राजेश विक्रांत
धन्यवाद प्रधानमंत्री जी, आपने हमको जो एक अच्छी तरकीब बताई थी, हम हिंदुस्थानी उसका अक्षरश: पालन कर रहे हैं। आपने हमें आपदा में अवसर खोजना सिखाया, हम उसका न केवल लाभ उठा रहे हैं बल्कि उसे निचोड़ भी रहे हैं। ओडिशा के भयानक ट्रेन हादसे ने सबका दिल दहला दिया है। लेकिन आपदा के अवसरबाजों की बांछें खिल गई हैं।
ओडिशा के बालासोर में हुए इस दुखद ट्रेन हादसे में अब तक २७५ से ज्यादा लोगों की मौत हुई है, जबकि घायलों की संख्या १,१०० से ज्यादा है। अस्पतालों में लावारिस शवों के ढेर लगे हुए हैं। अस्पतालों के मुर्दाघरों में जगह नहीं बची है। शवों की संख्या को देखते हुए स्कूल और कोल्ड स्टोरेज को मुर्दाघर में तब्दील कर दिया गया है।
प्रधानमंत्री जी, आपके आपदा में अवसर से प्रेरित होकर ‘चमड़ी चली जाए लेकिन दमड़ी न जाए’, मूलमंत्र को एयरलाइंस कंपनियों ने अपना लिया है। दिल्ली से भुवनेश्वर जाने वाली फ्लाइट का किराया अचानक से बढ़ चुका है। इस रूट पर फ्लाइट्स का किराया अब तक एक ओर का ५ हजार से लेकर ८ हजार रुपए के बीच था लेकिन अब इस रूट पर फ्लाइट्स का किराया ५० हजार पार कर चुका है। यानी जितने रुपए में हम दिल्ली से लंदन या पेरिस पहुंच सकते हैं, उतने रुपए हमें दिल्ली से भुवनेश्वर पहुंचने के लिए ढीले करने पड़ रहे हैं।
प्रधानमंत्री जी, आभार। हम हिंदुस्थानियों की परचेजिंग पावर बढाने के लिए शुक्रिया। आपकी मेहरबानी से हमारी परचेजिंग पॉवर रातों रात बढ़ चुकी है। ५ से ८ हजार का टिकट हम खुशी-खुशी ५० हजार में भी खरीद रहे हैं। आपकी सरकार का उड्डयन मंत्रालय चाहे जो कहे, एयरलाइंस कंपनियों को उसे मानना नहीं है। उन्हें किसी कार्रवाई का डर नहीं है। एयरलाइंस कंपनियां अपनी मनमानी कर रही हैं। उन्होंने किराए को ‘फर्श से अर्श तक’ पहुंचा दिया है।
प्रधानमंत्री महोदय, अब तक हम अज्ञानी थे जो कि यह समझते थे कि ‘आपदा में अवसर’ यानी किसी भी चुनौती को मौलिक रूप से समझना और तात्कालिक रूप से उस चुनौती से संघर्ष करने के साथ उन गलतियों को दूर करना और भविष्य में उनका निषेध करने के लिए कार्यक्रम बनाना, जिनकी वजह से आपदाएं आती हैं। लेकिन आपने तो ‘आपदा में अवसर’ का एक नया अर्थ बताया है। आपदा में कुछ लोग अपनी जेब भर रहे हैं। हर तरफ लूट मची है, एक महा घिनौना खेल खेला जा रहा है, जिसमें मानव मूल्यों का कोई, किसी भी प्रकार का मोल नहीं है। दिल्ली से भुवनेश्वर तक आपदा को अवसर बनाने वाले लोग दुर्घटनाओं से आपदाओं से, त्रासदियों से, लाशों से पैसा कमा रहे हैं।
प्रधानमंत्री जी, एक बात का ध्यान रखना होगा आपको, आपदाएं बहुत साफ शब्दों में संदेश देती हैं कि इंसान अपने व्यवहार को बदल ले। अपनी राजनीति और संस्कृति में त्वरित बदलाव कर ले और निरंतर लड़ने झगड़ने की बजाय सेवा, परोपकार तथा सहयोग के रास्ते पर चले। यदि इंसान उसे समझ जाता है तो वह न सिर्फ तात्कालिक आपदा से बाहर निकल जाता है बल्कि भावी आपदा से बच भी सकता है। लेकिन प्रधानमंत्री जी, आपको इससे क्या फर्क पड़ता है। आप तो आपदा में भी कपड़े बदलने का अवसर नहीं गंवाते!!!