इंद्रदेव हुए प्रसन्न स्वर्गलोक से नीर बरसाया
भीगी धरती गूंज उठी सावन आया सवान आया
हरी हरी चुनरिया ओढ़े हरी-भरी ये वादियां
प्रकृति के केनवास पर सब्ज रंग लुभावना छाया
उमड़-घुमड़ मौज में अपनी, थिरक रहे मस्तमौला बादल
कभी गरजे हैं, कभी बरसे हैं, भिगोने वसुंधरा का आंचल
हर्षित हो पेड़/पौधे/कलियां, झूम/नाच/सरसरा रहे
नभ से टिप टिप टपक रहा जो, बूंदों का वरदान है
खेतों में, खेतिहरों में, ताल-तलैया, पोखरों में
नई उमंगे भरने आया, बारिश का मौसम है आया
मधुर गान चंपा है गावे, चमेली हिल-डुल रास रचावे
देख धरा का निखरा यौवन नन्ही दूब खिलखिल शर्मावे
पाकर स्पर्श बरखा रानी का, सोंधी-मिट्टी गर्वित हुई
लाज का घूंघट तनिक सरकाए छुई-मुई आनंदित हुई
छोटू नहाया, बड़कू भीग गया, झमझम बरसी धारा का
सबने मिलकर पर्व मनाया, सावन आया, सावन आया
जीव-जंतु की तपिश और प्यास हरने बारिश ने खूब रंग जमाया
वैकुंठ से निहार ये अद्भुत दृश्य देवलोक मंद-मंद मुस्काया
सृष्टि सारी पुलकित हो उठी, सावन आया…सावन आया
इंद्रदेव हुए प्रसन्न,स्वर्गलोकसे नीर बरसाया।
-त्रिलोचन सिंह’अरोरा