वो कस्टम अधिकारी जिसने घर में घुसकर दाऊद के सामने उसके भाई का कॉलर पकड़कर गिरफ्तार किया
जीतेंद्र दीक्षित
दाऊद इब्राहिम के बारे में तो हर कोई जानता है कि वो एक आतंकवादी है, देशद्रोही है, भगोड़ा है और गैंगस्टर है, लेकिन दयाशंकर के बारे में आज बहुत ही कम लोग जानते हैं। दयाशंकर वो नाम है, जिससे दाऊद भी डरता था और सम्मान भी करता था। एक पत्रिका को दिए गए इंटरव्यू में तो दाऊद ने यहां तक कहा था कि वो अगले जन्म में दयाशंकर सरीखा व्यक्ति बनना चाहता है।
अगर आप मुंबई में चेंबूर के प्रियदर्शिनी जंक्शन से भक्ति पार्क होकर वडाला जाने वाली सड़क से गुजरते हैं तो बरकत अली दरगाह से पहले एक तिराहा आता है, जहां एक छोटा सा स्मारक बना है, जिस पर मोटे अक्षरों में लिखा है – दयाशंकर चौक। इस चौक का नामकरण एक ऐसे शख्स के नाम पर किया गया है, जिसका नाम कस्टम विभाग के अधिकारी बड़े ही सम्मान के साथ लेते हैं। दयाशंकर सिंह नाम के इस अधिकारी ने अपनी निडरता और ईमानदारी से भारतीय राजस्व सेवा में एक ऐसा मुकाम हासिल किया, जहां पर आज तक कोई नहीं पहुंच पाया।
साल १९५२ में जन्में आई.आर.एस दयाशंकर की तैनाती ८० और ९० के दशक में मुंबई के कस्टम विभाग में थी। इस दौरान उन्होंने सोना, चांदी, ड्रग्स और इलेक्ट्रॉनिक सामान की तस्करी करनेवालों की नाक में दम कर दिया था। लगातार वे तस्करों के खिलाफ कार्रवाई करते रहते और उनका माल पकड़ते थे। उन्होंने अपने जैसे ही निडर और ईमानदार अफसरों की एक टीम बना ली थी जो उनकी खातिर जान देने को भी तैयार रहते थे। मोटी रकम पेश करके तस्करों ने उनको कई बार खरीदने की कोशिश की, लेकिन दयाशंकर अपने कर्तव्य से डिगे नहीं। तस्कर यह बात समझ चुके थे कि दयाशंकर के सामने उनकी एक नहीं चल पाएगी। उनके कार्यकाल के दौरान मुंबई में तस्करी की गतिविधियां एकदम कम हो गर्इं। बताया तो यहां तक जाता है कि उन दिनों दुबई के हवाई अड्डे पर तस्कर एक पोस्टर लगा दिया करते थे कि मुंबई हवाई अड्डे पर दयाशंकर सिंह कौन सी शिफ्ट में काम कर रहे हैं ताकि सावधान रहा जाए। पर दयाशंकर उनसे एक कदम आगे ही रहते। उन्होने खबरियों का एक बड़ा नेटवर्क खड़ा कर लिया था, जिससे उन्हें मुंबई में माल पहुंचने की जानकारी पहले ही मिल जाती थी और वे उसे जब्त कर लेते थे।
वर्ष १९९० में दयाशंकर उस वक्त काफी सुर्खियों में आ गए थे, जब दाऊद के गढ़ पाकमोडिया स्ट्रीट से दाऊद के भाई अनीस को वे कॉलर पकड़ कर अपने दफ्तर ले गए थे। किस्सा कुछ यूं है कि दयाशंकर एक बार मुंबई के मरीन ड्राइव से अपनी जिप्सी में सवार होकर गुजर रहे थे, तभी एक कार फर्राटे से उनकी जिप्सी को ओवरटेक करके निकली। दयाशंकर को कुछ संदेह हुआ और उन्होने उस कार के नंबर पर गौर किया। उन्हें याद आया कि इस नंबर की गाड़ी गुजरात के तस्करी के एक मामले में वांछित थी। इसके बाद