मुख्यपृष्ठस्तंभपुस्तक समीक्षा : जीवन की विभिन्न अनुभूतियों का आईना है `एहसासात'

पुस्तक समीक्षा : जीवन की विभिन्न अनुभूतियों का आईना है `एहसासात’

राजेश विक्रांत

`एहसासात’ के शायर नरोत्तम शर्मा अध्यापक बैंकर, संपादक, लेखक, अभिनेता, गीतकार, कॉपी राइटर, संगीतकार आदि कई विशेषताओं के धनी हैं। यह उनका प्रथम संग्रह है, जिसका मुख्य स्वर आज के मानव की संवेदनशून्यता व संताप का है जिनमें सामाजिक विद्रूपताओं के चितकबरे चित्र यत्र-तत्र मिलते हैं। इसी कारण उनकी गजलें अपने समय की ईमानदार बयानी के रूप में पढ़ी जा सकती हैं।
`एहसासात’ में ८६ गजलें हैं और दूसरे खंड में ३०१ शेर हैं। या खुदा मेरा इम्तेहान न ले, है तो सब कुछ मगर कमी सी है, जिस दिल पे किसी हुस्न का पहरा नहीं होता, जिंदगी कहकहा नहीं होती, घर और बाहर रिश्तों का इक मेला है, इतने दिन में आये हो, वक्त ने तन्हा कर डाला तो गम न कर, दिल है ये मेरा, कोई शीशा नहीं, किसी की बेबसी के लगते हैं, जाने वैâसा हो जाता हूं, साफ दिखता है कि मुरझाया हुआ, तब न कोई गम होते थे, चांद तुम्हें अच्छा लगता है और मुझे भी, खुद पे काबू रखा, लाचार नहीं होने दिया, दु:ख जो आया तो टूटकर आया, जब मन घायल हो जाएगा, गुम जिसे कहते हो, वो चुटकियों में झेलते थे, रात की वैâद में चांदनी आजकल, क्या भरोसा करें हबीबों का, राख के ढेर में छुपा क्या है, उसने भी बिजलियां बना ली हैं, नए सफर के नए मरहले बनाने पड़े, तिनकों संग बुहारी है, जब भी रूखा-सूखा पढ़ना, मुश्किलों से तू किनारा न कर, दर्द की मीनार मेरी जिंदगी, दिल से निकली हुई आहों का असर होता है, तेरी नजर से मेरे दिल को यूं करार मिला, हम जितने पास होंगे, जिस्म जब थक के बिखर जाता है, और कुछ भी सनम कीजिए, कितने हैं बेचारे लोग, वक्त ने ढाया क्या कहर तो देखो, खुद को खूब संवारे रख, दिल में दीप जलाकर देख, जीने के भी लाख बहाने, सरहदें न अगर हो तो वैâसा रहे, हरेक पर में उड़ान होती है, सर्दियों में धूप का एहसास होती है गजल, कुछ न कुछ सब के डर है, मिरा न हो के भी, वो कुछ तो मिरा है शायद, कहीं भी रह ले, मेरा दिल है ठिकाना तेरा, आदमी का प्यार से रिश्ता तो था, दिल दुखाना आजमाना तो नहीं है आदि गजलों में विषयों की विविधता है। गजलों के कुछ उदाहरण देखिए-
या खुदा मेरा इम्तेहान न ले वैâसे जीता हूं, ये बयान न ले/ जिस्म पिंजर है रूह छलनी है, ढक के रखता हूं कोई जान न ले/ बड़ी मुश्किल से बच के आया हूं, जिंदगी फिर कहीं पहचान न ले/ मांग लेगा कभी कीमत तुझसे, भूल कर दोस्त का एहसान न ले।
जीने के भी लाख बहाने, न जीने के भी लाख बहाने। नहीं उन्हें जब हमसे मिलना न मिलने के लाख बहाने, किसने किसी को न पहचाना उसको कोई क्या पहचाने। किसको फुसलाना आता है उसके लाखों लाख दीवाने।
परत दर परत जीवन छीला, कभी तो कड़वा कभी रसीला/ कभी तो बिन मांगे ही दे, दे कभी मुकद्दर बड़ा हठीला/कभी तेज गाड़ी की माकिफ, कभी-कभी कछुए सा ढीला/ कभी तो इस पर चिढ़ आती है, कभी ये लगता मस्त रंगीला/ कभी नरम ककड़ी के जैसा, कभी बड़ा ही गांठ गंठीला।
जो गजल के दीवाने हैं उन्हें नरोत्तम शर्मा के `एहसासात’ से काफी कुछ मिलेगा। संग्रह की सारी गजलें जीवन की विभिन्न अनुभूतियों को आवाज देती हैं। इनकी अपनी एक अलग भाषा शैली है और अपना तेवर है।
एहसासात का प्रकाशन आस्था प्रकाशन जालंधर के मोहन सपरा ने किया है। १२८ पेज की इस कृति का मूल्य २७५ रुपए है। मुखपृष्ठ पर बिमल विश्वास की पेंटिंग का उपयोग कर प्रकाशक ने कृति को अनमोल बना दिया है।

(लेखक तीन दशकों से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)

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