मुख्यपृष्ठखबरेंआतंक का खूनी इतिहास और जम्मू संभाग!

आतंक का खूनी इतिहास और जम्मू संभाग!

•  सुरेश एस डुग्गर
हिंदुस्थान की एलओसी से सटे पुंछ और राजौरी जिले में एक सप्ताह पहले हुई आतंकी हमले में पांच सैनिकों की शहादत जम्मू संभाग में कोई पहली घटना नहीं है। आतंकवाद की शुरूआत के साथ ही जम्मू संभाग कभी भी आतंकी हमलों और सैनिकों की शहादत से अछूता नहीं रहा है। जम्मू संभाग कई आतंकी हमलों का गवाह है, जिसमें बड़ी संख्या में जवान और अफसर शहीद हुए हैं। आतंकियों ने २८ जून २००३ को जम्मू के सुंजवां में स्थित सेना की ब्रिगेड पर हमला बोला तो १५ जवान शहीद हो गए।
आतंकी हमले और सैनिकों की शहादतें यहीं नहीं रुकीं। वर्ष २००३ में ही २२ जुलाई को जम्मू के अखनूर में आतंकियों ने एक और सैनिक ठिकाने पर हमला बोला तो ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी समेत ८ सैनिकों को शहादत देनी पड़ी। यह सिलसिला बढ़ता गया और आतंकी हमले करते रहे। जवान शहीद होते गए। इतना जरूर था कि अखनूर में वर्ष २००३ में हुए हमले के उपरांत करीब १० वर्षों तक जम्मू संभाग में सुरक्षबलों पर कोई बड़ा हमला नहीं हुआ था। आतंकियों ने पाक सेना के जवानों के साथ मिलकर ६ अगस्त २०१३ को पुंछ के चक्कां दा बाग में हमला किया तो ५ जवानों को जान गंवानी पड़ी। जबकि इस हमले के एक महीने के बाद ही ६ सितंबर २०१३ को आतंकियों ने सांबा व कठुआ जिलों में हमले कर ४ सैनिकों और ४ पुलिसकर्मियों को जान से मार डाला। इनमें एक कर्नल रैंक का अधिकारी भी शामिल था।
आखिरकार, जम्मू-कश्मीर से धारा ३७० खत्म करने और नोटबंदी का हवाला देकर आतंकवाद और नक्सलवाद को रोकने की दुहाई देनेवाली सरकार इन हमलों को कब रोक पाएगी? जबकि कश्मीरी पंडितों की दिनदहाड़े हत्या हो रही है। कश्मीरी पंडित अपनी सुरक्षा की दुहाई दे रहे हैं और सरकारी कर्मचारियों को चुन-चुनकर कार्यालय में घुसकर मारा जा रहा है। पुंछ में हुई आतंकी हमले की घटना पुलवामा हमले की तरह ही पूरी तरह से संदिग्ध है।

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