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दवा पर वैज्ञानिकों का बड़ा दावा … एओएच १९९६ करेगी कैंसर का खात्मा!

ट्यूमर को जड़ से खत्म कर देगी नई दवा

आज दुनियाभर में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान ने आज के दौर में बहुत तरक्की कर ली है और लगातार प्रगति की ओर अग्रसर है। इसके बावजूद अभी तक कैंसर पर कारगर कोई दवा नहीं मिली है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने कैंसर से पीड़ित मरीजों के लिए उम्मीद की एक किरण जगाई है। कैंसर जैसी जानलेवा और खतरनाक बीमारी के स्थाई इलाज के लिए वैज्ञानिक लंबे समय से रिसर्च कर रहे हैं। इसी बीच कैंसर के इलाज में क्रांतिकारी अपडेट सामने आया है। वैज्ञानिकों ने कैंसर के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाली एक दवा का सफल ह्यूमन ट्रायल शुरू कर दिया है। इस दवा के बारे में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि वो वैंâसर के ट्यूमर को जड़ से खत्म कर देगी।
गौरतलब है कि इस दवा का नाम एओएच १९९६ है, जो कैंसर कोशिकाओं में पाए जानेवाले प्रोटीन को नियंत्रित करता है। इस कैंसर प्रोटीन के कारण ही ट्यूमर शरीर में फैलता और बढ़ता है। पहले इस प्रोटीन-प्रोलिफेरेटिंग सेल न्यूक्लियर एंटीजन (पीसीएनए) को इलाज योग्य नहीं माना जाता था, लेकिन अब इस नई दवा को इसके खिलाफ प्रभावी बताया जा रहा है। वहीं परीक्षण में दवा के अच्छे नतीजे सामने आने के बाद दुनिया भर में कैंसर रोगियों के लिए आशा की किरण जगी है। इस दवा का प्रयोगशाला में स्तन कैंसर, मस्तिष्क कैंसर, डिम्बग्रंथि कैंसर, त्वचा कैंसर और फेफड़ों के कैंसर सहित ७० प्रकार के कैंसर पर परीक्षण किया गया है। इसे सभी प्रकार के कैंसर ट्यूमर के खिलाफ प्रभावी पाया गया है।
बता दें कि दवा विकसित करनेवाली प्रोफेसर लिंडा मालकास का कहना है कि यह दवा कैंसर में प्रोटीन को नष्ट करने में मदद करती है। यह शरीर में वैंâसर पैदा करनेवाली कोशिकाओं पर हमला करता है और ट्यूमर के विकास को रोकने के साथ-साथ उन्हें नष्ट भी कर देता है। यह कैंसर कोशिकाओं को मारने का भी काम करता है। वहीं दूसरी ओर कैंसर के इलाज के दौरान कीमोथेरेपी उपचार रोगियों की अच्छी कोशिकाओं को भी नष्ट कर देता है, जिससे शरीर पर कई दुष्प्रभाव होते हैं। इसके कारण बालों का झड़ना, चेहरा काला पड़ना और पेट खराब होने की समस्या अधिक होती है। अभी इस दवा का शोध शुरुआती चरण में ही है।

९ साल की बच्ची से मिली मदद
अमेरिका के लॉस एंजिल्स में स्थित सिटी ऑफ होप हॉस्पिटल द्वारा २० सालों की लंबी रिसर्च के बाद इस दवा को विकसित किया गया है। यह केंद्र अमेरिका के सबसे बड़े कैंसर केंद्रों में से एक है। अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्र के वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस क्रांतिकारी दवा का नाम १९९६ में पैदा हुई आना ओलिविया हीली से प्रेरित है। उस बच्ची को न्यूरोब्लास्टोमा नाम का कैंसर था। इसी कैंसर के चलते २००५ में आना की मौत हो गई थी तब वह ९ साल की थी। न्यूरोब्लास्टोमा बच्चों को होनेवाला एक कैंसर होता है। कैंसर खत्म करनेवाली इस नई दवा Aध्प्१९९६ का नाम नौ साल की एक बच्ची पर रखा जाएगा।

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