राजेश विक्रांत
चाहे जो हो जाए, हम तो झोल करके ही रहेंगे क्योंकि हर जगह मेरी सेटिंग है। जब आखिरी दौर का चुनाव प्रचार थमा तो मैं इसीलिए ध्यान की मुद्रा में चला गया। सच तो ये है कि ध्यान-व्यान कोई नहीं, यह तो मेरी एक चुनावी मुद्रा थी। कहते हैं कि एक चुप हजार शब्दों के बराबर होता है और चुप रहकर ही मैंने अपना चुनाव प्रचार कर लिया।
मतदाताओं को जो संदेश देना था, दे दिया। विपक्ष चाहे जितना चिल्लाए, कोई फर्वâ नहीं पड़ेगा। पोल के झोल को मैंने आखिरकार अपने ध्यान के झोले से भर ही दिया। लोकतंत्र, गरिमा, नैतिकता आदि फालतू के शब्द हैं। पता नहीं किसने इन शब्दों का आविष्कार किया था, वो अगर मुझे मिल जाए तो चार जूते खुद लगाऊं। ये किसी कारण से न कर पाया तो जेल में भिजवा ही सकता हूं। ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स आखिर किस दिन काम आएंगे?
मेरी सरकार झोल की सरकार है, झोले की सरकार है। एग्जिट पोल में झोल, ईवीएम में झोल, नीयत में झोल, अर्थव्यवस्था में झोल, जीडीपी में झोल, कानून व्यवस्था में झोल, विकास में झोल सब मेरे ही बाई प्रोडक्ट हैं। यहां तक कि राहत की पुâहार में भी झोल है और रहेगा। जो शब्द मुझे प्रिय हैं वे हैं- धांधली, करप्शन, अनैतिकता, हैकिंग, बोलबचन, तानाशाही, हेरापेâरी, धोखाधड़ी, फर्जीकल स्ट्राइक। जब मैं अपने परिवार को, प्रियजनों को,
साथियों को धोखा दे सकता हूं तो आम आदमी की क्या बिसात है?
मेरा विकसित हिंदुस्थान गौतम भाई से जुड़ा है। गौतम भाई खूब प्रगति कर रहे हैं। इस साल उनका धन २६.८ अरब डॉलर बढ़ गया। वे एशिया में नंबर एक हो गए। उनके पास १११ अरब डॉलर की संपत्ति हो गई। इसका मतलब यह है कि हिंदुस्थान धनवान हो रहा है।
जब चुनाव प्रचार का गहन दौर मतदान से ४८ घंटे पहले बंद कर दिया गया तो मैं बहुत चिंतित हो गया कि मतदाताओं को क्या गोली दूं, फिर मुझे ख्याल आया ध्यान साधना का। मैं समझ गया कि मतदाताओं को यदि ध्यान साधना का डोज दे दिया जाए तो सभी पक्षों पर ठंडे दिमाग से विचार-विमर्श करने की बजाय सिर्पâ मेरे बारे में सोचेगा। देखिए, मेरा विचार कामयाब भी हो गया। मतदाता को सिर्पâ मेरी ध्यान साधना याद रही, वो भीषण गर्मी लू और चक्रवात रेमल भी भूल गया। उसे सिर्पâ मेरे पक्ष में वोटिंग याद रही।
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और १६ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)