धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
भविष्य के डॉक्टरों को मानव शरीर का अध्ययन करने के लिए शरीर रचना विज्ञान पढ़ाते समय दान किए गए शवों की आवश्यकता होती है। एमसीआई के नियमों के मुताबिक, प्रत्येक १० छात्रों पर एक शव की आवश्यकता होती है। हालांकि, बीते तीन सालों में देहदान के मामलों में भारी कमी आई है। आलम यह है कि प्रदेश में १०० से १५० विद्यार्थियों वाले मेडिकल कॉलेज में केवल २ से ५ शवों के जरिए ही प्रैक्टिकल करना पड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भावी डॉक्टरों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा है। इसके बावजूद इस दिक्कत पर घाती सरकार गंभीरता से ध्यान नहीं दे रही है।
तो नहीं स्वीकार किया जा सकता देहदान
यदि मृतक किडनी रोग, एड्स, हेपेटाइटिस-बी, रक्त संक्रमण, वैंâसर से पीड़ित हो तो देहदान स्वीकार नहीं किया जाता। इसी तरह अदालती या आत्महत्या मोमलों के शव स्वीकार नहीं किए जाते हैं।
औसत शव दान आधे से भी कम
डॉ. अर्चना कल्याणकर ने बताया कि प्रथम वर्ष के मेडिकल छात्रों को शरीर के बारे में सारी जानकारी बताई जाती है। विभिन्न रसायनों की मदद से पूरे वर्ष शरीर का रख-रखाव किया जाता है। वहीं आईएमए के पूर्व अध्यक्ष संतोष रंजलकर ने कहा कि शरीर रचना और शव परीक्षण के लिए मानव शव जरूरी है। हालांकि, शवों की कमी का असर पढ़ाई पर पड़ता है। मेडिकल कॉलेजों के साथ ही छात्रों की संख्या में भी वृद्धि हुई। ऐसे में भावी डॉक्टरों की मदद के लिए देह दान के प्रति जन जागरूकता पैदा करना जरूरी है। इससे मेडिकल कॉलेजों के छात्रों को फायदा होगा।
सभी मेडिकल कॉलेजों में है यही स्थिति
स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि हर साल मेडिकल कॉलेजों में शव दान के मामलों में गिरावट देखी जा रही है। ऐसे में अधिकांश कॉलेजों के मेडिकल छात्रों को दो से पांच शवों के माध्यम से ही प्रैक्टिकल प्रशिक्षण करना पड़ रहा है। ऐसे में यदि शव दान के मामलों में वृद्धि नहीं होती है तो उनकी पढ़ाई पर असर पड़ेगा।