राजेश विक्रांत
मुंबई के सुप्रसिद्ध पत्रकार, लेखक गोपाल शर्मा को कौन नहीं जानता। उनके बिंदास स्वभाव को जिसने न महसूस किया हो, वह मुंबई के एक बड़े साहित्यिक कालखंड को जानने से वंचित है। प्रेम व अपनापन से पगी उनकी जुबान असंख्य लोगों को मोहित करती है। वे बिना शर्त रचनाकारों पर प्रेम लुटाते हैं। मुंबई के सामाजिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक इतिहास पर आधारित ‘बंबई-दर-बंबई’ के काफी बाद गोपाल शर्मा का कहानी संग्रह ‘अम्मा का घराक’ आया और आते ही छा गया। इस कहानी संग्रह में कुल २२ प्रेम-कहानियां शामिल हैं, जो पाठकों की संवेदनाओं से साक्षात्कार करते हुए कहती हैं कि गोपाल शर्मा जैसा प्रेम को समर्पित अद्भुत कथाकार कोई नहीं। आर के पब्लिकेशन, मुंबई से प्रकाशित इस पुस्तक में सागर सरहदी ने सही लिखा है, `पंडित जी की कहानियों में गैरमामूली समझ, गहरी मानवीयता, मीनिंगफुल, धीमी-धीमी आंच लगनेवाली कहानियां, जो आपको अपने जज्बे में जकड़ लें, आपको सांस न लेने दें।’ और गोपाल शर्मा ने भी भूमिका में बहुत साफगोई से अपनी बात रखी है। मेरे जैसे गैर कहानीकार के लिए इससे अधिक कुछ कह पाना मुश्किल ही है। यह पुस्तक स्व. रमाकांत आजाद को समर्पित है। इस कहानी संग्रह में जोगी मत जा रे जोगी, सांवले रूप का सच, जीती हुई चीज नहीं है औरत, आंसुओं का विश्वास, बावस्ता ख्वाब, वैâसे पिया की अटारी चढ़ो जाए, पैदली मात, रुन झुन छंद बजाते नूपुर, अच्छा है अजनबी होना, मोरली क्यारे वगाडी, औरत रोएंगा तो ईरानी पागल हो जाएंगा, मुश्के इश्क, तुम तो ठहरे परदेशी, चांदी की नदी के कछार में, गजगामिनी, विरह के सात साल, पूरनमासी की रात जंगल में, महक गुलाबों की, देवदारों के साये तले, अधिकार का स्पर्श, उस रात की गंध तथा अम्मा का घराक कहानियां हैं। पहली कहानी ‘जोगी मत जा रे जोगी’ शिवालय से हिमालय तक मलंगबाबा के जरिए पाठकों से मूक संवाद करती है। ऊदलपुर की घूंघटवाली स्त्री का बिलख-बिलख कर रोना रिश्तों के रहस्य की परतें टटोलने को प्रेरित करता है, तो संग्रह की आखिरी कहानी ‘अम्मा का घराक’ में कमाठीपुरा के एक कोठे पर गंगूबाई और आजाद की अविरल अश्रुधारा पाठक के अंतर्मन को झिंझोड़ देती है। गोपाल शर्मा आम आदमी के जीवन की कहानियां लिखते हैं। इनका हरेक पात्र आपको अपने पड़ोस, घर का लगता है। ये पात्र आपके साथ चलते हुए आपकी संवेदनाओं को झकझोरते हैं। दरअसल, गोपाल शर्मा अपनी कहानियों में गरीबी-भुखमरी से जूझते निचले तबके से लेकर खाए-अघाए हाई-क्लास की एक प्रकार से नकली जिंदगी की बदमाशियों पर पैनी नजर रखते हैं। इसलिए सामाजिक परिवेश का जो सच इतिहास की किताबों में छूट जाता है, इन कहानियों में अपने असली रूप में दिखता है।
जीती हुई चीज नहीं है औरत और सांवले रूप का सच की बनावट मानवीय अनुभूतियों को प्रेरित करती है। इसी तरह से गजगामिनी की नर्गिस और विरह के सात साल के आयशा व साजिद जिंदगी के अनुभव को विस्तार देते हैं। यह एकदम सही है कि गोपाल शर्मा बंबई और मुंबई को जीते हैं। वे मुंबई के चलते-फिरते एनसाइक्लोपीडिया हैं। मुंबई के बारे में गहरी समझ रखते हैं। उनकी पुस्तक बंबई दर बंबई शहर का एक नया सामाजिक परिवेश सामने रखती है। इसी तरह इस शहर के बारे में उनकी सोच की बानगी मुंबई के परिवेश पर आधारित उनकी कहानियों में भी दिखती है और इसीलिए मोरली क्यारे वगाड़ी कहानी मन मोह लेती है। औरत रोएंगा तो ईरानी पागल हो जाएंगा की हमीद ईरानी और भाजीवाली लड़की प्रेम कहानी हो या मुश्के-इश्क में कुबरा के प्रेम में डूबे अली चा की छटपटाहट, इन कहानियों में जिंदगी अपनी पूरी शिद्दत से उभरी नजर आती है। कुल मिलाकर `अम्मा का घराक’ एक नायाब कृति है। इसमें गोपाल शर्मा हर जगह मौजूद हैं। अपनी सोच से, अपने बिंदास स्वभाव से तथा अपने गंभीर प्रेम के सिद्धांत से। सभी की सभी २२ कहानियां प्रेम, संवेदनशीलता व रिश्ते का एक अनुपम रूप प्रस्तुत करती हैं। रुनझुन छंद बजाते नूपुर कहानी की पंक्ति- ‘कवि की प्रेमिका होना दुनिया की सबसे सुंदरतम चीज है और कवि की पत्नी होना दुनिया की सबसे घृणित चीज’ का सौंदर्य सोचने पर मजबूर कर देता है। जो लोग मुंबई की खूबसूरती और सच के बीच की बारीक पंक्ति को तोड़कर जिंदगी से रू-बरू होना चाहते हैं उन्हें गोपाल शर्मा की ‘अम्मा का घराक’ जरूर पढ़ना चाहिए। आर के पब्लिकेशन, समूह के राम कुमार को इस अनुपम कृति के प्रकाशन के लिए बधाइयां। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)