अनिल मिश्रा / उल्हासनगर
उल्हासनगर में जल प्रवाह के लिए बने नालों की चौड़ाई को कम करते हुए निजी स्वार्थ के चलते शहर के भूमाफिया-भवन निर्माताओं ने नाला निगलने का अभियान चलाया है। भवन निर्माताओं के ऐसे स्वार्थपूर्ण कार्यों के चलते निकट भविष्य में पानी के भरने से घरेलू संपत्ति और जनहानि को टाला नहीं जा सकता। हद तो तब हो गई, जब कमला नेहरू नगर के समीप पानी की टंकी की सफाई के दौरान निकलने वाले पानी के नाले तक को बंद कर दिया गया। टंकी की सफाई के दौरान कई बार पानी नाले से न निकल पाने की वजह से आस-पास के घरों में घुस जाता है। आज स्थिति यह है कि शहाड एमआईडीसी ने टंकी की सफाई ही बंद कर दी है।
बता दें कि उल्हासनगर में तकरीबन २५ बड़े नाले हैं, जिनकी चौड़ाई मनपा प्रशासन की अनदेखी के कारण अवरुद्ध सी हो गई है। प्रतिवर्ष मनपा प्रशासन मशीनों के माध्यम से नालों की सफाई का ठेका तो देता है, परंतु वालधुनी को छोड़ दें तो खेमानी, कमला नेहरू नगर, वुडलैंड कॉम्प्लेक्स, टेलीफोन एक्सचेंज, गुलशन नगर (शहाड स्टेशन), साधुबेला स्कूल के समीप से गुजरनेवाले अधिकतर नालों के ऊपर मकान और इमारतें बना दी गई हैं। नालों में कचरा फंसने पर नाले के ऊपर बनाए गए चेंबर से किसी तरह से नाले की सफाई होती है। कभी-कभी उल्हासनगर-३ फर्नीचर मार्वेâट के नाले की सफाई न होने की स्थिति में पानी दुकानों में भरने की शिकायत सफाई विभाग के पास आती रहती है। सफाई विभाग सफाई न होने के लिए जिम्मेदार उल्हासनगर के लोगों को ही मानता है।
उल्हासनगर मनपा के सफाई निरीक्षक प्रदीप राजगुरु का कहना है कि उल्हासनगर को नरक बनाने में शहर के ही लोगों का हाथ है। जब नाले को ही हड़प लिया जाएगा तो सफाई वैâसे की जा सकती है। नालियों में कचरा फेंका जा रहा है। आज के मशीनी युग में जमीन के नीचे से नाला बहता है। नाले के ऊपर मकान और इमारतें बन गई हैं, ऐसी स्थिति से घिरे नालों की सफाई वैâसे संभव है?