उन्होंने कार का पीछा करना शुरू किया। कार चालक को इस बात का पता चल गया कि उसका पीछा किया जा रहा है। उसने अपनी कार की रफ्तार बढ़ा दी और फिर दयाशंकर को गुमराह करने के लिये डोंगरी की पतली-संकरी गलियों में घुस गया। दयाशंकर ने फिर भी पीछा करना नहीं छोड़ा। आखिरकार, वो कार पाकमोडिया स्ट्रीट में मुसाफिर खाना नाम की इमारत के बाहर जाकर खड़ी हुई और कार सवार तुरंत उतरकर इमारत में घुस गया।
इमारत को फूलों से सजाया गया था और वहां जश्न का माहौल था। दरअसल, ये दाऊद के ६ भाइयों में से एक मुस्तकीम की शादी का मौका था। जो शख्स कार से वहां पहुंचा था, वो दाऊद का दूसरा भाई अनीश था। दयाशंकर समझ गए कि वे दाऊद के अड्डे पर पहुंच चुके हैं… लेकिन वे डरे नहीं। घर में घुसकर उन्होंने अनीश का कॉलर पकड़ा और उसे घसीट कर अपनी जिप्सी की ओर ले जाने लगे। अनीश के जोर-जोर से चिल्लाने पर दाऊद के गुर्गों ने दयाशंकर को घेर लिया। दयाशंकर ने भी अपने एक हाथ में रिवॉल्वर ले ली। गुर्गों की भीड़ दयाशंकर पर हमला करने ही वाली थी कि तभी दाऊद ने वहां आकर अपने लोगों को रोका और बताया कि ये दयाशंकर साहब हैं।
‘साब, आज के दिन छोड़ दो इसको। घर में शादी चल रही है। ऐसे मौके पर माहौल मत खराब करो,’ दाऊद ने विनम्रता से निवेदन किया।
‘अभी तो मैं इसको नहीं छोड़ सकता। तू वो गाड़ी लेकर मरीन लाइंस मेरे ऑफिस आ। उधर बात करते हैं।’
इसके बाद दयाशंकर अनीश को अपनी जिप्सी में बैठाकर वहां से अपने ऑफिस चले गए। पीछे से दाऊद वांछित गाड़ी को खुद चलाकर उनके दफ्तर पहुंचा।
दयाशंकर के सामने खड़े होकर दाऊद ने फिर एक बार निवेदन किया, ‘साब, कम से कम आज की रात अनीश को घर जाने दो। शादी निपट जाने के बाद कल सुबह दस बजे तक मैं खुद इसको लाकर आपके सामने हाजिर करूंगा।’
दयाशंकर ने कुछ पल के लिए दाऊद की आंखों में आंखें डालकर देखा और कहा, ‘ठीक है। चल तेरे पे यकीन किया। कल सुबह १० बजे मेरे ऑफिस आने के पहले ये मुझे हाजिर मिलना चाहिए।’
इसके बाद दाऊद अनीश को लेकर वहां से वापस पाकमोडिया स्ट्रीट लौट आया। अगली सुबह जब दयाशंकर अपने दफ्तर पहुंचे तो दाऊद अपने वादे के मुताबिक अनीश के साथ वहां इंतजार कर रहा था।
‘साब, जो केस बनाना है बना देना, लेकिन मारना मत।’ कहकर दाऊद ने अनीश को दयाशंकर के सुपुर्द किया और वहां से चला गया।
इस सदी की शुरूआत में इन्हीं दयाशंकर का सरकार के साथ विवाद हो गया और उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। नौकरी छोड़ने के बाद वे ऑस्ट्रेलिया चले गए और लेक्चरर बन गए। अगस्त २०१२ में ब्लड वैंâसर से उनका निधन हो गया। ८० और ९० के दशक में चंद पत्रकारों से बातचीत करते हुए दाऊद बताता था कि दयाशंकर ने उसका कितना नुकसान किया और वैâसे वो दयाशंकर की ईमानदारी का कायल हो गया था।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)