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समाज के सिपाही :  बेहतर समाज के लिए सिर्फ बातें नहीं, काम करना होगा

राजेश जायसवाल

जो लोग गिरने से डरते हैं, वे कभी भी जीवन में उड़ान नहीं भर सकते। यह कहना है सफल उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता श्रीकांत परमदेव तिवारी का। उत्तर प्रदेश में आंबेडकरनगर जिले के रुदऊपुर गांव में जन्मे श्रीकांत के पिता परमदेव तिवारी एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थे। कहते हैं कि ‘पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं’ वाली कहावत को सिद्ध करते हुए श्रीकांत तिवारी ने यह साबित कर दिखाया कि जो लोग गिरने से डरते हैं, वे कभी भी जीवन में उड़ान नहीं भर सकते। आत्मविश्वास से लबरेज श्रीकांत कहते हैं कि सफलता तभी आपका कदम चूमती है जब आपके भीतर मेहनत, लगन और ईमानदारी का सही मिश्रण हो। सफलता हासिल करने का रास्ता बहुत ही कठिन होता है, अगर बीच में थोड़ी सी भी नकारात्मकता दिमाग में आ जाती है, तो हम रास्ता भटक जाते हैं और ऐसे में आगे बढ़ने का सपना और हौसला दोनों टूट जाता है, परंतु हम सकारात्मक सोचते हैं तो जीवन में आगे प्रगति कर सकते हैं। अपने बड़े भाई स्वर्गीय घनश्याम तिवारी को प्रेरणास्रोत मानने वाले श्रीकांत तिवारी बताते हैं कि ग्रेजुएशन के बाद मैंने १९९८ में सूरत की एक टेक्सटाइल कंपनी में तीन साल तक काम सीखा। काम सीखने के बाद २००८ में मुंबई आ गया और यहां रहकर नई मुंबई के बेलापुर में खुद की ‘ईशान इंटरनेशनल’ नाम की कंपनी शुरू की। २०२० में कोरोना महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन से बड़े पैमाने पर लोगों के काम-धंधे चौपट हो गए, जिससे मेरी इंपोर्ट-एक्सपोर्ट कंपनी का भी काम ठप पड़ गया। चूंकि कोरोना ने हम सभी को बहुत कुछ सीखने का मौका दिया। आज कई स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ जुड़कर समाजसेवा का कार्य कर रहे श्रीकांत तिवारी बताते हैं कि वैश्विक महामारी कोविड के दौरान उन्होंने अपने सामर्थ्य के अनुसार, दोस्तों और आस-पड़ोस के लोगों की हर संभव मदद और जरूरतमंद लोगों को राशन किट के अलावा खाने का पैकेट बनवाकर अपनी टीम के साथ घर-घर जाकर बांटा। उनके सामाजिक कार्यों को देखते हुए मुंबई-नई मुंबई तथा दिल्ली की तमाम सामाजिक संस्थाओं ने उन्हें ‘कोविड योद्धा’ सम्मान से सम्मानित किया है। खुशमिजाज प्रतिभा के धनी श्रीकांत तिवारी का मानना है कि समाजसेवा में ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम’ से लेकर ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धांत निहित रहता है। श्रीकांत कहते हैं कि भारतीय पौराणिक कथाओं में यह उल्लेख किया गया है कि भगवान ने अमीर और गरीब दोनों को बनाया है। अगर कोई अमीर है, उसे गरीबों की देखभाल करनी चाहिए और इस तरह से एक समाज विकसित होता है। यदि आप अकेले विकसित होते हैं तो आपका देश या शहर विकसित नहीं कहलाएगा। तब तक, जब तक कि हर व्यक्ति अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता। कभी-कभी लोगों को हद से ज्यादा मदद की जरूरत होती है और जब कोई उनकी मदद करता है, तो उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे भगवान ने उनकी मदद के लिए किसी को भेजा हो। उनकी खुशी को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।

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