मुख्यपृष्ठअपराधगड़े मुर्दे :  जब डॉन ने चौंका दिया पुलिस कमिश्नर को!

गड़े मुर्दे :  जब डॉन ने चौंका दिया पुलिस कमिश्नर को!

जीतेंद्र दीक्षित
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर एम.एन.सिंह साल २००२ में रिटायर हुए थे। तीन साल बाद २००५ में नायगांव पुलिस मुख्यालय में आयोजित एक समारोह में कई पुराने अफसरों को आमंत्रित किया गया था, जिसमें सिंह भी उपस्थित थे। जब कार्यक्रम खत्म हुआ और सिंह वहां से निकलगे तो सफेद कुर्ता पहने और सिर पर गांधी टोपी लगाए एक शख्स उनके पास पहुंचा।
‘नमस्कार साहेब। वैâसे हैं आप?’ उस शख्स ने हाथ जोड़कर सिंह का अभिवादन किया।
उस आदमी को वहां देख कर सिंह को बड़ा झटका लगा।
‘तुम यहां वैâसे आ गए, मिस्टर गवली?’ सिंह ने सख्त लहजे में उससे पूछा।
सिंह की आदत थी कि वो हर किसी के नाम के आगे मिस्टर लगा कर उसे संबोधित करते थे।
‘साहेब, मैं तो यहां मेहमान हूं। मुझे यहां सरकार ने ही बुलाया है।’ उसने अपना आमंत्रण पत्र सिंह को दिखाते हुए कहा।
सिंह के सामने खड़ा शख्स अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली था। गवली ८० और ९० के दशक में मुंबई अंडरवर्ल्ड का बड़ा खिलाड़ी था। उसके शूटरों ने कई बिल्डरों, मिल मालिकों, बार मालिकों और राजनेताओं की हत्याएं करवाई थीं।
दरअसल, उस कार्यक्रम में विधायकों को भी आमंत्रण भेजा गया था। सिंह को याद आया कि गवली भी एक विधायक बन चुका है। कोई और विधायक तो वहां नहीं पहुंचा, लेकिन गवली वहां मौजूद था। क्या अपनी मौजूदगी वहां दर्ज करा कर गवली पुलिस को चिढ़ा रहा था? सिंह के लिए यह एक विचित्र स्थिति थी। जिस गवली गिरोह की उन्होने नब्बे के दशक में मुंबई पुलिस का ज्वाइंट कमिश्नर और पुलिस कमिश्नर रहते हुए कमर तोड़ी थी, जिसके कई शूटरों को एनकाउंटर्स में खत्म किया था या जेल भेजा था, वही गवली आज उन्हीं की तरह मेहमान बनकर एक पुलिसिया समारोह में शिरकत कर रहा था। खुद गवली भी कई बार हवालात जा चुका था और पुलिस के हाथों पिट चुका था, लेकिन आज वो पुलिस मुख्यालय में एक सम्मानित में शामिल था।
दरअसल, उस समारोह से एक साल पहले यानी २००४ में अरुण गवली ने अपनी पार्टी अखिल भारतीय सेना से चिंचपोकली सीट पर चुनाव लड़ा था और जीत हासिल करके विधायक बन गया था। गवली कोई पहला शख्स नहीं था, जिसने अपराध जगत में रहते हुए विधानसभा में कदम रखे। उससे पहले ९० के दशक में वसई-विरार और उल्हासनगर के डॉन भी विधायक बन चुके हैं।
गवली विधायक तो बन गया था, लेकिन उसका ज्यादातर वक्त सलाखों के पीछे बीता। २००८ में शिवसेना के कमलाकर जामसांडेकर की हत्या के मामले में उसकी गिरफ्तारी हुई। इस मामले में अदालत ने उसे उम्र वैâद की सजा सुनाई। गवली ने २००९ में फिर एक बार चुनाव लड़ा, लेकिन हार गया। उसकी बेटी गीता गवली मुंबई के भायखला इलाके से नगरसेवक है।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)

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