मुख्यपृष्ठस्तंभब्रजभाषा व्यंग्य : नेता सों जादा चमचा मजा में रहें

ब्रजभाषा व्यंग्य : नेता सों जादा चमचा मजा में रहें

नवीन सी. चतुर्वेदी

हालाँकि हम नें पहिलें कह दई हुती कि खैर अपुन कों का? परंतु का करें साब कछू भी कह लेउ, सोच विचार तौ करनों ही परै। अब देखौ आप ही बताऔ यै कोउ बात है? लड़ाई होय इजराइल और ईरान की और शेर बजार हमारौ भरभराय कें गिर परै! लड़ाई होय रूस और युक्रेन की और शेर बजार हमारौ धडाम है जावै! ब्याज के रेट बढ़ें जपान में और शेर बजार हमारौ धराशाई है जावै! जपान कौ ब्याज न भयौ प्याज कौ छिलका है गयौ भैया। मत पूछौ लोग’न के का हाल भये हैं? कैसे घडा भर-भर कें अँसुआ बहाये हैं लोग’न नें – वौ हु चुप-चुप। कोऊ देख न लेय। कहें तौ कौन सों कहें? जा सों कहंगे वौ ही मजा लेयगौ। मतबल यै कोउ बात भई? और या सों हु बढ़ कें मजा की बात यै कि हमारे जखम पै नोंन बुरकवे वारे हु बिना माँगी सला’ दैवे चले आमें हैं। अवधी व्यंग्य वारे राजीव मिश्र जी नें हु या दर्द कों झेल्यौ लगै तभी तौ विन नें अपने लेख में लिखी ‘दुसरे के घर मा काहे गोपाल चउथ करत हौ?’ मगर लोग समझें तब नें।
हमारे दूर के फूफा के जीजा के जीजा के मामा के नाती के दोस्त नें हु शेर बजार में कछु पैसा लगाय रखे हुते। यै बात हमें हमारी फूफी की ननद की ननद की ममिया सास के न्यूज चैनल सों मलूम परी। अब साब जब वा छोरा नें पैसा लगाये हुते तौ वा के बाद तौ बजार २०१४ और २०१९ की मोदी सरकार की तरियाँ उड़ें चलें जाय रह्यौ हुतो मगर जैसें ही २०२४ के लोकसभा के परिणाम घोषित भये बजार की हु हवा निकर गयी। जैसें तैसें समर पायौ कि या जापान और इजरायल की खबर’न नें वा कौ भट्टा बिठाय डार्यौ। अब करै तौ का करै? आम आदमी की शेर बजार में दशा वैसी ही है जावै जैसी कि स्यांप और छछूंदर की। न निगलें गती न उगलें गती। एक तौ वैसें ही वा की तनखा में पूर परै नाँय नें। कछू बच नाँय पावै। कछू बच हूँ जावै तौ कहाँ इन्वेस्ट करै? बैंक में आठ आना कौ ही ब्याज है। म्युच्युअल फंड हु तौ शेर बजार के घर कुनबा ही के हैं नें भैया, बजार के संग ये हु कथक्कली करत रहें। सोने-चाँदी में लगावै तौ भैया गूगल बाबा कछू भी कहते रहें सोने-चाँदी के असली रेट तौ वे ही हैं जो सुनार कहै। ता ऊपर जैसें फ्लैट प्रोपर्टी के बजार में खरीदवे और बेचवे के रेट अलग-अलग होमें वैसें ही सुनार’न की दूकान’न पै हु देखवे कों मिलै। मतबल आदमी करै तौ का करै?
हमें हु लगन लग्यौ है कि भोजपुरी व्यंग्यकार भदोही के प्रभुनाथ शुक्ल जी नें अभी दो दिन पहलें जो कही हुई हुती कि ‘छोड़ी कविताई करीं राजनीति के पंडिताई’, सो या विषय पै गंभीरता सों चिंतन मनन करिवे की जरूरत लग तौ रही है। सफल भए तौ नेता कहलामंगे नर्इं तौ चमचा तौ बन ही जामंगे। और यों सुनी है कि नेता सों जादा तौ चमचा मजा में रहें हैं। आप कों का लगै?

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