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पुस्तक समीक्षा : सब्जेक्ट मंथन साहित्य विशेषांक : साहित्य में स्त्री कदम की धमक

राजेश विक्रांत
ठाणे से प्रकाशित `सब्जेक्ट मंथन’ के साहित्य विशेषांक २०२४ को `नारी केंद्रित साहित्य समग्र’ कहने के पीछे की वजह यह है कि मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, स्तंभकार व मुंबई के अप्रतिम इतिहासकार विमल मिश्र ने बतौर अतिथि संपादक सर्वश्रेष्ठ संयोजन किया है। इसमें देश की सबसे प्रतिष्ठित महिला साहित्यकारों की कहानियां, कविता, साक्षात्कार, पुस्तक अंश, आत्मकथ्य व विवेचना शामिल की गई है। मतलब साहित्य में स्त्री कदम की धमक से रूबरू होना है तो डॉ. महेश अग्रवाल के शाहकार मंथन के इस विशेषांक का पठन जरूर करें।
विमल मिश्र ने अपनी बात `चुनौतियों से मुकाबिल महिला लेखन’ में लिखा है, `महिला कथाकारों के लिए यह चुनौतियों भरा समय है। साहस और विवेक की आजमाइश का समय, जब लैंगिक विषमताओं की जकड़न के साथ स्त्री रचनाशीलता को जड़ता से टकराने के संघर्ष से भी निरंतर जूझना पड़ रहा है। ये चुनौतियां हमेशा से रही हैं। हिंदी कहानी के युवा स्त्री स्वर के प्रति आश्वस्ति की दो बड़ी वजहें हैं। एक, उनमें निरंकुशता से साहस के साथ लड़ने का माद्दा है। दूसरा, तमाम सामाजिक-आर्थिक अंतर्विरोधों को उनकी जटिलता में परखने का विवेक भी।’ इसलिए `मंथन साहित्य समग्र’ में पत्रकार रेखा खान नायक, नायिकाओं के साथ ट्रेड एक्सपर्ट व सेलिब्रिटी वकील से इंटरव्यू लेती हैं कि `नायिकाओं को मिलते हैं नायक की तुलना में इतने कम पैसे!’
विश्वनाथ सचदेव `सफर एक पीढ़ी का’ विचार व्यक्त करते हैं। चित्रा मुद्गल की `हथियार’, अलका सरावगी की `एक पेड़ की मौत’, अभी अभी १५ मई को दिवंगत मालती जोशी की `उसने नहीं कहा’, सुदर्शना द्विवेदी की `कहो तो सही’, जयंती रंगनाथन की `चौथा मुसाफिर’, नीरजा माधव की `छोटू’, तथा ममता सिंह की ‘सन्नाटा ऑनलाइन’ कहानी है। मृदुला गर्ग का पुस्तक अंश `दो बेमिसाल टीचरें’ है। डॉ. सूर्यबाला का आत्मकथ्य `ये तुम लोगों के मामा हैं’। चंद्रकला त्रिपाठी का शोधपरक आलेख `कहानी का समकाल और युवा कहानी का स्त्री स्वर’ है। राजेश जोशी, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, प्रो. नंदलाल पाठक, चित्रा देसाई और अनुराधा सिंह की कविताओं के साथ देवेंद्र मेवाड़ी का यात्रा संस्मरण `वह सुरमई शाम बाली द्वीप की’ मंथन विशेषांक के विशेष आकर्षण हैं। अतिथि संपादक हिंदी की श्रेष्ठ महिला रचनाकारों से उनकी रचनाएं हासिल करने कामयाब रहे हैं। पत्रिका की साज सज्जा, मुखपृष्ठ, मुद्रण आदि सभी सर्वोत्तम हैं। संपादक महेश अग्रवाल का आभार कि वे मंथन के जरिए पिछले २९ साल से साहित्य, पत्रकारिता व समाज की निरंतर सेवा कर रहे हैं। डिमाई साइज में ९० पृष्ठ की पत्रिका का मूल्य ६५ रुपए है। साहित्य प्रेमियों के लिए ये अनुपम उपहार है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)

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