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कर्नाटक में आसान नहीं भाजपा की राह …लिंगायत समुदाय के सहारे बिछाई जा रही बिसात

• येदियुरप्पा के सामने नतमस्तक आलाकमान
• राष्ट्रीय और स्थानीय ज्वलंत मुद्दों को लेकर मचेगा घमासान
विनय यादव / मुंबई
वर्ष २०१८ में कर्नाटक में हुए कर‘नाटक’ को पूरे देश ने देखा है। अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लगभग दो महीने ही शेष रह गए हैं। अन्य राज्यों के चुनाव की तरह भाजपा ने कर्नाटक चुनाव को प्रतिष्ठा का मुद्दा बना दिया है। हालांकि, इस बार भी कर्नाटक में भाजपा की राह आसान नहीं होगी। लिहाजा, संगठन में चल रहे अंदरूनी कलह के बीच भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के सामने नतमस्तक है और लिंगायत समुदाय के सहारे चुनावी बिसात बिछाने की उसने रणनीति बनाई है। हालांकि, राष्ट्रीय और स्थानीय ज्वलंत मुद्दों को लेकर कर्नाटक चुनाव में घमासान मचना तय माना जा रहा है।
अन्य राज्यों की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा सहित केंद्रीय नेताओं के कर्नाटक दौरे का सिलसिला शुरू हो गया है। लेकिन मुख्यमंत्री बदलने के बाद भाजपा को पार्टी के अंदरूनी कलह से जूझना पड़ रहा है। वर्ष २०१८ के चुनाव में भले ही भाजपा १०४ सीटों के साथ बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन बहुमत के आंकड़ों से ९ सीटें पीछे रह गई थी। कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन करके सरकार बनाई, लेकिन जोड़-तोड़ की सियासत कर भाजपा सत्ता में आ गई। बी. एस. येदियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री बने। बाद में येदियुरप्पा की उम्र का हवाला देते हुए २६ जुलाई, २०२१ को बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बना दिया गया। कर्नाटक में येदियुरप्पा की पकड़ मजबूत मानी जाती है। दरअसल, वे लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के १७ प्रतिशत मतदाता हैं और कर्नाटक की २२४ सीटों में से तकरीबन १०० सीटों पर इस समुदाय का वर्चस्व है। ‌हालांकि, उम्रदराज येदियुरप्पा चुनाव से पहले सेवानिवृत्ति का संकेत दे चुके हैं। जब तक येदियुरप्पा पार्टी से नाखुश हैं, तब तक किसी नेता को लिंगायत समुदाय का समर्थन मिलना संभव नहीं है। इसके अलावा लिंगायत समुदाय को आरक्षण दिलाना भी बहुत बड़ा मसला है।
दागी चेहरे बने गले की फांस
इसी महीने की शुरुआत में भाजपा विधायक मदल विरुपक्षप्पा के ठिकानों पर मारे गए छापे में ८ करोड़ रुपए की नकदी बरामद हुई थी। इससे पहले मदल के बेटे को ४० लाख रुपए रिश्वत लेते हुए लोकायुक्त ने रंगेहाथ गिरफ्तार किया था। इसके अलावा कई दागी चेहरे भाजपा के गले का फांस बने हुए हैं।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने कांग्रेस में फूंकी जान
कर्नाटक में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ २० दिनों तक रही। इस यात्रा ने कांग्रेस में नई जान फूंक दी है। राहुल गांधी ने कर्नाटक के लिए विशेष रणनीति बनाई है। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ २१ विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों से होकर गुजरी। दक्षिण कर्नाटक के सात जिलों का यह पूरा हिस्सा वोककालिंगा समुदाय का गढ़ माना जाता है। कांग्रेस ने ‘अबकी बार, १०० के पार’ का नारा दिया है।
यह मुद्दे रहेंगे हावी
कर्नाटक चुनाव में स्थानीय ज्वलंत मुद्दों के साथ राष्ट्रीय मुद्दे भी हावी रहेंगे। स्वाभाविक है कि चुनाव प्रचार की बागडोर प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के अलावा कई केंद्रीय नेता संभालेंगे। लिहाजा, मोदी सरकार द्वारा किए गए वादे चुनाव में हावी रहेंगे। जनधन, मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत, उज्ज्वला गैस योजना, कौशल विकास, बेरोजगारी, महंगाई, नोटबंदी, जीएसटी, पीएम आवास, असंगठित क्षेत्र, शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था की बदइंतजामी और किसानों की समस्याएं जैसे मुद्दों को लेकर घमासान मचने के आसार हैं।
तीन खेमों में बंटी भाजपा
भाजपा संगठन येदियुरप्पा, बसवराज बोम्मई और बी.एल. संतोष इन तीन खेमों में बंटी हुई है। इसके अलावा कुछ मंत्री भी खुद को सीएम पद का दावेदार मान रहे हैं। सरकार और भाजपा संगठन में तालमेल का अभाव है। येदियुरप्पा के बाद एक भी ऐसा चेहरा नहीं है, जिसके नाम पर पूरी पार्टी एकजुट हो सके। इसलिए भाजपा आलाकमान किसी प्रादेशिक चेहरे का नाम बतौर मुख्यमंत्री आगे करने से कतरा रहा है। लिहाजा, भाजपा येदियुरप्पा को बैसाखी बनाकर चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है‌। येदियुरप्पा को यूपी का राज्यपाल बनाया जा सकता है।

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