प्रभुनाथ शुक्ल भदोही
अगर जीवन में रस नइखे त ओकर कवनो काम नइखे। रस के अभाव में जिनगी सुस्त हो जाला। एह से जीवन में रस यानी सुख अउरी आनंद के होखल ओतने जरूरी बा जतना कि भोजन, पानी अवुरी हवा। हमनी के हिंदी साहित्य में नौ प्रकार के रस के जिक्र भइल बा। मतलब साफ बा कि रस के अभाव में जिनगी नीरस लागे ला। वैसहईं बिना रस के साहित्य भी कवनो काम के नइखे। एह से साहित्य आ जीवन में रस के प्राथमिकता होखे के चाहीं। रस के कमी के चलते आदमी सुस्त हो जाला अवुरी ओकर जीवन बेमतलब साबित हो जाला। हमनी के बोलचाल आ भाषा में भी मिठास यानी रस होखे के चाहीं। हमनी के बोली जेतना मीठ आ शांत होला, ओतने हमनी के दोसरा पर प्रभाव छोड़ेनी जा।
कलियुग में निंदा रस के प्रभाव बहुत होला। एह रस से पीड़ित लोग हर जगह उपलब्ध बा। जइसे हर कण में भगवान मौजूद बाड़े, ठीक ओसही निंदा रस के शौकीन लोग हमनी के आस-पास बिखराइल बाड़े। निंदा रस हमनी के शारीरिक आ मानसिक विकास खातिर बहुत बढ़िया रस हौ। ई रस कफ आ पित्त के नाशक ह। एकर कई गो फायदा आयुर्वेद में गिनल गइल बा। अगर हमनी के आसपास के आदमी ए रस से पीड़ित बा त उ कबहूँ बेमार ना पड़ेला। इ रस ओकरा शरीर के रामबाण के काम करेला। निंदा रस के प्रभाव जीवन के सभी क्षेत्र में बा। एकरा से पीड़ित लोग हर इलाका में मिल जाई। अगर हमनी के उनकर स्वास्थ्य के राज पूछीं जा त एकरा पीछे के कारण खाली निंदा के रस बा।
हमनी के साहित्य भी निंदा रस के बिना अधूरा हौ। कबीरदास जइसन जानकार लोग भी निंदा रस के स्वाद से बहुत प्रभावित भइल बा। एही से कबीर लिखले बाड़े ‘निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय…’। उ कहले कि अयीसन लोग से दूरी मत राखी। अगर रउआ अयीसन लोग से दूरी बना के राखब त ए रस से पीड़ित लोग में रस के असर तेजी से बढ़ेला। वैसे निंदा रस बहुत पाचक अवुरी फायदेमंद होखेला। कतनो नेकदिल आदमी होखे, बाकि निंदा रस के शौकीन लोग ओकरा के ना छोड़ेला। निंदा रस के मरीज रात में सुते के समय ही एह रस से मुक्त हो पावेला। अवुरी बाकी सोलह घंटा तक ए बेमारी से पीड़ित रहेले। एह रस के अधिका प्रभाव राजनीति में देखल गइल बा। विपक्ष सत्ताधारी दल के हर नीमन काम के विरोध करेला। उ हर मुद्दा प निंदा प्रस्ताव लेके आवेले। निंदा के रस वाकई में बहुत दिव्य रस हौ।