जीतेंद्र दीक्षित
बाबा सिद्दीकी मुंबई के प्रमुख नेताओं में से एक थे और शहर में कांग्रेस का मुस्लिम चेहरा थे। मुंबई में पत्रकारिता करते समय, कई मौकों पर मेरा उनसे पेशेवर काम के लिए सामना हुआ।
मेरी पहली मुलाकात सिद्दीकी से १९९९ में मंत्रालय में हुई थी, जब फिल्म अभिनेता और नेता सुनील दत्त किसी मुद्दे पर तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख से मिलने आए थे। मैं ‘आज तक’ का रिपोर्टर था और उस बैठक को कवर करने वहां गया था। सिद्दीकी, जो हाल ही में बांद्रा-पश्चिम से विधायक चुने गए थे, दत्त के साथ थे। हमने अपने मोबाइल नंबरों का आदान-प्रदान किया, जिसके बाद वे अक्सर मुझसे संपर्क करते रहे, ताकि दत्त से जुड़े राजनीतिक कार्यक्रमों को कवरेज मिल सके।
२५ मई २००५ का वो पल मुझे आज भी याद है, जब मैंने उन्हें फोन किया था सुनील दत्त की मौत की पुष्टि के लिए।
‘बाबा जी, दत्त साहब के बारे में कोई खबर?’
मेरा सवाल सुनते ही वे बच्चे की तरह रोने लगे। कुछ सेकंड के बाद उन्होंने सिसकते हुए कहा, ‘जितेंदर भाई, दत्त साहब का इंतेकाल हो गया है।’
राजनीति में सिद्दीकी दत्त के विश्वासपात्र थे। वे दत्त और उनके निर्वाचन क्षेत्र के मुस्लिम समुदाय के बीच एक पुल के रूप में कार्य करते थे। अगर किसी को दत्त से कोई काम होता था, तो वो सिद्दीकी के पास आते थे। दत्त के निधन के बाद सिद्दीकी ने उनकी बेटी प्रिया को राजनीति में आगे बढ़ने में मदद की। उन्होंने तब भी परिवार का साथ दिया, जब संजय दत्त को आर्म्स एक्ट मामले में सजा हुई। २००२ में जिस दिन सलमान खान की कथित कार दुर्घटना हुई, मुझे बताया गया कि सिद्दीकी ने ही उन्हें तब तक शरण दी, जब तक वे बांद्रा पुलिस स्टेशन नहीं पहुंचे। सिद्दीकी ने वकील वारिस पठान को बुलाया, जिन्होंने उन्हें कुछ ही मिनटों में जमानत दिला दी। सिद्दीकी खान परिवार के सपोर्ट सिस्टम का हिस्सा थे और हिट एंड रन और काले हिरण शिकार मामलों में उनके साथ खड़े रहे।
सिद्दीकी ने २००५ में मुझे एक अवैध ब्लड बैंक रैकेट का पर्दाफाश करने में मदद की। मुझे एक सूत्र से बताया गया कि गोवंडी और घाटकोपर के दो ब्लड बैंक लोगों की जान से खेल रहे हैं। हर दिन वे बच्चों, भिखारियों, कचरा बीनने वालों और नशेड़ियों से खून लेते और उसे अस्पतालों में सप्लाई करते थे। ‘डोनर्स’ को एक बोतल खून के लिए १०० से १५० रुपए दिए जाते थे। हर शाम ये ‘डोनर्स’ ब्लड बैंक के बाहर कतार में लग जाते थे। मुझे यह जानकारी सुनकर झटका लगा। यह नहीं पता था कि डोनर किसी बीमारी से पीड़ित है या नहीं, लेकिन खून तेजी से खरीदा और जरूरतमंद मरीजों को सप्लाई किया जा रहा था।
मैंने इस खतरनाक धंधे को उजागर करने के लिए एक स्टिंग ऑपरेशन करने का पैâसला किया। हालांकि, मैंने ब्लड बैंक के बाहर कतार में लगे लोगों का वीडियो बना लिया था, लेकिन अंदर प्रवेश नहीं कर सका। कुछ डोनरों से बात करने पर, जो मेरी पत्रकार वाली पहचान से अनजान थे, उन्होंने इस जानकारी की पुष्टि की।
मैं बाबा सिद्दीकी से मिला, जो उस समय खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) विभाग के मंत्री थे, और उन्हें इस रैकेट की जानकारी दी। उन्होंने तुरंत एफडीए कमिश्नर को फोन किया और मुझे हर संभव मदद देने का आदेश दिया। अगले दिन मैंने अपने वैâमरामैन सुनील पूडरी और छह एफडीए कर्मचारियों की टीम के साथ गोवंडी स्थित ब्लड बैंक पर छापा मारा। अपराधियों को रंगे हाथों पकड़ा गया। कुछ डोनर खून दे रहे थे। मैनेजर और अन्य कर्मचारी एफडीए कर्मचारियों के साथ हाथापाई करने लगे और भागने की कोशिश की। उन्हें काबू में करने के बाद गिरफ्तार किया गया। एफडीए निरीक्षकों ने डोनरों के बयान दर्ज किए। कानूनी प्रक्रिया के अनुसार, ब्लड बैंक को सील कर दिया गया। घाटकोपर के ब्लड बैंक पर भी इसी तरह छापा मारा गया।
अगली मुलाकात में बाबा सिद्दीकी ने मुझे धन्यवाद दिया और इस खुलासे के लिए मेरी प्रशंसा की। सिद्दीकी ने मुझे बताया कि उन्होंने एफडीए कमिश्नर को अधिकारियों को पुरस्कृत करने को कहा है। उन्होंने निर्देश दिया कि अपराधियों के खिलाफ एक मजबूत मामला दर्ज किया जाए, ताकि उन्हें अदालत में सजा हो सके। मेरी आखिरी मुलाकात बाबा सिद्दीकी से इसी साल मई में, होटल ताज लैंड्स एंड में, एनडीटीवी मराठी न्यूज चैनल के लॉिंन्चग के दौरान हुई थी। उन्होंने मुझे अपने बेटे जीशान से मिलवाया, ‘जीशान, इन्हें जानते हो? ये मेरे दोस्त जितेंदर दीक्षित हैं।’ जीशान ने जवाब दिया, ‘बिलकुल, हम कई बार मिल चुके हैं।’
हालांकि, दर्जनों आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं, लेकिन सिद्दीकी की हत्या के पीछे का मकसद अभी तक सामने नहीं आया है। यह अभी भी एक रहस्य है कि उनकी हत्या सलमान खान से नजदीकी के कारण हुई या उनकी रियल एस्टेट व्यापार से जुड़े किसी विवाद के कारण।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)