प्रभुनाथ शुक्ल
भदोही
रामखेलावन काका चौपाल पर खैनी मारत कहले देखि! चंदा के जाल में मत अझुरा जार्इं। ई फागुन ह रंग अवुरी मस्ती के मौसम। चंदा के कालिख से आपन चेहरा काहे रंगत बाड़े। भांग के रंग चढ़ार्इं आ होली के मस्ती में डूब जार्इं। दिव्य संजोग से अबकी होली भी खास रही। एक ओर फागुन के रंग होई त दोसरा ओर चुनावी रंग। जब दुनो रंग एक संगे मिल जाई त एगो नाया रंग बन जाई। नेताजी! चुनाव के मौसम में गिरगिट जइसन रंग बदले लागल बाड़े। फिर फागुन में चंदा के कालिख से हमनी मुंह करिया काहे करी। रामगोपाल आखिर अखबार में छपल चुनावी चंदा के खबर प रामखेलावन काका के छेड़ देहले। काका, आजकल चंदा के लेके बहुत चर्चा हो रहल बा, एह मा का खास बात हौ। अरे मर्दवा! इ सब राजनीति के खेल ह। हमनी के झोपड़ी में वोट मांगे आवे वाला नेताजी खूब चंदा मांगेला। चुनावी बांड एगो कानूनी घूस ह। पहिले ई घूस गुप्त रूप से लिहल जात रहे, बाकि बाद में चुनावी बॉन्ड के कानूनी आवरण दिहल गइल। उहे लोग बॉन्ड के माध्यम से कालाधन के सफेद में बदले में लागल रहे। लेकिन कोरट के बहुत-बहुत धन्यवाद जे दूध के दूध आ पानी के पानी में बदल दिहलस। देखीं! रामगोपाल जी, वैसे भी हमनी के देश में चंदा एगो धंधा ह, आ हमनी लोग के जन्म अधिकार ह। ई एगो अइसन धंधा ह जवन कबो धीमा ना होखे। हमनी के चंदा खातिर जियत बानी जा, आ चंदा खातिर मरत बानी जा। चंदा मांगल हमनी क लोकतांत्रिक अधिकार ह। अब देखऽ होली के परब नजदीक आ गइल बा। हमनी के चंदा गिरोह के लोग फनफनाए लागल बा। चंदा हमनी के जिनगी के एगो जन्मसिद्ध अधिकार बन गईल बा। राजनीति में अब चंदा ओह आदमी के हिसाब से दिहल जाला, जेकरा लगे जीते के क्षमता बा। कबो-कबो दान देवे वाला आदमी से अधिक महत्व लेवे वाला क हो जाला। फेर चंदा के मुद्दा छोड़ दीं, अब ई पुरान मुद्दा बा। आर्इं राजनीति के नया दौर में फिर से एगो नया कहानी लिखीं। बुरा मत लागे होली ह, चुनाव में नेताजी और पब्लिक हमजोली हौ।