राजेश विक्रांत
मध्य रेल के वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी डॉ. अशोक कुमार सिंह की पुस्तक जनसंपर्क और हिंदी: भारतीय रेल के परिदृश्य में एक महाग्रंथ है, जो जनसंपर्क, हिंदी व रेलवे को जोड़ता है। आशीर्वचन में महाप्रबंधक राम करन यादव ने सही लिखा है कि देश में रेलों के निर्माण चरण से ही हिंदी भाषा का अहम योगदान रहा है। देश में रेल निर्माण के दौरान आपसी संपर्क के लिए अंग्रेजों के द्वारा भी एंग्लो-इंडियन समुदाय का सहयोग लिया गया था। यह परंपरा रेलवे में आज भी जारी है, जहां रेलों पर जनसंपर्क के लिए प्रमुखता से हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया जाता है। अधिकांश रेलों जैसे राजधानी, शताब्दी, जन शताब्दी, गोदान, कामायनी, वंदे भारत और अमृत भारत जैसी प्रतिष्ठित गाड़ियों का नामकरण भी हिंदी में ही किया गया है, जो जनसंपर्क के क्षेत्र में हिंदी के प्रयोग का अनूठा उदाहरण है।
पुस्तक में ७ अध्याय हैं। प्रथम अध्याय-जनसंपर्क में जनसंपर्क की अवधारणा, जनसंपर्क का स्वरूप, जनसंपर्क की व्याप्ति एवं उपयोगिता, जनसंपर्क लक्ष्य एवं नीतियां, जनसंपर्क एवं समाज कल्याण, जनसंपर्क में आने वाली समस्याएं एवं उनका समाधान, द्वितीय अध्याय-भारतीय रेल में जनसंपर्क और हिंदी में स्वतंत्रता पूर्व हिंदी का प्रयोग, स्वतंत्रता के बाद हिंदी का प्रयोग, जनसंपर्क में हिंदी का प्रयोग, संवाददाता सम्मेलन, प्रेस टूर, जन प्रतिनिधियों से भेंट, प्रायोजित दौरा, भारतीय रेल में जनसंपर्क एवं हिंदी की उपयोगिता, रेल में प्रयुक्त हिंदी एवं जनसंपर्क : अंतर्संबंध, तृतीय अध्याय-भारत में रेल का उद्गम में भारतीय रेल का गौरवशाली इतिहास, भारतीय रेल का उत्तरोत्तर विकास, भारतीय रेल की अत्याधुनिक तकनीक, चतुर्थ अध्याय-भारतीय रेल और जनसंपर्क में भारतीय रेल में जनसंपर्क एवं उसकी उत्पत्ति, भारतीय रेल में जनसंपर्क की भूमिका, भारतीय रेल में जनसंपर्क का महत्व, जनसंपर्क अधिकारी का उत्तरदायित्व, पंचम अध्याय-जनसंपर्क में हिंदी और प्रिंट मीडिया का योगदान में मुद्रित माध्यम, पत्राचार, विशेषांक प्रकाशन, पुस्तकें, विज्ञापन, कार्टून निर्माण, एनेमल बोर्ड, प्रदर्शनी एवं नुमाइश, बुकलेट्स (स्मारिका), पोस्टर्स हैंडबिल, नियोन प्रदर्शन, डिस्प्ले बोर्ड, उद्घोषणाएं, जन-सूचनाएं, आरक्षण-सूची, छठे अध्याय जनसंपर्क में हिंदी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का योगदान में दूरदर्शन, रेडियो, कंप्यूटर, इंटरनेट, रेल नेट, वेबसाइट, पैâक्स, ईमेल, टेलीफोन, वायरलेस, वॉकी-टॉकी, पीआरएस, टीवी चैनल, व्हॉट्सऐप, ट्विटर एवं कू, इंस्टाग्राम, फेसबुक, ब्लॉग, सातवें अध्याय-भारतीय रेल में डिजिटल और सोशल मीडिया का योगदान में डिजिटल सुविधाएं, भारतीय रेल में सोशल मीडिया का महत्व, सूचना का प्रसार और सेवाओं को बढ़ावा देना तथा संकट प्रबंधन और ग्राहक सहायता इन उपशीर्षकों के तहत लेखन ने विषय पर गहराई से प्रकाश डाला है।
पुस्तक से कुछ अनोखी जानकारियां मिलती हैं- मध्य रेल के निर्माण में भाप इंजिन के आविष्कारक जार्ज स्टीफेंसन के पुत्र रॉबर्ट स्टीफेंसन का भी योगदान है। देश का पहला रेलवे वर्कशॉप १८६२ में बिहार के मुंगेर में खोला गया। गांधी जी ने १९१६ में रेलयात्रियों में जागरूकता के लिए हिंदी में १० सूत्रीय आचार संहिता बनाई थी। भारतीय रेलवे हर साल ५०० से ज्यादा बैठकों (साहित्यिक, तकनीकी या संरक्षा) तथा १,५०० से ज्यादा अनुसूचित व गैर अनुसूचित बैठकों का आयोजन करती है। पुस्तक आर के पब्लिकेशन ने प्रकाशित की है। साहिल कांबले का आवरण सामयिक है। पृष्ठ संख्या १५६ तथा मूल्य ४५० रुपए है।