार्मोनिकल बदलाव की जो शुरुआत की तो उसका नतीजा लव जिहाद तक पहुंच गया। हमने कभी यह विचार ही नहीं किया कि हम अपनी नस्लों को कौन से हीरो दे रहे हैं, वे असली भी हैं या नहीं। हम उन्हें पहचानने में ही नहीं फेल हुए हैं, बल्कि हम इस पहचान में भी फेल हो गए कि किस तरह हमारी बेटियों को सामाजिक तौर पर लव जिहाद का शिकार बनाया जा रहा है। किसी साधारण से लड़के को एक वर्ग विशेष, इतना बड़ा ‘हीरो’ बना कर दर्शाता है कि वो किसी हिंदू लड़की पर फिल्मी हीरो जैसा प्रभाव छोड़ सके। उस लड़की को लगने लगता है कि उसका कथित बॉयफ्रेंड ही दुनिया का सबसे ताकतवर और सम्मानित व्यक्ति है। ‘भाई-भाई’ करते फर्जी चाटूकार उनके इर्द-गिर्द घूमते हैं, जो उस लड़के के इशारे पर कुछ भी कर गुजरने का दिखावा करते हैं। यह आभासीय वातावरण उस लड़की को हिप्नोटाइज कर देता है और लड़की अपने धर्म और परिजनों से बगावत कर बैठती है। सम्मोहन की अवस्था में शादी करती है और अपने परिवार का तिरस्कार भी। जब तक उसका सम्मोहन टूटता है, उसका जीवन बिखर चुका होता है। फिर या तो वो काले लिबास की कैदी होती है या फिर काल कोठरी का फर्नीचर। यही हिंदुस्थान में लव जिहाद की पटकथा है। कड़वी है पर सच है।
कुल मिलाकर, हिंदुस्थान में ‘लव जिहाद’ एक समस्या है, और अर्से से है। हाल के वर्षों में ध्रुवीकरण की राजनीति से इसने रफ्तार भी पकड़ी है, परंतु इस मामले में जितना नुकसान राजनीति ने किया है, उससे कहीं अधिक नुकसान हमारी लापरवाही से हुआ है। जब तक हम अपने धर्म का सम्मान नहीं करेंगे, परंपराओं का निर्वहन नहीं करेंगे, और अपनी आनेवाली पीढ़ियों को अपने सच्चे ‘हीरोज’ से रू-बरू नहीं कराएंगे, उनके सामर्थ्य, उनकी ताकत और उनके त्याग को नहीं समझाएंगे, कोई सियासी ताकत हमारे बच्चों को लव जिहाद के खतरे से नहीं बचा सकेगी। जब तक हमारे दिलो-दिमाग में रंगी फिल्मी ‘हीरो’ की तस्वीरें नहीं हटेंगी, हमारी बच्चियों के दिलों में ‘पुख्ता’ हो रही छद्म पे्रम की तस्वीर नहीं मिट सकेगी। इसलिए हमें न केवल अपनी नस्लों को इतना समझदार बनाना होगा कि वे किसी फिल्मी हीरो को रोल मॉडल समझें, बल्कि वो फर्जी और स्वार्थी प्रेमजाल का अंतर भी समझ सके, जहां कोई अपनी पहचान छिपाकर, चंद फर्जी कारनामे से उसकी जिंदगी का ‘हीरो’ न बन जाए।

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