प्रशासन की जमकर की खिंचाई
कहा एमएमआर शहरों में गरीबी बढ़ती जा रही है
सामना संवाददाता / मुंबई
महानगर मुंबई और ठाणे में हो रहे विकास और अतिक्रमण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओक ने एक कार्यक्र के दौरान प्रशासन की विकास नीतियों के लिए जोरदार फटकार लगाई है। उन्होंने कहा कि मुंबई, ठाणे, कल्याण, पनवेल जैसे शहरों की गरीबी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। शासकों और प्रशासन के कान मरोड़ते हुए कहा कि ढाबे पर विकास नियमावली के सभी नियम लागू हो रहे हैं। लेकिन शहर के विकास के लिए कोई नियम बराबर लागू नहीं होता। उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि वैâसे इन शहरों में झुग्गी-बस्तियों की संख्या बढ़ रही है। शहर में विकास नियमावली की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। ठाणे में आयोजित कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जज ओक बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि किन क्षेत्रों में कितना एफएसआई देना है? इसे लेकर मुंबई, ठाणे में किसी नियम का पालन नहीं किया जाता है। एक उदाहरण देते हुए कहा कि सातरास्ता मुंबई में महालक्ष्मी स्टेशन के पास का इलाका है। यहां सड़कें बहुत संकरी हैं। इसके बावजूद, उस जगह पर अब ५० से ६० मंजिला दर्जनों इमारतें खड़ी हैं। इन सभी भवनों में जब लोग रहने के लिए आएंगे तो पैदल चलना भी मुश्किल हो जाएगा, जबकि सातरास्ता क्षेत्र में भूमि धंसाव के कई उदाहरण हैं। यह जमीन समंदर पाटकर बनाई गई थी। इसका कोई पैमाना है कि यह जमीन कितना भार सह सकती है। लेकिन बिना किसी विचार के गगनचुंबी इमारतें, उसके लिए पार्विंâग, पैदल सड़कें, फुटपाथ बनाना यह सब देखकर ऐसे लगता है, जैसे यही एमआरटीपी एक्ट का सार है।
… गृह विभाग की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
एक पुराने किस्से का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि पूर्व गृहमंत्री आर.आर. पाटील ने पुलिस सिपाहियों के लिए घर की मांग पर एक रिपोर्ट पेश की थी। उस समय गृह विभाग के प्रधान सचिव ने रिपोर्ट में बताया था कि मुंबई में पुलिसकर्मी झुग्गियों में रहते हैं। वैâबिनेट नोट में उल्लेख किया गया था कि उन्हें झुग्गी-झोपड़ियों के दादाओं की दया पर वहां रहना पड़ता है। अगर गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव को लगता है कि उनकी ही पुलिस झुग्गी-बस्तियों को चलाने वाले बदमाशों के रहमोकरम पर है तो लोग किससे उम्मीद करें?
महारेरा के पास तंत्र नहीं
उन्होंने कहा कि सरकार ने महारेरा एक्ट पास किया है लेकिन महारेरा द्वारा लगातार बिल्डरों को नोटिस भेजे जा रहे हैं। लेकिन क्या बिल्डर द्वारा प्रस्तुत योजना में उस क्षेत्र में खुले स्थान, पार्विंâग, फुटपाथ के नियमों का पालन किया गया है? महारेरा के पास इसे जांचने का कोई तंत्र नहीं है। दूसरी ओर बिल्डरों और राजनेताओं ने हाथ मिला लिया और एमआरटीपी जैसे कानूनों को तोड़ना शुरू कर दिया है। पहले तो कई लोगों को अच्छा लगा। लेकिन अब समस्या को लेकर शिकायतें आनी शुरू हो गई हैं। नेताओं के लोग ही मनमाने दाम पर गिट्टी और रेत बेच रहे हैं। साथ ही वहीं से खरीदने का दबाव भी दे रहे हैं। ऐसे में निर्माण की लागत में वृद्धि होगी ही।
बिल्डर अपनी मर्जी से बनाते हैं इमारतें!
मुंबई में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां इमारतों के निर्माण के लिए छह से सात एफएसआई प्रदान की गई हैं। लेकिन यहां एफएसआई देते समय मौजूदा सड़कों, जल निकासी व्यवस्था, पेयजल पाइप लाइनों पर विचार नहीं किया गया। ऐसा लगता है बिल्डर मुंबई और ठाणे में अपनी मर्जी से इमारतें बना लेते थे। उनके आस-पास कोई सुविधा उन्हें नहीं देनी पड़ती। यही वजह है कि ये शहर दिन-ब-दिन वीरान होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यहां वकीलों को एमआरटीपी कानून समझने की ही नहीं, बल्कि उस पर सख्त होने की आवश्यकता भी है। आज जो स्थिति यहां है, वह देखकर प्रशासन और न्याय व्यवस्था से लोगों का भरोसा उठता जा रहा है।