बेवफाई तिरी घोंपे खंज़र हमें
कैसी तुमने लगाई है ठोकर हमें
रात आई नहीं नींद मुझको सनम
याद तेरी चुभाती है नश्तर हमें
यूँ अकेले ही तन्हाइ में हँस दिये
ख़्वाब में फिर दिखे आज दिलबर हमें
सो रहा एक बच्चा ज़मीं पर यहाँ
अब नहीं चाहिए नर्म बिस्तर हमें
चू रही आज छत आँख के साथ ही
है मयस्सर नहीं कोई छप्पर हमें
मोतियों के लिए खोज डाली नदी
पर मिला हाथ में एक कंकर
हमें
ऐ ‘कनक ‘हर तरफ़ है ख़ुदा का करम
मिल रही है ख़ुशी यूँ ही अक्सर हमें
डॉ कनक लता तिवारी