जीतेंद्र दीक्षित
ये किस्सा उन दिनों का है जब मुंबई की आर्थर रोड जेल में बनी टाडा अदालत में मुंबई बमकांड का मुकदमा अपने आखिरी चरण में था। जज प्रमोद कोदे मामले की रोज सुनवाई करते थे। जिन आरोपियों की जमानत नहीं हुई थी उन्हें जेल की चारदीवारी के भीतर बने बैरकों से अदालत के कमरे में लाया जाता था। एक बैरक को ही खाली करा कर अदालत की शक्ल दी गई थी। जिन आरोपियों की जमानत हो चुकी थी वे अपनी तारीख पर अदालत में हाजिर होते। जमानत पाए हुए आरोपियों में फिल्म स्टार संजय दत्त भी थे जिन पर दाऊद गिरोह की ओर से भेजी गई एके ५६ राइफलें अपने पास रखने का आरोप था। संजय दत्त भी अपनी हाजिरी के वक्त एक आम आरोपी की तरह अदालत के पीछे बनाए गए हिस्से में बाकी आरोपियों के साथ बैठते।
जिस दिन संजय दत्त की तारीख होती, उस दिन अदालत के बाहर मीडिया के कैमरों की आम दिनों से ज्यादा भीड़ रहती। रोज अदालत की कार्रवाई खत्म होने के बाद विशेष सरकारी वकील जेल के बाहर बनाए गए मीडिया स्टैंड पर आकर दिनभर की कार्रवाई की जानकारी देते। अपनी बात वे अंग्रेजी, हिंदी और मराठी इन तीनों भाषाओं में रखते। उनके जाने के बाद बचाव पक्ष के वकील आकर मीडिया से मुखातिब होते।
एक बार हुआ यह कि अदालत की कार्रवाई जैसे ही खत्म हुई संजय दत्त बाहर आ गए। सारे मीडियाकर्मी उनकी तस्वीरें लेने के लिए उनके पीछे भागे। जब सरकारी वकील बाहर आए तो देखा कि कोई मीडियाकर्मी स्टैंड पर उन्हें रिकॉर्ड करने के लिए था ही नहीं। उन्हें पुलिसकर्मियों ने बताया कि मीडिया वाले तो संजय दत्त के पीछे भागे हैं। यह बात उनको अखर गई। उन्होंने मीडियाकर्मियों के वापस स्टैंड पर आने का इंतजार किया और फिर रोज की तरह अदालती कार्रवाई का ब्यौरा दिया, लेकिन उनके चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही थी।
अगली तारीख पर जब संजय दत्त वापस अदालत आए तो कार्रवाई खत्म होने के बाद वकील साहब ने कोर्ट के दरवाजे के पास उन्हें बुलाया और उंगली दिखाते हुए चेतावनी वाले अंदाज में कहा, ‘संजू, जब तक मैं निकल नहीं जाता तब तक तू कोर्ट से बाहर नहीं आएगा। समझ गया?’
‘जी सर, बिलकुल नहीं आऊंगा।’ संजय दत्त ने एक आज्ञाकारी बालक की तरह हामी भरी और वापस आरोपियों के लिए रखी बेंच पर जाकर बैठ गया। वहां मौजूद पत्रकारों ने देखा कि संजय दत्त सरकारी वकील के सख्त बर्ताव से खौफजदा हो गए थे और उनके चेहरे से पसीना टपकने लगा था।
इसके बाद जब सरकारी वकील रोज की तरह मीडिया को संबोधित करके चले गए तब ही संजय दत्त जेल के दरवाजे से बाहर निकले। वकील साहब का गुस्सा उनके लिए ठीक नहीं था। संजय दत्त बरी होंगे या फिर जेल जाएंगे, यह इस बात पर निर्भर था कि वे कितनी मजबूती से सरकारी पक्ष के लिए उनके खिलाफ जिरह करते हैं।
उस मामले में संजय दत्त को टाडा अदालत ने छह साल जेल की सजा सुनाई। अदालत ने उन्हें टाडा कानून के तहत आतंकवादी होने के कलंक से तो बरी कर दिया लेकिन आर्म्स एक्ट के तहत दोषी करार दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी छह साल की सजा को घटाकर पांच साल कर दिया। यह सजा दत्त ने पुणे की यरवदा जेल में पूरी की।
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)