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बड़ी बिल्लियों पर बड़ा खतरा … सतकोसिया में सन्नाटा!

• स्थानांतर से हो गईं मौतें
• प्रजनन पर लगा विराम
• एमपी के बाघ और नामीबिया के चीते नीतिगत लापरवाही के शिकार
• मोदी सरकार की जल्दबाजी का मूक जानवरों ने भुगता खामियाजा
जब इंसान एक वातावरण से दूसरे वातावरण में जाता है तो उसे वहां एडजस्ट होने में थोड़ा वक्त लगता है। ठंडी में वह गर्म कपड़े का जुगाड़ करता है। बारिश है तो छाता लेकर चलता है। अत्यधिक गर्मी है तो वह पंखे और एसी की शरण में जाता है पर बेचारा मूक पशु क्या करे? अगर मौसम और वातावरण में ज्यादा बदलाव होता है तो वह बीमार पड़ जाएगा और फिर उसकी मौत भी हो सकती है। देश की पहली टाइगर ट्रांसलोकेशन (बाघ स्थानांतरण) परियोजना के साथ भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। इस कारण बड़ी बिल्लियों पर बड़ा खतरा मंडरा है। ओडिशा के सतकोसिया में यह परियोजना शुरू की गई थी, जो बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुई है।
इस कारण सतकोसिया में सन्नाटा छाया हुआ है। दूसरी तरफ हाल ही में नामीबिया से कूनो नेशनल पार्क लाए गए चीतों में से एक के बाद एक तीन चीतों की मौत हो चुकी है। ऐसे में बड़ी बिल्लियों की सुरक्षा वाकई राम भरोसे है।
असल में मोदी सरकार ने जल्दबाजी ये निर्णय लिए हैं जिसका खामियाजा इन मूक जानवरों को भुगतना पड़ा है। मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और कान्हा टाइगर रिजर्व से सतकोसिया में हिंदुस्थान की इस पहली अंतर-राज्यीय बाघ स्थानांतरण परियोजना के तहत दो बाघ लाए गए थे। पर ये बाघ सतकोसिया टाइगर रिजर्व के माहौल में रम नहीं पाए। २०१८ में यह परियोजना सतकोसिया में शुरू की गई थी। इस तरह सिर्फ एक दशक पुराने अभयारण्य सतकोसिया में बाघों के अंतर-राज्यीय स्थानांतरण शुरू कर ओडिशा देश का पहला राज्य बन गया। इस अभयारण्य को बाघों के प्रजनन के लिए टाइगर रिजर्व में परिवर्तित किया गया था। सतकोसिया अभयारण्य में दो वन्यजीव प्रभाग शामिल हैं, महानदी और सतकोसिया। सिमिलिपाल के बाद यह राज्य का दूसरा सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है। फिलहाल, सतकोसिया में कोई बाघ नहीं है।
गर्मी के मौसम के आखिर में शुरू की गई इस महत्वाकांक्षी परियोजना को तब पहला बड़ा झटका लगा जब शिकारियों ने कान्हा से लाए गए नर बाघ महावीर को एक महीने के भीतर ही मार डाला। उस बाघ के गले में गहरा घाव मिला। हालांकि, वन विभाग यह बताने की कोशिश करता रहा कि मौत अन्य कारणों से हुई थी। इसी तरह बांधवगढ़ से लाई गई मादा बाघ सुंदरी को लगभग ४० दिनों के बाद एक अस्थायी बाड़े से जंगल में छोड़ा गया पर वह आदमखोर बन गई। तीन महीने में सुंदरी ने कथित तौर पर दो व्यक्तियों को मार डाला। इसके बाद उसे दोबारा बाड़े में लाया गया। सुंदरी को वापस कान्हा और फिर वहां के एक चिड़ियाघर में लौटना पड़ा। इससे इनके प्रजनन पर भी विराम लग गया। एनटीसीए (राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण) का कहना है कि पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराने के बावजूद सतकोसिया में बाघों के स्थानांतरण के लिए पूर्व निर्धारित शर्तें, जैसे कि बाघों के लिए विशेष स्थान का निर्माण, पर्यावरण-विकास, कर्मचारियों की क्षमता बढ़ाने और सुरक्षा में वृद्धि आदि को पूरा नहीं किया जा सका। एनटीसीए ने देखा कि प्रोजेक्ट टाइगर के तहत प्रदान की गई धनराशि को केंद्र सरकार के प्राधिकरण के बिना अनुमति के दूसरे मद में खर्च कर दिया गया। एनटीसीए की रिपोर्ट में कहा गया, ‘केंद्र से पर्याप्त धनराशि जारी करने के बाद भी परियोजना ने कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि नहीं हासिल की।’ ओडिशा में बाघ स्थानांतरण प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने पर राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन एसके पोपली ने कहा, ‘इस संबंध में अब तक कोई चर्चा नहीं हुई है।’ वन्यजीव कार्यकर्ता बिस्वजीत मोहंती का कहना है कि संबंधित अधिकारियों ने बाघों को एक नए परिदृश्य से परिचित कराते समय एसओपी का पालन नहीं किया। मोहंती ने कहा, ‘नर बाघ की मौत के मामले में उन्होंने सरकार को गुमराह किया।’

राजस्थान में हैं सर्वाधिक १०० बाघ
राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में ९० के दशक में १६ बाघ थे पर २००४ में वहां एक भी नहीं बचा था। फिर २००८ में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने इसे पुन: आबाद करने के लिए योजना शुरू की थी। प्रोजेक्ट टाइगर के तहत बाघ पुनर्वास कार्यक्रम शुरू हुआ। रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान से एक बाघ और दो बाघिनों को वहां बसाया गया। फिर वहां इनकी संख्या बढ़ने लगी और आज सरिस्का में २७ बाघ हैं। राजस्थान में आज लगभग १०० बाघ हैं। रणथंभौर में ७० और सरिस्का में २७।

कूनो में चीतों की मौत
पिछले साल काफी धूमधाम से नामीबिया से आठ चीते लाए गए थे। इन्हें कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था। खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने इन चीतों को वहां छोड़ा था। पर लगता है कूनो का वातावरण चीतों को रास नहीं आया। अभी तक एक के बाद एक तीन विदेशी चीतों की मौत हो चुकी है। ऐसे में पीएम की इस परियोजना पर सवाल उठने लगे हैं कि बिना होमवर्क किए इस तरह की परियोजनाएं शुरू कर दी जाती हैं, जिससे इसका बुरा अंत होता है।

 

 

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