मुख्यपृष्ठस्तंभब्रेकिंग ब्लंडर : करोड़ों हिंदुस्थानियों से धोखा!

ब्रेकिंग ब्लंडर : करोड़ों हिंदुस्थानियों से धोखा!

राजेश विक्रांत

जब अनावश्यक बोलबचन और जुमलेबाजी से फुर्सत मिले तो ही मोदी सरकार जनहित के काम करेगी। उसे तो चुनावी राजनीति ही सबसे बड़ा काम लगता है। लिहाजा, वह जनगणना जैसे महत्वपूर्ण काम पर गंभीर नहीं है। देश में धड़ाधड़ चुनाव हो रहे हैं। उसके लिए मोदी सरकार के पास आवश्यक संसाधन हैं लेकिन जनगणना करवाने के नहीं हैं। यह तो करोड़ों हिंदुस्थानियों के साथ सरासर धोखा है। सभी विपक्षी पार्टियां मांग कर रही हैं कि अविलंब जनगणना का प्रोसीजर शुरू किया जाए पर सरकार लगता है इसमें देरी करने के पक्ष में है, इसका कारण पता नहीं है। जनगणना एक महत्वपूर्ण अभियान है।
हिंदुस्थान में जनगणना पहली बार १८७२ में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड मेयो के शासनकाल में हुई थी। किसी देश या क्षेत्र में लोगों के बारे में विधिवत जानकारी इकट्ठा करना और उसे रिकॉर्ड करना ही जनगणना है। इसके माध्यम से किसी देश या उसके किसी भाग के लोगों की जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक जानकारी इकट्ठा की जाती है। इसे जनगणना अधिनियम-१९४८ के प्रावधानों के तहत कराया जाता है। इसके प्रावधानों में जनगणना कराने और उसे जारी करने को लेकर समयावधि के मुद्दे पर कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है, लेकिन हरेक १० साल पर इसे कराया जाता है।
१० सालों पर यानी दशकीय जनगणना २०२१ में होनी थी इसके लिए सन् २०२० में जनगणना के पहले चरण (जिसमें आवास संबंधी आंकड़े एकत्र किए जाते हैं) की तैयारी की जा रही थी कि तभी कोरोना महामारी आ गई और जनगणना को स्थगित कर दिया गया, क्योंकि देश में लॉकडाउन लग गया था और प्रशासन को दूसरी चुनौतियों का भी सामना करना था।
तब से लगभग तीन साल बीत चुके हैं। अब जनजीवन सामान्य हो चुका है, लेकिन मोदी सरकार जनगणना को टालने की भूमिका में दिखी है। चूंकि कोरोना विश्वव्यापी महामारी थी इसलिए कई देशों ने कोरोना की वजह से जनगणना को टाल दिया था, लेकिन हालात सामान्य होने के बाद उन्होंने जनगणना की प्रक्रिया शुरू कर दी। परंतु दिसंबर में मोदी सरकार ने संसद को बताया कि ‘कोविड-१९ महामारी के प्रकोप के कारण जनगणना २०२१ और संबंधित क्षेत्र की गतिविधियों को अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।’
जनगणना न होने के काफी नुकसान भी हैं, पर वो नुकसान आम जनता के हैं, गरीबों के हैं इसलिए मोदी सरकार पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ता। हर १० साल में जनगणना होती है। यह सिर्फ देश के लोगों की गिनती करना ही नहीं है बल्कि यह लोगों की आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक स्थिति भी पता करती है, जिससे सरकार को जनकल्याण व विकास की योजनाएं तैयार करने में मदद मिलती है इसलिए जनगणना की प्रक्रिया काफी लंबी व दुष्कर भी होती है।
ध्यान रहे कि हिंदुस्थान की जनगणना दुनिया के सबसे बड़े प्रशासनिक अभियानों में से एक है। भारत सरकार ने जब सितंबर २०२४ में जनगणना शुरू करने की घोषणा की थी, तब यदि समय पर कार्य प्रारंभ हो जाता तो भी जनगणना के नतीजे मार्च २०२६ तक आने की उम्मीद थी। इसका मतलब यह है कि इसमें जितनी देरी होगी, आंकड़े उतनी ही देरी से आएंगे।
जनगणना के लिए भारी-भरकम बजट भी होता है। मोदी सरकार ने २०२१ की जनगणना के लिए २०१९ में बजट जारी कर दिया था। साथ ही सवा ३ मिलियन लोगों की इसके लिए नियुक्ति भी कर दी गई थी। तब सोचा गया था कि २०२१ में जनगणना होकर आंकड़े भी आ जाएंगे, लेकिन इसी बीच कोरोना महामारी पैâल गई और सारा गुड़गोबर हो गया। जनगणना का काम टाल दिया गया।
दरअसल, जनगणना की प्रक्रिया में लाखों लोग पर्यवेक्षक के तौर पर जनगणना के दूसरे मानकों के अलावा लोगों की नौकरी-रोजी रोजगार, उनकी आर्थिक स्थिति, उनके पलायन और सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी पहचान को चिह्नित करने देशभर में घर-घर जाते हैं। यह एक महत्वाकांक्षी अभियान है, जिसके माध्यम से प्रशासकों, नीति निर्माताओं, अर्थशास्त्रियों और जनसंख्याविदों को ढेर सारे आंकड़े मिलते हैं। सरकार, विविध शोध एजेंसियां व व्यापारिक प्रतिष्ठान उन आंकड़ों का उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए करते हैं।
इसमें सबसे अहम चीज होती है- बजट का आवंटन। कोई भी सरकारी पहल या योजना इसी के अनुसार काम करती है। अगर अद्यतन आंकड़ा नहीं होगा तो बहुत से ऐसे परिवार होंगे, जिन्हें सरकारी सुविधाओं का फायदा नहीं मिल सकेगा।
सरकार अब भी २०११ की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक ही रिसोर्स दे रही है, इससे करोड़ों लोग कई जरूरी स्कीम्स से बाहर छूट रहे होंगे, यह तय है, इसलिए कहा जा रहा है कि जनगणना में देरी देशवासियों के साथ एक बड़ा धोखा है। २०११ से आज २०२४ के बीच देशवासियों की आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक स्थिति में काफी बदलाव हुआ है। इस दौरान सरकारी योजनाओं की पात्रता भी बदली है तो आज की तारीख में ऐसे लोग करोड़ों की संख्या में होंगे जो सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। वजह सरकारी लापरवाही।
क्योंकि सरकार अभी भी २०११ की जनगणना से प्राप्त आंकड़ों का इस्तेमाल कर रही है। इस वजह से १० करोड़ से अधिक हिंदुस्थानियों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, २०१३/प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मिलने वाले लाभ से वंचित किया जा रहा है।
जनगणना के ताजा आंकड़े न होने की वजह से प्रस्तावित महिला आरक्षण पर भी असर होने की संभावना है, लेकिन मोदी सरकार कब जागेगी अभी भी इसके कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं।
जनगणना में देरी से चूंकि आम आदमी प्रभावित हो रहा है इसलिए मोदी सरकार को कोई गम नहीं है। अगर इससे मोदी सरकार के मंत्री प्रभावित होते तो जनगणना अब तक कभी हो गई होती इसलिए जनगणना में देरी करोड़ों हिंदुस्थानियों के साथ धोखेबाजी है। मोदी सरकार को जनता से धोखेबाजी करना बंद करके जनहित व जनकल्याण के काम करना चाहिए।
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)

अन्य समाचार