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गड़े मुर्दे : माटुंगा गणेशोत्सव में पर्दे के पीछे आज भी है वरदा की दहशत!

जय सिंह

तकरीबन १०० साल पहले लोकमान्य तिलक द्वारा लोगों को एक करने तथा आपस में भाईचारा बनाए रखने के लिए सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की गई थी। ७० और ८० के दशक में मुंबई के सार्वजनिक गणेश मंडलों को स्थानीय गुंडों ने अपने कब्जे में ले लिया और आम जनता से चंदा वसूल करने लगे। इन चंदों से पंडाल के बाहर पर्दे की फिल्म दिखाना, खेल प्रतियोगिता करना यानी क्षेत्र में अपनी धाक दिखाना शुरू हो गया था।
मुंबई ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी धारावी के दादा रहे अंडरवर्ल्ड डॉन वरदराजन मुदलियार से सार्वजनिक गणेश उत्सव पर अपराध की दुनिया की घुसपैठ का इतिहास शुरू होता है। वरदराजन वरदा भाई के नाम से मशहूर था। पहली बार वरदा भाई ने ही जीआईपी माटुंगा से गणेशोत्सव की शुरुआत करवाई थी। इस गणेशोत्सव की साज और सजावट पर करोड़ों रुपए खर्च होते थे। वरदा देश-विदेश में कहीं भी रहता था, लेकिन गणेश पूजा करने के लिए वह किसी भी कीमत पर मुंबई में रहता था। पुलिस को शक था कि वरदा गणेशोत्सव की आड़ में एक तो स्मगलिंग करता है, दूसरे वह पूंजीपतियों से हफ्ता उगाही करता है। इसी बात को लेकर कई बार वरदा और पुलिस के बीच झड़प भी हुई है। उस समय पुलिस विभाग में वरदा का कोई सबसे बड़ा दुश्मन था, तो वह वाय सी पवार। दो बार जब वाय सी पवार पर गुंडों ने हमला किया तो उसका ठीकरा भी वरदा पर ही फूटा। वाय सी पवार ने भी वरदा की धारावी की सल्तनत को जड़ से उखाड़ फेंकने की कसम खाई थी। कुछ हद तक पवार की कसम पूरी भी हुई, आज वरदा भले ही जीवित नहीं है, लेकिन उसका परिवार उसको जानने वाले गणपति के ही माध्यम से वरदा को जिंदा रखे हुए हैं। इस गणेश पंडाल में उस वक्त के छोटे-मोटे अपराधी ही नहीं बड़े-बड़े फिल्म स्टार भी वरदा के दरबारी थे। बताते तो यह भी हैं कि यही पैटर्न दाऊद इब्राहिम ने अपनाया और बाद में फिल्म स्टारों को अपनी उंगली पर नचाने लगा। वरदा की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए पुलिस विभाग ने वहां पर थाना बाजार पुलिस की चौकी बना दी। गणपति पंडाल से कई फिल्म स्टार निर्माताओं को फोन करवा के फिल्म पाते थे।
वरदा को परलोक सिधारे कई वर्ष बीत गए हैं। इसके बावजूद वरदा के लोग मात्र गणपति बैठाकर वरदा का नाम जिंदा रखा है। हर साल पंडाल में अलग-अलग झांकी दिखाई जाती है। पिछले साल महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को दर्शाया गया था, पंडाल के बाहर डॉन भाई ठाकुर के कंपनी का बोर्ड लगा रहता है, जो यह दर्शाता है कि वरदा भले ही न हो, लेकिन भाई ठाकुर ने अपना दोस्ताना बरकरार रखा है। वरदा का खास चेला आज भी भाई ठाकुर के साथ रहता है, गणेशोत्सव का पूरा काम वरदा का पुराना आदमी देखता है। पंडाल में वरदा की आज भी बड़ी सी फोटो लगती है। हालांकि, अब पंडाल पहले से छोटा हो गया है। वरदा का बड़ा लड़का मोहन भले ही सामने न आता हो लेकिन वह पीछे रहकर हर काम को अंजाम देता है। सामने न आने का कारण भी है कि वह भी अपने पिता के बाद एक बड़े मामले में फंस गया था। बड़ी मुश्किल से वह बाहर आया था। पंडाल के सामने एक लॉज में वरदा का पुराना मित्र ख्वाजा आज भी आकर गणपति देखता है। उल्हासनगर का दबंग पप्पू कालानी भी वरदा का करीबी रहा है।

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