प्रभुनाथ शुक्ल भदोही
हमनी के पूर्वांचल में बियाह के मौसम बा। लईकन के छोड़ दीं, बूढ़-पुरान भी जवानी के गीत गावत देखाई देतारे। पूरा गाँव जुट्ठन के बियाह के तैयारी में व्यस्त बा। हमार बनाफर गुरु साठ साल के उमिर में भी बहुत जवान आ मजबूत लउकत बाड़े। बारात के तइयारी में बहुतै मगन बाडे। गाँव के रामनंन्न नाई से बाल-दाढ़ी कटवावे के बजाय शहर जाके एगो सैलून में बाल कटवउले। सब बाल उज्जर हो गईल बा। आँख कवनो समुंदर के खाई में चल गइल बा। गाल में अतना गड्ढा हो गइल बा कि दू किलो सूखल मटर ओकरा में भरा सकेला। नाक के छेद दू गो गुफा जइसन हो गईल बा, जबकि दाँत में खिड़की कट गईल बा। लेकिन ऊ अपना के कबो बुढ़ापा नईखे समझले।
गाँव-जवार में जहवाँ बारात जाला ओहिजा दू घंटा पहिले पहुँचेलें। बोलेरो मे ड्राइवर के लगे आपन सीट आरक्षित राखी। गाँव के लइका बनाफर गुरु के खूब चिढ़ावेले, लेकिन उ आपन आदत ना छोड़ेला। बोलत घरी उनकर जीभ आधा बाहर आ आधा भीतर हो जाला। जइसहीं ऊ लोग बरात में चहुँप जाला, सबसे पहिले चाट के ठेला पर अइसे टूटेला जइसे दू देश का बीच लड़ाई चलत होखे। मंचूरियन के साथे सगोडा, टमाटर चाट उनकर पहिला पसंद बा। उनका मसालेदार चाट बहुते पसंद बा। जबले बनाफर गुरु बारात में चाट के ठेला पर रहिहें तबले कवनो दोसर मेहमान आपन जीभ तृप्त करे के हिम्मत ना कर सकेला। चाट के स्वाद लेत घरी उनकर नाक टपकत रहेला, बाकि चाट खाइल ना छोड़ेला। ऊ अपना कुर्ता के दुनु आस्तीन से आपन टपकत नाक पोंछत रहेला।
बनाफर गुरु द्वारचार के खत्म होखे के पहिले चाट मैदान में कूद जाले। ओकरा के खाना में पूड़ी-कचौड़ी बिल्कुल पसंद ना आवेला। उ खाली शाही पनीर, रबड़ी-मलाई, गाजर हलवा के संगे रबड़ी अउरी इमरती चपले। जबकि अपने घरे एक बेर चना-चबैना पर ही बितावे ले। ऊ बारात में जेतना पेट में भरले ओह से ज्यादा नुकसान करेलें। बाद में फल के आनंद लीं। सबेरे विदाई के बाद बोलेरो के आगे के पंक्ति में बईठ जाला। कुर्ता पान के पवित्र दाग से सज जाला। जेकरा से पता चल जाला कि बनाफर गुरु बारात से लवटत बाड़े। खात-खात मुँह से उलट देले एकरा बाद भी लड़की के बाप के गरियावले कि बारात के स्वागत ठीक नइखे भईल, जबकि बेचारा लड़की के बाप कर्ज तले दब जाला।