मुख्यपृष्ठअपराधगड़े मुर्दे : दहशत, दंगे और दगाबाजी ...शूटर फिरोज कोकणी की जिंदगी

गड़े मुर्दे : दहशत, दंगे और दगाबाजी …शूटर फिरोज कोकणी की जिंदगी

जीतेंद्र दीक्षित
जब भी ९० के दशक के अंडरवर्ल्ड की बात होती है, तो दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, अरुण गवली, अश्विन नाईक और अबू सलेम जैसे डॉन का जिक्र जरूर आता है। लेकिन इन नामों के अलावा भी कई ऐसे अपराधी हुए हैं, जिन्होंने अपनी दहशत कायम की और जिनकी जिंंदगी में बड़े नाटकीय मोड़ आए। ऐसा ही एक नाम था फिरोज कोकणी। डी कंपनी के इस गुर्गे ने सिर्फ बीजेपी के एक बड़े नेता का कत्ल नहीं किया था, बल्कि जनवरी १९९३ में मुंबई में दोबारा दंगे भड़काने में भी अहम भूमिका निभाई थी।
फिरोज का असली नाम फिरोज अब्दुल्ला सरगुरू था और वह दक्षिण मुंबई के डोंगरी इलाके के पास एक मुस्लिम बहुल मोहल्ले में रहता था। उसका परिवार कोकण के रत्नागिरी से आया था, इसलिए उसे ‘कोकणी’ कहा जाने लगा। १६ साल की उम्र में जब ज्यादातर बच्चे स्कूल की पढ़ाई पूरी करके कॉलेज में दाखिले के लिए मेहनत कर रहे होते हैं, तब फिरोज ने जुर्म की दुनिया में कदम रखा। मुंबई सेंट्रल के महाराष्ट्र कॉलेज में पढ़ने वाली एक लड़की से उसे इश्क हो गया, लेकिन वह लड़की किसी और को चाहती थी। गुस्से में फिरोज ने एक दिन उस लड़के पर चाकू से हमला कर उसकी जान ले ली। कुछ दिनों बाद मुंबई पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और हिरासत के बाद आर्थर रोड जेल भेज दिया।
जेल हमेशा से अपराधियों की भर्ती का गढ़ रही है और वहीं से फिरोज का सीधा जुड़ाव अंडरवर्ल्ड से हो गया। वह तेज-तर्रार और बेखौफ था, जेल में भी बड़े गैंगस्टरों से भिड़ जाता था। उसका गुस्सैल स्वभाव और बेधड़क अंदाज देखकर डी कंपनी के लोगों ने उस पर नजर रखनी शुरू कर दी। उन्हें अपने काम के लिए ऐसे ही लोग चाहिए थे। उन्होंने फिरोज को अपने गिरोह में शामिल कर लिया और जल्द ही उसे जमानत पर रिहा करवा दिया।
बाहर आने के बाद फिरोज ने डी कंपनी के लिए कई अपराध किए। इसी दौरान, ६ दिसंबर १९९२ को बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद मुंबई में दंगे भड़क उठे, जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए। कुछ ही दिनों में हालात शांत होने लगे, लेकिन अफवाहों का बाजार गरम था। मस्जिद बंदर इलाके में एक चर्चा पैâल गई कि लंबे बालों वाला एक ड्रमर (ढोल बजाने वाला) मुसलमानों को मार रहा है। इसी बीच, जी न्यूज पर सूरत में मुसलमानों पर कथित अत्याचार की एक रिपोर्ट दिखाई गई, जिसने फिरोज को और भड़का दिया।
६ जनवरी १९९३ की रात, फिरोज ने अपने दोस्तों मोमिन, लाला और कुछ और साथियों के साथ उस ड्रमर को मारने का पैâसला किया। हथियारों से लैस होकर वे उमरखाड़ी, डोंगरी और मस्जिद बंदर की गलियों में उसे तलाशते रहे, लेकिन वह नहीं मिला। वे खालीr हाथ लौटना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने एक माथाड़ी मजदूर को ट्रांसपोर्ट कंपनी के बाहर देखा और उस पर तलवार से हमला कर दिया। जब दूसरा मजदूर उसे बचाने आया, तो उसे भी मार दिया। अगले दिन सुबह दोनों मजदूरों की लाशें खून से लथपथ मिलीं।
इस घटना से ठीक एक दिन पहले जोगेश्वरी की गांधी चाल (जिसे गलती से राधाबाई चाल समझ लिया गया) में एक परिवार को जिंदा जला दिया गया था। इन दोनों घटनाओं ने मुंबई को दोबारा हिंसा की आग में झोंक दिया और शहर में फिर भयानक दंगे भड़क उठे, जो एक हफ्ते तक चले। इन दंगों को भड़काने में फिरोज कोकणी की भी भूमिका रही।
इसके बाद, २५ अगस्त १९९४ को फिरोज ने एक और बड़ी वारदात को अंजाम दिया। सुबह करीब १० बजे, खेरवाड़ी से बीजेपी विधायक रामदास नायक अपनी कार में बैठकर निकल रहे थे, तभी फिरोज ने उन पर एके-५६ से ५० राउंड गोलियां दाग दीं। जे.जे. हत्याकांड के बाद पहली बार अंडरवर्ल्ड ने किसी हत्या के लिए एके-५६ का इस्तेमाल किया था। इस वारदात ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। रामदास नायक के अंतिम संस्कार में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी शामिल हुए थे। कुछ दिनों बाद मुंबई पुलिस ने फिरोज को बंगलुरु से गिरफ्तार कर लिया।
डी कंपनी के लोगों ने फिरोज को छुड़ाने की योजना बनाई। १९९७ में जब उसे मेडिकल चेकअप के लिए जे.जे. अस्पताल ले जाया जा रहा था, तब डी कंपनी के शूटरों ने ठाणे पुलिस की टीम पर हमला कर दिया। इस फायरिंग में कांस्टेबल बी.डी. कार्डिले की मौत हो गई और फिरोज फरार हो गया।
बताया जाता है कि भागने के बाद वह नेपाल के रास्ते पहले बैंकॉक और फिर कराची चला गया। वहीं उसका छोटा शकील से झगड़ा हो गया, जिसके बाद शकील ने उसकी हत्या करवा दी। दूसरी कहानी के मुताबिक, फिरोज ने किसी बातचीत के दौरान दाऊद के भाई अनीस के लिए अपशब्द कहे थे। किसी ने वह रिकॉर्डिंग अनीस को सुना दी, जिसके बाद अनीस ने उसे मरवा दिया।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)

 

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