जितेंद्र दीक्षित
इस बार की कहानी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की नहीं, बल्कि उनके पिता इब्राहिम कासकर की है। इब्राहिम कासकर मुंबई पुलिस की सीआईडी में कांस्टेबल थे और दक्षिण मुंबई के पाकमोडिया स्ट्रीट में रहते थे। हालांकि, डी कंपनी की आपराधिक गतिविधियों से उनका कोई सीधा संबंध नहीं था, लेकिन एक बार उन्होंने एक उर्दू पत्रकार और उसके फोटोग्राफर को किडनैप कर लिया था और बड़ी मुश्किल से उन्हें छोड़ा। यह किडनैपिंग फिरौती के लिए नहीं की गई थी, बल्कि इब्राहिम कासकर ने अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित होकर ऐसा किया था।
शराफत खान नामक पत्रकार नागपाड़ा से निकलने वाले उर्दू समाचारपत्र `अखबार ए आलम’ में काम करते थे। एक बार टाइम्स ग्रुप से जुड़े उनके एक अंग्रेजी पत्रकार मित्र ने शराफत खान से दाऊद, उसके भाइयों और गिरोह के प्रमुख सदस्यों की कुछ तस्वीरें मांगीं। शराफत खान ने उस अंग्रेजी पत्रकार का संपर्क अपने अखबार के फोटोग्राफर से करा दिया।
यह फोटोग्राफर शादी-ब्याह और पार्टियों में भी फोटोग्राफी करता था। उसने कुछ ऐसे मौकों पर फोटोग्राफी की थी, जहां दाऊद के भाई अनीस, नूरा और गिरोह के सदस्य जैसे खालिद पहलवान और हनीफ कुत्ता मौजूद थे। फोटोग्राफर ने वे तस्वीरें नेगेटिव समेत अंग्रेजी पत्रकार को दे दीं। बाद में उन तस्वीरों को पत्रिका के अगले संस्करण में प्रकाशित कर दिया गया।
इन तस्वीरों को देखकर डी कंपनी के पैरों तले जमीन खिसक गई। तब तक दाऊद की तस्वीरें कभी-कभार छपी थीं, लेकिन दाऊद के भाइयों और उसके गिरोह के सदस्यों की तस्वीरें कभी सामने नहीं आई थीं। यह वह दौर था जब दाऊद और पठान गिरोह के बीच खूनी गैंगवॉर चल रही थी। दोनों गिरोह एक-दूसरे के सदस्यों की आए दिन हत्या कर रहे थे। ऐसे में डी कंपनी चिंतित हुई कि इन तस्वीरों के कारण पठान गिरोह उनके सदस्यों को पहचानकर निशाना बना सकता है। सबसे ज्यादा चिंतित दाऊद के पिता इब्राहिम कासकर थे। उन्हें अपने बच्चों की सुरक्षा खतरे में नजर आई। डी कंपनी ने पड़ताल शुरू की कि ये तस्वीरें पत्रिका तक वैâसे पहुंचीं। जल्द ही पता चला कि यह काम शराफत खान के जरिए हुआ था। डी कंपनी के लोग शराफत खान, अंग्रेजी पत्रकार और फोटोग्राफर को पकड़कर पाकमोडिया स्ट्रीट में दाऊद के अड्डे पर ले आए। वहां इन तीनों के साथ बदसलूकी की गई। गाली-गलौज, हाथापाई और जान से मारने की धमकियां दी गर्इं। दाऊद के पिता इब्राहिम कासकर सबसे ज्यादा गुस्से में थे। उन्होंने कहा कि किसी को भी छोड़ा नहीं जाएगा। गिरफ्त में आए तीनों लोगों ने बहुत माफी मांगी और कहा कि आगे से ऐसा नहीं होगा। लेकिन इब्राहिम कासकर सुनने को तैयार नहीं थे। आखिरकार उन्होंने एक शर्त रखी कि पत्रिका के पहले पन्ने पर माफीनामा छापा जाए। अंग्रेजी पत्रकार ने कहा कि यह संभव नहीं है, क्योंकि वह ऐसा करने की स्थिति में नहीं है। इस पर इब्राहिम कासकर अड़ गए और तीनों को एक कमरे में बंद कर दिया।
शराफत खान और बाकी दोनों बंधकों को डर था कि डी कंपनी उनकी हत्या कर सकती है। आठ घंटे बाद हनीफ कुत्ता नाम का डी कंपनी का सदस्य इब्राहिम कासकर के साथ वहां पहुंचा। शराफत खान और अंग्रेजी पत्रकार को इस शर्त पर रिहा किया गया कि वे फोटो के नेगेटिव इब्राहिम कासकर के पास जमा करेंगे और आगे से डी कंपनी से जुड़ी कोई खबर प्रकाशित नहीं करेंगे। हालांकि, फोटोग्राफर को इब्राहिम कासकर ने रोक लिया। उनकी नजर में समस्या की असली जड़ वही था। जब अंग्रेजी पत्रकार ने फोटो के नेगेटिव इब्राहिम कासकर को सौंप दिए, तब चौथे दिन फोटोग्राफर को रिहा किया गया। मुझे यह कहानी सुनाने वाले पत्रकार शराफत खान ने अंडरवर्ल्ड के साथ अपने अनुभवों पर `मुंबई के डॉन’ नामक किताब लिखी है। खान मुंबई के उन गिने-चुने जीवित पत्रकारों में से एक हैं, जिन्होंने हाजी मस्तान, करीमलाला, दाऊद इब्राहिम और वरदराजन मुदलियार जैसे माफियाओं को करीब से देखा और उनसे बातचीत की।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)