मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ
पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी सीट के लिए हुए उपचुनाव में सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को दिन में तारे दिखाते हुए 42,772 वोटों से पराजित कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के दो दर्जन मंत्री और 5 दर्जन विधायक, 40 अधिकृत स्टार प्रचारकों का महीने भर से पर्यटन स्थल बनाने के बाद भी घोसी में कमल मुरझा गया। इस परिणाम के बाद यह भी चर्चा चली कि संगठन के प्रदेश नेतृत्व ने जीतोड़ परिश्रम किया, लेकिन सबसे आश्चर्यजनक टिप्पणी यह सुनी गई कि योगी जीते, हारे शाह।
सपा के सुधाकर को 1 लाख 124 हजार 295 वोट मिले हैं और बीजेपी के दारा को 81 हजार 623 वोट मिले। इस जीत से सपा के खेमे में जीत का विश्वास बढ़ गया। इस जीत ने इंडिया गठबंधन में जज्बा भर दिया। सपा ने ट्वीट कर घोसी में जीत के लिए जनता का आभार भी व्यक्त कर दिया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी ट्वीट कर कहा है कि जनता ने बीजेपी को 50 हजारी पछाड़ दी है।
15 दिन घोसी में कैंप कर लौटे चुनावी राजनीति के विश्लेषक ओंकार ओझा ने `दोपहर का सामना’ से कहा कि दारा सिंह चौहान की दलबदलू छवि बीजेपी को भारी पड़ी। भाजपा यह स्वीकारे कि जनता का चरित्र निष्पक्ष है। अमित शाह ने पॉकेट से निकाल कर भेज दिया और पूरी भाजपा सरकार तथा उनका प्रदेश संगठन न जाने कितना पैसा फूंका सब पानी हो गया। भाजपा जनमत खरीदने और उसे रौंदने का अभियान बंद कर दे, नहीं तो पूरे देश से 2024 में साफ हो जाएंगे। समाजवादी पार्टी घोसी में दारा सिंह चौहान की दलबदलू नेता की छवि और बाहरी उम्मीदवार की इमेज गढ़ने में सफल रही। इसका फायदा भी पार्टी को मिला। दारा सिंह चौहान को लेकर जनता की नाराजगी चुनाव प्रचार के दौरान भी देखने को मिली। लेकिन स्थानीय नेता उसे राजनीतिक विरोध के चश्मे से देखते रहे। पीडीए की बात करने वाले अखिलेश यादव सवर्ण प्रत्याशी लड़ा कर भाजपा को हरा कर अपना लोहा मनवा दिया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने विपक्षी एकजुटता की कवायद के बीच कहा था कि पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) ही एनडीए को हरा सकता है। घोसी उपचुनाव अखिलेश के नारे का भी टेस्ट था, जिसमें सपा पास हो गई। सपा ने बीजेपी की रणनीति के हिसाब से चुनाव प्रचार के दौरान अपनी रणनीति तय की। पीडीए के साथ सवर्ण वोट के तड़के ने सपा की जीत की राह तैयार कर भाजपा के पिच पर भाजपा को बोल्ड कर दिया।
बीजेपी की ओर से प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक समेत तमाम नेताओं ने घोसी में डेरा डाल दिया था। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) प्रमुख ओमप्रकाश राजभर के लिए भी ये उपचुनाव सरकार और एनडीए में पद-कद निर्धारित करने वाला चुनाव था। राजभर ने भी खूब प्रचार किया, लेकिन सपा की वोकल फॉर लोकल की स्ट्रेटेजी बीजेपी के बड़े नेताओं पर भारी पड़ी। सपा की ओर से शिवपाल यादव ने प्रचार अभियान की कमान संभाली और राजीव राय समेत इलाके के नेताओं ने प्रचार का मोर्चा अपने हाथ में ले लिया था।
भूमिहार वोट की लड़ाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दफ्तर से आए नौकरशाह एके शर्मा फिसड्डी साबित हुए। प्रदेश को लगातार अंधेरे की ओर ले जा रहे शर्मा दिन-रात जनता से पैसा उसूलने की फितरत ने भाजपा का और बंटाधार कर दिया। इसी कारण अपने गृह क्षेत्र में एके शर्मा को भूमिहार मतदाताओं ने नकार दिया। बसपा सांसद अतुल राय पर एक्शन के साथ ही कई चीजों को लेकर भूमिहार मतदाता बीजेपी से नाराज चल रहे थे। यह वोट प्राप्त करने के लिए भाजपा ने अपने हारे-जीते सभी नेताओं को झोंक दिया था। सपा के पक्ष में सवर्णों के जाने से भाजपा के पिछड़ेवाद का फितूर भी उतरेगा। शिवपाल के कैंप करने से गैर यादव ओबीसी मतदाताओं का भी थोड़ा-बहुत समर्थन जुटाने में सपा सफल रही।
बीजेपी को अपने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा तथा सीएम योगी और पीएम मोदी के चेहरे पर वोट मिलने का विश्वास ले डूबा। आप जिसे टिकट देते हैं, उसकी इमेज और स्थानीय कार्यकर्ताओं के भाव भी महत्व रखते हैं। दारा सिंह चौहान को टिकट दिए जाने से पार्टी के कार्यकर्ता और स्थानीय नेताओं में भी नाराजगी थी। प्रदेश अध्यक्ष और अन्य बड़े नेताओं के कैंप करने के बाद नाराजगी दूर करने की ओर बीजेपी ने काम भी किया, लेकिन पार्टी की स्थानीय लीडरशिप दारा को स्वीकार नहीं कर पाई। जितना ताकत लगा कर भाजपा एक चरण का चुनाव जीत जाती थी, अमितशाह के खौफ में उससे अधिक ताकत लगा कर वह एक विधानसभा का उपचुनाव हार गई।
`दोपहर का सामना’ ने जमीनी हकीकत पहले ही लिख दी थी। भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बनाम अमित शाह की आंतरिक लड़ाई के अफवाह ने भाजपा को ध्वस्त कर दिया। इस परिणाम के बाद टीम गुजरात का यह भ्रम टूट गया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनके भौकाल से किंचित मात्रा डरते हैं।