संतोष मधुसूदन चतुर्वेदी
इक बौ समै हतो जब जमाई के आइबे कौ भौत बेसब्री सौं इंतजार होमतो जामै खुद कौ घर ई नाँय, अरौस-परौस के घर ऊ लीप, पोत औरु साज-सज्जा सूं चमक जामते। झक्क स्वेत चादर बिछी खाट औरु काढ़ो भयौ मेजपोश बिछौ मेज औरु बीचौबीच रखौ गुलदस्ता। ससुर जी ठोढ़ी बनाइकें औरु निकोर नये लत्ता पैनकें जमाई जी के सुआगत कूं तयार रहमते।
सारे औरु सारी जीजाजी के सुआगत मै पलक पावड़े बिछायें सपूरे मान-सम्मान सूं घर मै इत्तिन-बित्तिन भाजते फिरते। थोरी-थोरी देर मै दरवज्जे की झिरी सूं झाँकत भयी सरमाती सकुचाई भयी दो आखें लगातार भीतर सूं खुसुर-पुसुर की आवाज आमती रहती। स्यात बच्च’न कूं दिशा निर्देश दियौ जामतो की जाओ औरु बारी-बारी सूं पैर छुओ। बदमासी मत करियो।
बच्चा एक-एक करकें सकुचामत भये आइकें दामाद जी के पाम’न कूं छूते और बिनमें सूं एक परिचय देमतो जे तीनों गुड्डू के हतै। जे चारों झप्पू के हतै, जे बुआ कौ एॅ, जे कानपुर बारी मौसी के हतै, जे परौस के सरमा जी कौ हतै, जे तीन चंपू, पुल्लू, बिल्लू अपुने बडके भईया के हतै। चून के हलुआ औरु पकौरिन की म्हैक दूर-दूर तलक जामती पर बा में ऊ तसल्ली नाँय मिलती तौ पीछे के दरवज्जे सूं बच्च’न कूं भेजौ जामतो की फलाने हलवाई के यां सूं गरम जिलेबी, दस त्रिकोन, पांच कचौरी लै लीजो औरु पीछे के दरवज्जे सूं ई अइयो। छोरी सूं बिनकी पसंद-नापसंद पूंछकें पकवान बनते। आस परौस के घर’न मै जरूर एक बखत कौ भोजन या फिर चाय कूं बुलाबौ होमतो की फलाने के जमाई आये। बाथरूम के बाहिर गमछा, मंजन औरु बुरुश लैकें इंतजार करते भये सारे औरु बिनके हाथ कूं मोती चंदन के साबुन सूं धुबाते, भलैई बे खुद लाइफबॉय साबुन सौं नहामते हते। जिनके घर मै कुआं या हैंडपम्प होमतो सारे (आस परौस के बच्चा हू सामिल रहमते) पानी भर-भरकें नभाते, नाऊ काका या फिराक मै रहते की जमाई जी जरा बैठें तौ बिनके हाथ पैर’न कूं दबाइकें थकान उतार दें। गाम भर की हमउमर की सरमाती, सकुचाती, झिझकती एक साथ नमस्ते बोलकें एक दूसरे’न के पीछे छिपबे कौ प्रयास करती भयी सारियाँ। एक तौहार कौ सौ माहौल रहमतो गाम मै। संजा कूं बैठकी लगती जामें गाम के बड़े बूढे सामिल होमते जो जमाई कौ हालचाल खबर लेमते औरु खेत-खलिहान की चरचा जोर-शोर सौं होमती। अब कहाँ ऐसौ सासरौ औरु कहाँ ऐसी आवभगत।