मुख्यपृष्ठस्तंभब्रजभाषा व्यंग्य : चर्बी वारौ घी

ब्रजभाषा व्यंग्य : चर्बी वारौ घी

नवीन सी. चतुर्वेदी

जब सों सुनी है कि तिरुपति बालाजी के मंदिर के लडुअ’न में जो घी इस्तेमाल कियौ जाय रयौ है वा में चर्बी है हम भौत परेसान हैं। हमेसा तौ हम घुटरूमल जी कों ज्ञान देमें परंतु या बार हमारी हालत पै तरस खाय कें घुटरूमल जी नें हम पै कृपा करी।
वे बोले भैया चाय के कप में परी भई मक्खी कों देख कें हु आप वा चाय कों पी रहे हुते तब तक सब ठीक-ठाक हुतो परंतु जैसें ही काहु देखवे वारे नें यै देख कें टिप्पणी कर दीनी मतलब न्यूज चलाय दीनी तौ आप कों पवित्रता याद आय गयी। वे आगें बोले गैया के दूध सों एक किलो घी बनानों होय तौ २० लीटर दूध लगै और अगर भैंस के दूध सों बनानों होय तौ कम सों कम १० लीटर दूध की जरूरत परै ही परै। भैंस कौ दूध अगर ७० रुपैया किलो हु समझ लेउ तौ ७०० रुपैया कौ तो केवल दूध ही है गयौ। अब या में प्रॉसेसिंग कॉस्ट एड करौ। वा के बाद पैकिंग कॉस्ट, प्रिजर्वेटिव कॉस्ट, स्टोरेज कॉस्ट, प्रâेट-फॉरवार्डिंग कॉस्ट, कंपनी प्रॉफिट, डिस्ट्रीब्यूटर प्रॉफिट, रिटेलर यानि दुकानदार कौ प्रॉफिट और सब के ऊपर राजा कौ लगान यानि जीएसटी; नाँय नाँय करते भये हु हमें लगै यै लागत १,५०० रुपैया तक तौ पहोंच ही जाती होयगी। अब आप स्वयं सोचौ जो मटेरियल डेढ़ हजार रुपैया में परतौ दीख रयौ है वाय आप औसत ५००-७०० रुपैया किलो में खरीद रहे हौ और पवित्रता की आसा हु रख रहे हौ। कमाल है पीतर के भाव में सोंनों खरीदनों चाहत हौ? हमें नाँय पतौ कि बजार में मिलवे वारे घी वैâसें बन रहे हैं? न हमें यै पतौ कि अच्छी क्वालिटी वारे घी की सही लागत और कीमत का होनी चैंयें? हमनें तौ ४०० सब्द’न में जो समझाय सकते वौ समझायवे की कोसिस करी है बस। शेष समझदार तौ आप हौ ही। बस यै ही कहंगे कि जब चाय के कप में परी भई मक्खी स्पष्ट दिख रही है तौ या तौ वा चाय कों पियौ ही मत और जो पी रहे हौ तौ फिर उस्ताजी मत पेलौ। हमें क्लीन बोल्ड करिवे के बाद घुटरूमल जी पंडित प्रदीप जी कौ गीत गामन लगे मुखड़ा देख ले प्राणी जरा दरपन में। सच्चऊँ आज तौ हमें दरपन दिखाय दियौ घुटरूमल जी नें और यै दरपन बताय रयौ है कि जनसंख्या ऐसें ही बढ़ती रही तौ घी का पानी उ नाँय मिलैगौ। जय राम जी की।

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