मुख्यपृष्ठस्तंभपुस्तक समीक्षा : `सिने गीतकार' २१ गीतकारों की रोचक दास्तान

पुस्तक समीक्षा : `सिने गीतकार’ २१ गीतकारों की रोचक दास्तान

राजेश विक्रांत

आनंद बख्शी, इंदीवर, कैफी आजमी, गोपाल सिंह नेपाली, गोपालदास नीरज, जफर गोरखपुरी, जां निसार अख्तर, नक्श लायलपुरी, निदा फाजली, पं. प्रदीप, मजरूह सुल्तानपुरी, योगेश, शैलेंद्र, साहिर लुधियानवी, सुदर्शन फाकिर, हसरत जयपुरी, अभिलाष, कतील शिफाई, राहत इंदौरी, जावेद अख्तर और माया गोविंद। बॉलीवुड के इन २१ गीतकारों की रोचक दास्तान से समाहित पुस्तक है सिने गीतकार। अद्विक प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित इस पुस्तक के लेखक जाने-माने कवि, शायर, गीतकार, मंच संचालक व कार्यक्रम संयोजक-आयोजक देवमणि पांडेय हैं। पांडेय जी खुद एक बेहतरीन सिने गीतकार हैं। लिहाजा, उन्होंने ये पुस्तक भावनाओं में डूबकर लिखी है। इस पुस्तक का लोकार्पण चित्रकार आबिद सुरती, कथाकार सूरज प्रकाश और व्यंग्यकार सुभाष चंदर ने दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में २६ फरवरी, २०२३ को किया था। इस पुस्तक में सिने गीतों से संबंधित ६ आलेख भी हैं। देवमणि पांडेय के अनुसार- `मेरी खुशकिस्मती है कि कई प्रतिष्ठित गीतकारों से मुझे आत्मीय मुलाकात का मौका मिला। उनसे अंतरंग बातचीत हुई। बहुत कुछ जानने, समझने और सीखने को मिला। मुझे पूरी उम्मीद है कि नई पीढ़ी को भी इन गीतकारों की रोचक दास्तान पसंद आएगी।’
पुस्तक की भूमिका सिने जगत के बहुचर्चित गीतकार मनोज मुंतशिर ने लिखी है। वे लिखते हैं- `मेरे बड़े भाई और सीनियर श्री देवमणि पांडेय जी की ये पुस्तक, जो आपके हाथों में है, ये फिल्मी गीतों और गीतकारों को यथोचित सम्मान देने का एक भगीरथ प्रयास है। मैं देवमणि जी का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने इस प्रयोजन को सार्थक करने के लिए दिन-रात एक कर दिया। ये पुस्तक पढ़िए, इसके बाद जब आप फिल्मों के गीत सुनेंगे, तो उन शब्दकारों को इज्जत से याद करेंगे, जो जिंदगी भर अदब की महफिल के बाहर बंजारों की तरह खड़े रह गए, जिन्हें साहित्य की सभा में किसी ने पानी तक नहीं पूछा।’
बॉलीवुड के २१ गीतकारों पर एक साथ इतनी रोचक व ज्ञानवर्धक पुस्तक शायद दूसरी नहीं आई है। देवमणि के अब चार कविता संग्रह- दिल की बातें, खुशबू की लकीरें, अपना तो मिले कोई, कहां मंजिलें कहां ठिकाना तथा एक गद्य पुस्तक-अभिव्यक्ति के इंद्रधनुष: सिने जगत की सांस्कृतिक संपदा प्रकाशित हो चुकी है। `सिने गीतकार’ उनकी नई गद्य पुस्तक है। उनकी दो गजलें जलगांव विश्व विद्यालय के एमए हिंदी के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। फिल्म `पिंजर’ में लिखे उनके गीत `चरखा चलाती मां’ को सन २००३ के लिए बेस्ट लिरिक ऑफ दि ईयर अवॉर्ड प्राप्त हो चुका है।
देवमणि ने रचनाधर्मिता की दुनिया में नैतिकताओं की एक नई इबारत लिखी है। वे मुंबई के इकलौते ऐसे मंच संचालक हैं जो किसी रचनाकार की पंक्तियों को उसके नाम से उद्धृत करते हैं। इसके अलावा `चित्रनगरी संवाद मंच’ के माध्यम से उन्होंने पिछले कई सालों से मुंबई में हर सप्ताह साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित कर एक नया रिकॉर्ड बनाया है। इस वजह से सिने गीतकार पढ़ने में किसी फिल्म सरीखा आनंद देती है।
पं. प्रदीप, साहिर, शैलेंद्र, आनंद बख्शी और उनके उपरोक्त साथियों ने अपनी कलम से सिने संगीत को समृद्ध किया। इनके गीतों में संगीत प्रेमियों के दिलों की धड़कनें शामिल हैं। सोच, एहसास और सपने शामिल हैं। यहां तक कि जिंदगी से मायूस न जाने कितने लोगों को इनके गीतों ने खुदकशी से बचाया और जीने का मकसद समझाया। बीसवीं सदी के ये गीतकार इक्कीसवीं सदी के गीतकारों को क्या कोई प्रेरणा दे रहे हैं? क्या आज के गीतकारों की रचनात्मकता के साथ गुजरे जमाने के गीतकारों का कोई रिश्ता है? फिल्म `केसरी’ में मनोज मुंतशिर का गीत है -`तेरी मिट्टी में मिल जावां’। देश-विदेश में इस गीत को असीम लोकप्रियता हासिल हुई। मनोज ने बताया कि उनके लिए वैâफी आजमी का गीत प्रेरणास्रोत बना- `कर चले हम फिदा जानो तन साथियो। अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।’ हकीकत यही है कि आज भी बीसवीं सदी के गीतकार इक्कीसवीं सदी के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।
आज सिने संगीत का मंजर बदल गया है। सब्जी-भाजी की तरह गीत बिक रहे हैं। गीतकारों से एक लाइन का मुखड़ा यानी हुक लाइन मांगी जाती है। संजीदा गीतकारों के लिए ऐसे माहौल में काम करना बेहद मुश्किल है। फिर भी इस किताब में शामिल गीतकार नई पी़ढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत साबित होंगे और उन्हें आगे बढ़ने का हौसला देंगे। दो सौ पेज की इस पुस्तक का मूल्य ३०० रुपए है।

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