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२०२४ में बिहार, बंगाल, यूपी और झारखंड बिगाड़ सकते हैं … सत्ता समीकरण!

भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में जुटे विपक्षी दल
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
केंद्र में सत्ता बनाने में बिहार और यूपी अहम भूमिका निभाता है। २०२४ के चुनाव को लेकर देश में सरगर्मियां तेज हो गई हैं। माना जा रहा है कि विपक्षियों द्वारा केंद्रीय सत्ता से भाजपा को बेदखल करने की मुहिम बिहार, झारखंड, यूपी और पश्चिम बंगाल में कामयाब होती है तो सत्ता का समीकरण बिगड़ सकता है। लोकसभा का चुनाव अगले साल मई में संभावित है।
गौरतलब है कि विपक्षी दलों को एकजुट करने के अभियान में लगे जदयू नेता व मुख्यमंत्री नीतिश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि ५० से १०० सीटों के नतीजे भाजपा के उलट होते हैं तो केंद्र की सत्ता बदल जाएगी। इस हिसाब-किताब का आधार इन चार राज्यों में लोकसभा की १७६ सीटें हैं। इनमें से भाजपा के पास १०८ सीटें हैं। लोकसभा की कुल ५४३ सीटों में भाजपा के ३०३ सांसद हैं, जबकि बहुमत के लिए २७२ सांसदों का होना जरूरी है। ऐसे में भाजपा के पास बहुमत से केवल ३१ सांसद अधिक हैं।
चारों राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा
नीतिश कुमार की रणनीति भाजपा के खिलाफ सभी गैर भाजपा दलों को एकजुट कर आमने-सामने की टक्कर देकर भाजपा की सीटों को कम करना है। जानकारों की राय में यदि चुनावी मैदान में सीधी टक्कर हुई तो चौंकाने वाले परिणाम से इनकार नहीं किया जा सकता है। २०१५ के बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम को महागठबंधन भाजपा को सत्ता से दूर करने का सशक्त रोडमैप मान रहा है। मुख्यमंत्री नीतिश कुमार कह रहे हैं कि गैर भाजपाई दल एकजुट होकर चुनाव मैदान में आ जाएं तो परिणाम चौंकाने वाला होगा। पश्चिम बंगाल को छोड़कर बिहार, यूपी और झारखंड में दोनों राष्ट्रीय दलों को क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में जाना पड़ा है। वैसे इन चारों राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा है।

भाजपा अकेली हो गई है
बिहार में पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए के भीतर जदयू और लोजपा भी रही थी। इस बार जदयू बाहर है और वह सात दलों के महागठबंधन के साथ खड़ा है। दूसरी ओर, भाजपा फिलहाल अकेली खड़ी है। उसके साथ लोजपा पारस गुट है। बिहार में भाजपा छोटी-छोटी पार्टियों को अपने साथ जोड़कर बड़ा सामाजिक समीकरण निर्मित करना चाहती है। इसमें उपेंद्र कुशवाहा की रालोजद, लोजपा के चिराग गुट के अलावा, मांझी की हम और मुकेश सहनी की वीआईपी पर भी नजर है। नए प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी में सामाजिक समीकरण साधने की राजनीति अंतर्निहित है।

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