मुख्यपृष्ठअपराधगड़े मुर्दे : ऐसे खत्म हुआ अंडरवर्ल्ड के ‘कल्लू मामा' का ड्रामा!

गड़े मुर्दे : ऐसे खत्म हुआ अंडरवर्ल्ड के ‘कल्लू मामा’ का ड्रामा!

 

जीतेंद्र दीक्षित 

हाल ही में मुंबई पुलिस की जांच के दौरान यह खबर सामने आई कि फिल्म स्टार सलमान खान के घर पर फायरिंग करने वाले शूटरों के हैंडलर को ‘मामा’ नाम से जाना जाता था। इससे याद आया कि मुंबई अंडरवर्ल्ड में भी कभी एक ‘मामा’ हुआ करता था, जिसकी अच्छी-खासी दहशत थी और जिसने कई लोगों की हत्या करवाई थी। रामगोपाल वर्मा की ऐतिहासिक फिल्म ‘सत्या’ में जो ‘कल्लू मामा’ का किरदार है वो इसी मुंबई अंडरवर्ल्ड के ‘मामा’ से प्रेरित बताया जाता है। इस शख्स का नाम था सदा पावले।
सदा अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली का दाहिना हाथ माना जाता था और गिरोह के लोग उसे सदामामा कहते थे। अरुण गवली की तरह सदा भायखला की दगड़ी चाल में नहीं रहता था, बल्कि पास के चिंचपोकली स्टेशन के बगल की बिल्डिंग में उसका घर था। एक वक्त में उसका नाम अरुण गवली से भी ज्यादा खौफनाक हो गया था। गवली अलग-अलग मामलों में जेल से अंदर-बाहर आता-जाता रहता, लेकिन जेल के बाहर सदा मामा ही गिरोह की गतिविधियां संचालित करता था। गिरोह की ओर से वह बिल्डरों, कारोबारियों, मिल मालिकों और बार मालिकों को ‘हफ्ता’ के लिए फोन करता। अगर कोई ‘हफ्ता’ देने से इनकार करता तो मामा अपने भांजों को यानी कि शूटरों को भेज कर उसका काम तमाम करवा देता।
मामा की जिम्मेदारी न केवल जबरन वसूली के लिए फोन कॉल करने की थी, बल्कि वो नए लड़कों की बतौर शूटर भर्ती भी करता था। हथियारों का इंतजाम करता था और गिरोह की आमदनी का हिसाब-किताब भी रखता था। अगर दो लोगों के बीच पैसों को लेकर कोई विवाद हुआ है तो वो अदालत लगाता था और अपनी ‘फीस’ लेकर पैâसला सुनाता था। उसके नाम की इतनी दहशत थी कि कोई आदेश को न मानने की हिमाकत नहीं करता, क्योंकि ऐसा करना मौत को बुलावा देना होता।
धीरे-धीरे मुंबई पुलिस के पास सदा मामा के खिलाफ भी शिकायतें आने लगीं। उन दिनों मुंबई में अंडरवर्ल्ड के बढ़े हुए वर्चस्व के खिलाफ पुलिस ने एक मुहिम चला रखी थी, जिसके तहत गैंगस्टरों का एनकाउंटर किया जाता था। पुलिस ने सभी गिरोहों के टॉप-१० गैंगस्टरों की लिस्ट बनाई थी और एक-एक करके उस लिस्ट में शामिल गैंगस्टरों को खत्म किया जा रहा था। १९९७ में सदा पावले का नाम भी इस लिस्ट में शुमार हो गया, जब मुंबई के एक बड़े बिल्डर नट्टू भाई देसाई और रघुवंशी मिल के मालिक वल्लभ ठक्कर की हत्याओं में उसका नाम आया।
उन दिनों मुंबई पुलिस के अलग-अलग एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अधिकारी अलग-अलग गिरोहों के सूत्रों को मारते थे। इंस्पेक्टर प्रदीप शर्मा के निशाने पर दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन गिरोह के लोग होते तो वहीं इंस्पेक्टर विजय सालस्कर की गोलियों का निशाना अरुण गवली और अमर नाईक गिरोह के लोग बनते।
अपना नाम टॉप-१० वांटेड अपराधियों की लिस्ट में देखकर सदामामा छुप गया। विजय सालस्कर ने अपने खबरियों के जरिए उसको ढूंढना शुरू किया।
२६ सितंबर १९९७ को जब वो मुंबई से शिर्डी जा रहा था, तब दगड़ी चाल में मौजूद सालस्कर के एक खबरी ने उन्हें टिप दी। सालस्कर करीब १० पुलिस कर्मियों की अपनी टीम के साथ उसे घेरने के लिए निकले। घाटकोपर में उसकी फिएट कार को घेर लिया गया, जिसमें सवार होकर सदा पावले और गवली गिरोह का शूटर विजय तांडेल शिर्डी जा रहे थे। पुलिस के मुताबिक, तांडेल और पावले को सरेंडर करने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने पुलिस पर फायरिंग कर दी, जिसके बचाव में जब पुलिस ने भी गोली चलाई तो उनकी मौत हो गई।
दूसरी तरफ पुलिस पर टांडेल और पावले के फर्जी एनकाउंटर करने के आरोप लगे। सदा पावले की बहन गौरा बाई के मुताबिक, पावले ने अंडरवर्ल्ड छोड़ने का पैâसला किया था। वो शिर्डी जाकर गलत काम न करने का प्रण लेने वाला था और वापस मुंबई लौटकर अदालत के सामने सरेंडर करने की उसकी मंशा थी।
कार के ड्राइवर बलदेव पानेसर ने भी एनकाउंटर को फर्जी बताया। मामला कई दिनों तक अदालत में चला और विजय सालस्कर अपनी टीम सहित हत्या के मामले में फंसने से बाल-बाल बच गए।
जब सदा पावले का एनकाउंटर हुआ तब मैं ‘दोपहर का सामना’ में ही काम करता था। मुझे आज भी याद है कि एनकाउंटर के अगले दिन जो खबर छपी थी उसका शीर्षक था ‘मामा का खत्म हुआ ड्रामा।’

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