राजेश विक्रांत मुंबई
उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले की महसी तहसील में सिर्फ ४ से ६ भेड़ियों (अगर वन विभाग की मानें तो!) ने पूरे सिस्टम को पंगु कर दिया था, जिनमें से ५ पकड़े जा चुके हैं। अब एक ही भेड़िए को पकड़ना बाकी है। तब संभव है कि भेड़ियों का आतंक खत्म हो जाए, लेकिन भेड़िया रूपी इंसानों से जनता को वैâसे बचाएंगे?
मार्च महीने से हरदी थाना के मक्कापुरवा, औराही जगीर, कोलैला, नथुवापुर, बड़रिया, नकवा, नयापुरवा समेत आस-पास के गांवों में भेड़िए ने कई हमले किए। आठ मासूमों समेत १० लोगों को अपना शिकार बनाया। ३७ से अधिक लोग घायल हुए। चार पिंजरे, आठ थर्मोसेंसर वैâमरे लगाए गए। थर्मल ड्रोन से निगरानी शुरू की गई और ५ आदमखोर भेड़ियों को पकड़ लिया गया। इसमें तीन मादा और दो नर भेड़िए थे। लेकिन अभी भी कई गांवों में भेड़िए के हमले जारी हैं, लोग दहशत में हैं। अब सवाल उठ रहे हैं कि कितने भेड़िए हैं? अगर ६ ही थे, तो उसमें से ५ पकड़े जाने पर आतंक कम हो जाना चाहिए, लेकिन आतंक तो कम हुआ नहीं।
वैसे, वन विभाग का दावा है कि झुंड में ६ भेड़िए हैं, जिनमें से ५ को पकड़ा जा चुका है। बाकी बचे छठे भेड़िए को पकड़ने के लिए वन विभाग की टीम लगी हुई है। ग्रामीणों का कहना है कि आदमखोर भेड़ियों की संख्या दस से ज्यादा है।
सवाल यह उठता है कि भेड़ियों के स्वभाव में अब क्या बदलाव हो गया जो वे इंसानों पर हमला कर रहे हैं। दरअसल, यह संघर्ष भेड़िए और इंसान का है। इंसान की हरकतों से पर्यावरण का मिजाज बिगड़ा, नदी में बाढ़ आ गई तो भेड़ियों के सामने भोजन का संकट खड़ा हो गया। वे भोजन के नए विकल्प खोजने लगे। गांवों में आने पर उन्हें आसानी से भोजन मिलने लगा।
भेड़ियों का सुनसान रात में दबे पांव बच्चों का शिकार करने का इतिहास रहा है, जिसे ‘बच्चा-चोरी’ कहा जाता है। दुष्परिणाम, गिनती में चंद ही भेड़िए आतंक बन गए। इनका आतंक इतना बढ़ा कि जिला प्रशासन, पुलिस और वन विभाग को उन्होंने नाकों चने चबवा दिए। दो दर्जन से अधिक टीमें गांवों में दिन रात कैंप किए हुए हैं।
भेड़िया बेहद चालाक जानवर है। ये झुंड में रहते हैं और खरगोशों, हिरण, बंदरों जैसे छोटे जानवरों का शिकार करते हैं। वे नदी के कछार में मांद बनाकर स्थानीय जंतुओं को अपना भोजन बनाते हैं। वे इंसानों पर बहुत कम हमले करते हैं लेकिन उन्हें पता होता है कि बच्चों का शिकार आसानी से किया जा सकता है। भेड़िए के पास बेहद तीव्र गति और सहनशीलता होती है। झुंड में एकता, अनुशासन, मुखिया के संरक्षण और रेकी करने की क्षमता इन्हें खूंखार शिकारी बना देती है और महसी के भेड़िए खूंखार शिकारी बन गए हैं।
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)