मुख्यपृष्ठस्तंभपुस्तक समीक्षा : सामयिक समस्याओं को उजागर करने में अग्रसर `मुरली सतसई'

पुस्तक समीक्षा : सामयिक समस्याओं को उजागर करने में अग्रसर `मुरली सतसई’

राजेश विक्रांत

साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में मुरलीधर पांडेय ने समस्त देश से जनता के बीच कवियों, रचनाकारों को `संयोग साहित्य’ के रूप में ऐसा मंच मुहैया कराया है, जिसकी मिसाल कम ही मिलती है। उन्होंने अपनी पत्रिका में धूल के फूल को स्थान देकर साहस का काम किया है। पहले बैंकर, फिर कवि और पिछले ३० सालों से संपादक मुरलीधर पांडेय जुझारू कलमकार, नाटककार, भजन लेखक व शास्त्रीय रचनाकार भी हैं।
समकालीन हिंदी रचनाकारों में उनका एक विशिष्ट स्थान है। उनकी कृति मुरली सतसई में ७०० दोहे हैं। इनकी रेंज असीमित है। यथा- बसा नहीं है देश में कंजूसों का गांव। फिर भी उसको देखिए, खड़ा मिले हर ठाँव।। हर कोई होता नहीं, बहुत बड़ा बलवान। मनुज नहीं होता बड़ा, होते कर्म महान।।
बता दें कि छंदबद्ध काव्य साहित्य की एक प्रमुख विशेषता रही है। हिंदी कविता में साहित्यकारों ने सवैया, चौपाई, सोरठा, दोहा आदि छन्दों का प्रयोग करके इन्हें गेय बनाने के साथ ही साथ अपने काव्य कौशल को अभिव्यक्ति दी है। छंदों में भी दोहा छंद सबसे प्रभावशाली और लोकप्रिय छंद के रूप में देखने को मिलता है।
कवि ने मुरली सतसई में इन्हें नया रूप दिया है। इसमें सामाजिक, आध्यात्मिक, बाल, पारिवारिक, श्रृंगार उपदेशात्मक, हास्य व्यंग्य यानी व्यक्ति से लेकर ब्रह्मांड तक को समेटने का प्रयास किया गया है- दर्पण जैसा न्याय हो, सूरज जैसी आग। अर्पण जैसी भावना, चंदा जैसे दाग, अच्छे दिन तो आ गए, घर में नहीं पिसान। हाथों में पैसे नहीं, रोता मिला किसान, नदी किनारे तीर्थ है, डलिया, मेलिया, फूल। जजमानों को पकड़कर, खूब चटावे धूल, रोटी में घी चाहिए, ढंग से चुपड़ी होय। लेकिन अपने घर नहीं, दूसर का घर होय, जूता चप्पल के लिए सीधे मंदिर जाय। मन माफिक पहने वहीं, सीधे घर आ जाय।। वादा पर वादा करे, करे घात पर घात। भाषण भी सुनते रहो, सहो लात पर लात।।
मुरली सतसई के दोहों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जीवन की सार्थकता और नश्वरता दोनों का चित्रण है। चूंकि कवि एक स्थापित शास्त्रीय संगीतकार हैं, लिहाजा सभी दोहों में गेयता एक अनिवार्य तत्व है।
७ अक्टूबर १९४९ में गोंडा, उत्तर प्रदेश जिले के एक गांव बाल्हाराई, नगवा, तरबगंज में जन्मे मुरलीधर ने सामान्य साहित्य और बाल साहित्य की अनेक विधाओं पर कुशलतापूर्वक लेखनी चलाई है। मुरली सतसई में उन्हें डॉ. परशुराम शुक्ल, आचार्य रामदेव लाल विभोर, डॉ. रामकृष्ण शर्मा का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। संयोग प्रकाशन, भायंदर द्वारा प्रकाशित मुरली सतसई की पृष्ठ संख्या १२८ है और इसका मूल्य १५० रुपए है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)

अन्य समाचार