राजेश विक्रांत
कथाकार, प्राध्यापक, अनुवादक व संपादक से कहीं ज्यादा मैं प्रभात रंजन को साहित्यिक कार्यकर्ता मानता हूं। सोशल मीडिया हो या जानकीपुल वेवसाइट उनकी निरंतर सक्रियताओं का गवाह है। वे सामयिकता में ज्यादा यकीन रखते हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण उनका उपन्यास किस्साग्राम, जो कि बिहार के एक गांव अन्हारी में जन्मा। जो कि १९९० के दशक की राजनीति व सामाजिक मुद्दों की चर्चा करता है, लेकिन यह बिहार नहीं, बल्कि पूरे देश के समय की सच्चाई है, जिसमें धर्म व राजनीति की कड़वी सच्चाई दर्ज है। इसे उपन्यास के एक पात्र चमन पांडे के संदेश से समझिए ‘राजनीति की सीढ़ियां वही नहीं चढ़ते जो दिन-रात राजनीति, सेवा, देशहित, प्रदेश हित, जाति, धर्म की बात करते रहते हैं। कई बार कोई ऐसा नेता भी आता है जो कुछ नहीं कहता, लेकिन लोग उसी को वोट देते हैं। कारण यह कि वह सच्चा लगता है। आजकल समाज में सच्चे लोगों की कमी जो हो गई है!’
उपन्यास १५ उप शीर्षकों में है- अथ कथा चौतरा हनुमान, घटना से दुर्घटना तक, कुछ के कुछ और होने की कहानी, खत्म जवानी शुरू कहानी, पढ़ने में हिंदी बोलने में हिंग्लिश, हारे हुए जरूर हैं मारे हुए नहीं, फाव में बन गए सावजी, आन-बान-शान-खान, पुलिस फाइल में, विवाद का जिन्न, चमन का सपना और सपने का चमन, सबसे ऊपर अपना झंडा महावीर असवारी, चुनाव और चमन का चुनाव, कहानी की डोर और राजनीति का छोर, भूला पहलवान से चमन बहार तक।
इसके पात्र छकौरी पहलवान, उसके गुरु सुमंत, सुशील राय, चमन पांडे, गोपाल शर्मा, बिंदल वैरागी, बुरहान खान, राम स्वार्थ राय, चिरंजीलाल शाह, बुटकुन बाबू व पीर मोहम्मद के जरिए कथा व उपकथाओं की रवानी व्यंग्य की धार की चाशनी पाकर बेहद दिलचस्प हो जाती है और ऐसा लगता है कि हम कोई फिल्म देख रहे हैं। सत्य व्यास ने सही लिखा है कि प्रभात रंजन की रचनाओं में कथा तत्व की संपन्नता के साथ-साथ जीवन के क्रूर, जटिलतम और त्रास युक्त आख्यानों के लिए भी जीवंत आस्था और उल्लास है। शिल्प और सौष्ठव और भाषाई गहराई उनकी विशेषता है।
`किस्साग्राम’ में स्थानीय मुहावरों व राजनीतिक नारों के प्रयोग से रोचकता बढ़ गई है। छकौरी पहलवान, चौतरा हनुमान और चमन पांडे के जरिए रचे गए रूपक देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर उर्फ छोटा पैकेट बड़ा धमाका है। किस्साग्राम को पूरे देश के धर्म व राजनीति की विसंगतियों व विद्रूपताओं का सामाजिक इतिहास कहा जाना चाहिए। ११२ पेज के किस्साग्राम को राजपाल एंड संस, नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इसकी कीमत १९९ रुपए है। रोचकता की गारंटी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)